किताबों से रू-ब-रू युग

ऐसी शिकायत में युवा चरित्र की अभिलाषा और मकसद को समझ लें, तो धर्मशाला का जिला पुस्तकालय भी एक संस्थान के मानिंद भविष्य की बुनियाद का पैरोकार नजर आएगा। उपर्युक्त पुस्तकालय को अपना अध्ययन केंद्र मानने वालों के लिए सुविधाओं का अकाल अखरता है, तो इस दर्द को समझना होगा। यह पहला अवसर है जब युवा कालेज के बजाय सार्वजनिक पुस्तकालय की शिकायत को लेकर प्रशासन तक पहुंचे। यह अध्ययन के जुनून की ऐसी शिकायत है, जो पुस्तकालय की छांव में भविष्य खोजने में शरीक है। यह प्रशंसनीय है और इसका अर्थ अगर सरकार समझे तो युवा ऊर्जा का सकारात्मक पक्ष देश की मंजिलें तय करेगा। आखिर सरकारों के दरवाजे पुस्तकालयों में आकर तंग क्यों हो रहे हैं। युवाओं की शिकायत को समझें, तो उन्हें अध्ययन के दौरान माहौल, आधारभूत सुविधाएं और पुस्तकालय की अल्मारियों में भविष्य संवारती पुस्तकें चाहिएं। कुछ वर्ष पहले तक अध्ययन कक्ष सूने और युवा तमन्ना के कदम किसी पुस्तकालय की शांति से रूठ चुके थे, लेकिन अब किताबों से रू-ब-रू होता नया युग अपनी पराकाष्ठा चिन्हित कर रहा है। पुस्तकालय की प्रासंगिकता को बरकरार रखते हुए हिमाचली युवा ने हिमाचली लाइब्रेरी का जो खाका खींचा है, उसे समझते हुए इसे माकूल अधोसंरचना व सुविधाओं से सुसज्ज्ति करना होगा। धर्मशाला पुस्तकालय में अगर रोजाना तीन से पांच सौ तक की तादाद में युवा पहुंच रहे हैं, तो आज लक्ष्य की बुनियाद का वर्तमान स्वरूप और सुदृढ़ करना होगा। जरा पुस्तकालय के पाठक के नए हुलिए तथा मांग पत्र को देखें, यह शैक्षणिक, सामाजिक व सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को खंगाल रहा है। प्रसन्नता यह कि हिमाचली युवा पुस्तकालय को सुदृढ़ करने के संघर्ष में इसके प्रति अपने विश्वास की पैरवी कर रहा है। अचानक अगर पुस्तकालय के साथ एक गंभीर समुदाय खड़ा हो रहा है, तो यह देश के नागरिक का प्रतिष्ठित होना भी है। वास्तव में भविष्य की लाइब्रेरी इन्हीं युवाओं की मिलकीयत में लिखी जाएगी। विडंबना यह है कि हिमाचल में पुस्तकालय को शिक्षा के कोने में रखा गया है, जबकि किसी भी युग के संबोधन और ज्ञान का संरक्षण यहीं संभव है। सूचना क्रांति के युग में पुस्तकालय व्यवस्था में परिवर्तन तथा तकनीकी प्रारूप में संशोधन की तरफ बढ़ना होगा। धर्मशाला लाइब्रेरी में सुधार का बीड़ा छात्रों के ऐसे वर्ग ने उठाया, जो अपने करियर का ताप ऐसे स्थल के अध्ययन कक्ष में कर रहे हैं। इससे अलग एक दूसरी तस्वीर भी है, जहां युवा समूह नशे की गिरफ्त या दोपहिया वाहनों के जरिए अपने मनोरंजन की रफ्तार में गुम हैं। ऐसे में शिक्षा विभाग व सरकार से यह आशा की जाती है कि प्रदेश के पुस्तकालयों में जीवंतता लाएं और मानव संसाधन विकास की उपयोगिता में इन्हें भी सूचीबद्ध किया जाए। प्रदेश के कम से कम आधा दर्जन पुस्तकालयों को चिन्हित करके इन्हें करियर विकास संस्थान का दर्जा दिया जाए। ऐसे में कई तरह के भाषायी पाठ्यक्रम तथा करियर सलाह के कार्यक्रम चलाए जा सकते हैं। दुर्भाग्यवश हिमाचली पुस्तकालय युवाओं से संबंधित विविध कार्यक्रम चलाने की दिशा में विशेष प्रयास नहीं कर पाए। सीमित संसाधनों के कारण किताबों का संग्रहण भी ज्ञान की अभिलाषा में पिछड़ रहा है। आज किताबों की सिफारिशी खेप के बजाय चर्चित, पाठ्यक्रम केंद्रित, पुरस्कार प्राप्त तथा विभिन्न विषयों पर संदर्भ पुस्तकों की आवश्यकता है। पुस्तकालय भवन को अध्ययन कक्ष के तौर पर निरूपित करने तथा समयावधि को देर रात्रि तक बढ़ाने के कदम उठाए जाएं, तो ज्ञान के गुरु बनकर ये अपनी प्रासंगिकता व उपयोगिता बढ़ा पाएंगे।