चैंपियन सिंधु

एक बार फिर खेल के मैदान में भारत के हिस्से खिताबी उपलब्धि दर्ज हुई है। बीते एक लंबे अंतराल में हमने चीन के वर्चस्व को तोड़ा है। अब भारत दुनिया में बैडमिंटन का ‘नया चीन’ बन गया है और पीवी सिंधु उसकी ‘नई तारिका’ है। सिंधु ने कोरिया ओपन सुपर सीरीज का महिला खिताब जीत कर नया इतिहास  रचा है। खिताबी सेहरा  पहनने वाली वह प्रथम भारतीय खिलाड़ी हैं। उन्होंने मुकाबले के फाइनल में जापान की विश्व चैंपिपयन नोजोमी ओकुहारा को हरा कर खिताब जीता है और विश्व चैंपियनशिप के फाइनल में ओकुहारा से हारने का बदला भी लिया है। अब दोनों खिलाडि़यों के बीच जीत-हार का समीकरण 4:4 हो गया है। यह सिंधु का तीसरा सुपर सीरीज खिताब है, लेकिन सिंधु इसके समेत 10 अंतरराष्ट्रीय खिताब जीत चुकी हैं। ये उपलब्धियां ओलंपिक उपविजेता बनने के बाद की हैं। बैडमिंटन के खेल में अब कोई भी अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी ऐसी नहीं है, जो सिंधु के मुकाबले खुद को ‘अजेय’ मान सके। सिंधु बहुत जल्दी दुनिया की नंबर 1 खिलाड़ी होंगी, यह निस्संदेह है। सिंधु की निगाहें अब ओलंपिक स्वर्ण पर चिपकी होंगी, यह स्वाभाविक भी है। रियो ओलंपिक के फाइनल में सिंधु ने दुनिया की तब नंबर 1 खिलाड़ी कैरोलिना मारिन को भी एक गेम में धूल चटा दी थी, लेकिन उसे वह कायम नहीं रख सकीं और रजत पदक ही हिस्से आया। इसी तरह विश्व चैंपियनशिप में भी सिंधु को ओकुहारा के मुकाबले तीन गेमों तक संघर्ष करना पड़ा था। वहां भी रजत  पदक से संतोष करना पड़ा। सिंधु और ओकुहारा के बीच मुकाबले इस कद्र चरम पर पहुंचते रहे हैं कि आठ में से सात मैचों का फैसला तीन गेमों से ही हुआ है। सिंधु ने ओलंपिक में भी ओकुहारा को हरा कर फाइनल में प्रवेश किया था। इस बार भी 28 शॉट्स, 56 शॉट्स की लंबी-लंबी रैलियां खेली गईं। दमदार और चकमा देने वाला आक्रामक खेल भी खेलना पड़ा। नतीजतन सिंधु चैंपियन बनीं। एक दौर था, जब भारतीय बैडमिंटन में प्रकाश पादुकोण और पुलेला गोपीचंद के बाद कोई भी नाम सामने नहीं आता था। दोनों ऑल इंग्लैंड चैंपियन बने। महिला वर्ग में सायना नेहवाल का उभार हुआ, तो उन्होंने इस खेल में चीन का तिलिस्म तोड़ना शुरू किया। दुनिया की सर्वश्रेष्ठ खिलाडि़यों को हराकर विश्व नंबर 1 भी बनीं। ऑल इंग्लैंड चैंपियनशिप और विश्व चैंपियनशिप में सायना रजत पदक विजेता रहीं। यह कोई कम उपलब्धि नहीं थी। यदि सायना चोटिल न होतीं, तो सिंधु का उभार उनकी छाया तले ही होता। बहरहाल सिंधु को बैडमिंटन की ‘नई तारिका’ के तौर पर गढ़ा गया और नतीजे सामने हैं। सिंधु ओलंपिक में रजत, विश्व चैंपियनशिप में भी रजत और अब कोरिया ओपन सुपर सीरिज का खिताब…अब सिर्फ  ऑल इंग्लैंड चैंपियन बनने और ओलंपिक स्वर्ण जीतने का इंतजार है। सिंधु फिलहाल विश्व में चौथे स्थान की खिलाड़ी हैं,लेकिन वह सुन यू और मारिन जैसी खिलाडि़यों को लगातार हराती रही हैं, लिहाजा शीर्ष पायदान तक पहुंचना असंभव नहीं है।  राजनीति, घोटाले, आतंकवाद, कश्मीर और चुनावी द्वंद्वों पर संपादकीय लिखने की दिनचर्या से अलग जब भी सिंधु सरीखी खेल की उपलब्धियों पर लिखने का मौका मिलता है, तो ठंडी हवा के झोंकों की तरह राहत महसूस होती है, क्योंकि 134 करोड़ का हमारा देश अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेल में बहुत पिछड़ा है। ओलंपिक में हमारे हिस्से 1-2 पदक भी आ जाएं, तो हम संतुष्ट होने लगते हैं। अब जिस तरह हमारे युवा खिलाड़ी प्रत्येक खेल में वर्चस्ववादी देशों को पराजित कर रहे हैं, तो अच्छा लगता है। सिंधु, सायना, दीपा, विराट कोहली, धोनी और अब नई सनसनी हार्दिक पांड्या सचमुच भारत के प्रतिनिधि हैं। उनसे प्रेरणा ली जानी चाहिए। मात्र 22 साल की उम्र में सिंधु ऐसे करिश्मे कर रही हैं,तो दूसरे खेलों में ऐसा क्यों नहीं हो सकता?