न्यायपालिका पर उठते सवाल

प्रो. एनके सिंह

लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

गौरतलब हो कि गुरमीत राम रहीम का मामला वर्ष 2002 में दायर किया गया और इस पर फैसला 15 साल बाद आया। इतनी देर हो जाने के लिए हरियाणा सरकार व मुख्यमंत्री को जिम्मेदार ठहराया गया। कोर्ट ने धमकी दी कि हिंसा न रोक पाने के मामले में राज्य के पुलिस महानिदेशक को हटा दिया जाएगा। यहां न्यायालय यह भूल गया है कि अगर उसने इस मामले में इतनी देर न की होती तो समस्या इस कद्र गंभीर न हुई होती…

दुनिया अद्भुत है, क्योंकि जो आध्यात्मिक व सच्चे होने का दावा करते हैं, वे भी धोखेबाज व जालसाज साबित हो रहे हैं। यह राजनीति में होता है क्योंकि जो पार्टियां पारदर्शी होने का दावा करती हैं, वे एकदम अपारदर्शी व जनता को मूर्ख बनाने के अनवरत प्रयास करने वाली बन जाती हैं। परंतु केंद्रीय जांच ब्यूरो की पंचकूला स्थित कोर्ट में गुरमीत राम रहीम सिंह के केस में जिस तरह की बड़े स्तर की धोखाधड़ी साबित हुई है, उसकी अपेक्षा कोई नहीं करता। इस मामले में विश्वास का गला घोंटा गया है। कोर्ट इससे पहले अगर फैसला दे देती तो सैकड़ों लड़कियों की जिंदगी तबाह होने से बच जाती और इतनी संख्या में लोग भी नहीं मारे जाते। गौरतलब हो कि यह मामला वर्ष 2002 में दायर किया गया और इस पर फैसला 15 साल बाद आया। इतनी देर हो जाने के लिए हरियाणा सरकार व मुख्यमंत्री को जिम्मेदार ठहराया गया। कोर्ट ने धमकी दी कि हिंसा न रोक पाने के मामले में राज्य के पुलिस महानिदेशक को हटा दिया जाएगा। यहां न्यायालय यह भूल गया है कि अगर उसने इस मामले में इतनी देर न की होती तो समस्या इस कद्र गंभीर न हुई होती। लेकिन न्यायाधीश कुछ भी कह सकते हैं और अपनी जिम्मेदारी से बच जाते हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि एक ऐसी त्रासदी हो गई, जिससे बचा जा सकता था।

न्यायालय ने जब डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम को बलात्कार के मामले में दोषी ठहराया तो उससे उपजी हिंसा में 39 लोग मारे गए, जबकि सैकड़ों घायल हो गए। इस दौरान बेकाबू हुए बाबा के चेलों ने सार्वजनिक व निजी संपत्ति को भी भारी नुकसान बनाया। इतना ही नहीं, तीन-चार दिनों तक एक तरह से पूरी व्यवस्था को बंधक बना डाला गया। सैकड़ों लड़कियां डेरे में साध्वी के रूप में सेवाएं दे रही थीं और एक लंबे अरसे से उन्हें वासना का शिकार बनाया जा रहा था। डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख राम रहीम ने सिरसा में 700 एकड़ जमीन में अपना साम्राज्य खड़ा किया हुआ है। इसमें मनोरंजन, स्वास्थ्य तथा खेल संबंधी सभी आधुनिक सुविधाएं जुटाई गई थीं। गैर सरकारी सूत्र बताते हैं कि डेरे के करीब छह करोड़ अनुयायी थे तथा उनकी अपने गुरु पर स्वामी-भक्ति व विश्वास इस कद्र था कि वे बाबा के आदेश पर कुछ भी करने को तैयार रहते थे। यह बड़ी संख्या में लोगों को अपने वश में करने की एक मिसाल है। उसने भक्तों की एक ऐसी सेना खड़ी कर डाली जो उसमें अंध-विश्वास रखती थी। उसकी राजनीतिक सत्ता तक पकड़ हो गई थी, क्योंकि वह अपने अनुयायियों को अपनी पसंद की राजनीतिक पार्टी को वोट देने के लिए निर्देशित करता था। पिछले विधानसभा चुनावों को छोड़कर उसने हर बार राज्य में कांग्रेस का समर्थन किया, जबकि पिछली बार उसने भारतीय जनता पार्टी को समर्थन दिया और वह राज्य की सत्ता में भी आ गई। वास्तव में वह एक किंगमेकर बन गया था और सभी राजनीतिक दलों के नेता समर्थन पाने के लिए उसकी चौखट पर हाजिरी भरते रहते थे। शायद यही पृष्ठभूमि थी जिसके खिलाफ कोर्ट ने टिप्पणी की, ‘‘वोट बैंक बनाने के लिए यह सरकार का राजनीतिक आत्मसमर्पण है।’’ लेकिन गुरमीत राम रहीम की वासना की शिकार एक लड़की की वजह से उसका यह साम्राज्य ढह गया।

वर्ष 2002 में इस लड़की ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को पत्र लिख कर इस मामले की शिकायत की थी। न्यायिक देरी के कारण इस केस में फैसला अब जाकर हो पाया है। अब न्यायपालिका इस देरी के लिए कार्यपालिका तथा राजनीतिक नेतृत्व को जिम्मेदार ठहरा रही है, जबकि स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई थी। भारी भीड़ जमा होने से रोकने तथा नियंत्रित करने में फेल रहने के कारण त्रासदी में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का कितना योगदान है, इस पर अलग से एक बहस हो सकती है। विपक्ष तथा मीडिया के लोग खट्टर को बर्खास्त करने के लिए हो-हल्ला मचा रहे हैं। वास्तव में शुरू के तीन संकटपूर्ण घंटों की विफलता के बाद मुख्यमंत्री खट्टर ने ही अंततः स्थिति पर पूरी तरह नियंत्रण पा लिया। हालांकि इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि वह दो जगह पर बुरी तरह विफल हो गए। प्रथम, उनकी गलती यह रही कि वह धारा-144 को सख्ती से लागू नहीं कर पाए। हालात जब बिगड़ने लगे, तो न्यायालय ने भी सरकार से सवाल किया कि धारा-144 को अस्पष्ट रूप से लागू क्यों किया गया, जबकि हालात बिगड़ने की पहले से ही  आशंकाएं जाहिर की जा चुकी थीं। न्यायालय के उस सवाल पर शासन व प्रशासन के हाथ-पांव फूलने लगे थे। भारी भीड़ को रोकने के लिए पुलिस को स्पष्ट निर्देश नहीं दिए गए थे और पुलिस मात्र तलाशी के दौरान हथियार आदि जांचने में ही मशगूल रही। यह दलील कि धीरे-धीरे नियंत्रण पाना एक रणनीति थी, स्वीकार्य नहीं है क्योंकि अन्य किसी भी काम से महत्त्वपूर्ण अगर कुछ था, तो वह था भारी भीड़ को आने से रोकना। खट्टर की दूसरी विफलता थी संचार निपुणता का अभाव। दूसरी ओर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह लोगों के लगातार संपर्क में रहे और उन्हें स्थिति पर पूरे नियंत्रण का आश्वासन देते रहे। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ऐसा नहीं कर पाए। वह किंकर्त्तव्यविमूढ़ दिखे और चुपचाप बैठे रहे। उनके प्रवक्ताओं ने भी बड़े स्तर पर जनता से संपर्क कायम नहीं किया। उनके विनम्र दृष्टिकोण के कारण पारदर्शिता तथा कठिन परिश्रम से कार्य करने की उपलब्धियों पर एक तरह से बट्टा लग गया। अब चूंकि गुरमीत सिंह सलाखों के पीछे है और उसे 20 साल के कठोर कारावास की सजा भुगतनी होगी, ऐसा लगता है कि उसके उभरने के बाद अब उसका पतन एक कायरतापूर्ण स्थिति में होगा।

बस स्टैंड

प्रथम यात्री : बड़ी संख्या में पर्यटकों की कारें हिमाचल में प्रवेश करते समय गगरेट से यू-टर्न क्यों ले रही हैं?

दूसरा यात्री : वे शिकायत कर रहे हैं कि पंजाब की चकाचक सड़कों पर यात्रा करने के बाद गड्ढों से भरी हिमाचल की सड़कों पर चलना दुस्वप्न के समान है।

ई-मेल : singhnk7@gmail.com

विवाह प्रस्ताव की तलाश कर रहे हैं ? भारत मैट्रीमोनी में निःशुल्क रजिस्टर करें !