पिछली बार मैदान में थीं 16 पार्टियां

हिलोपा-बसपा पर थी बड़ी नजरें, सिर्फ महेश्वर सिंह पहुंच सके विधानसभा

शिमला— पिछले विधानसभा चुनावों में हिमाचल में राज्य व राष्ट्रीय स्तर की 16 पार्टियों ने मैदान में उतरकर अपना भाग्य आजमाया था। ममता भी आईं व मायावती की पार्टी भी, मगर कांग्रेस व भाजपा को ज्यादा चुनौती नहीं दे पाई। हिमाचल में ही हिलोपा ने एकमात्र सीट हासिल कर कुछ हद तक वर्ष 2012 के विधानसभा चुनावों में कई सीटों पर भाजपा के समीकरण जरूर बिगाड़े थे। हालांकि भाजपा नेताओं का दावा यही था कि उन्हें नहीं बल्कि कांग्रेस के वोट हिलोपा ने लिए। पिछले चुनाव में भाजपा व कांग्रेस के अलावा बसपा का दामन मेजर मनकोटिया ने थामा था। उन्होंने पंडित सुखराम की वर्ष 1998 में उतारी गई हिविकां की ही तर्ज पर सत्ता का रिमोट कंट्रोल हासिल करने के दावे तो बहुत किए, मगर बसपा तो कुछ नहीं कर सकी और मेजर मनकोटिया भी शाहपुर से खुद चुनाव हार गए। यहां तक कि प्रदेश में जड़ें जमा चुके वाम दलों की फेहरिस्त में से सीपीएम व सीपीआई के प्रत्याशी भी एक सीट तक हासिल नहीं कर सके। यहां नेशनल कांग्रेस पार्टी भी मैदान में थी, मगर उसके जमा-जोड़ भी बड़े दलों को नहीं छका सके। हिमाचल में अन्य राज्यों के जिन दलों ने अपना भाग्य आजमाया था, उनमें आल इंडिया तृणमुल कांग्रेस, लोक जनशक्ति पार्टी, शिवसेना और मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी भी शामिल थी। इनके प्रत्याशियों की विधानसभा चुनाव में शर्मनाक हार हुई। अन्य जिन दलों ने मैदान मारने के ऐलान किए थे, उनमें भारतीय बहुजन पार्टी, हिमाचल स्वाभिमान पार्टी, हिमाचल लोकहित पार्टी, हिंदोस्तान निर्मल दल और इंडियन जस्टिस पार्टी शामिल थी। इनके अतिरिक्त निर्दलीय भी मैदान में थे, जो ऐसे सभी राष्ट्रीय व अन्य राज्यों के दलों पर भारी पड़े। यानी चार निर्दलीय जीत कर विधानसभा पहुंचे, जो बाद में कांग्रेस के सहयोगी सदस्य बने।

क्या अब भी आएंगे दल

विधानसभा चुनाव 2017 के लिए अब ऐसे दल ढूंढे नहीं मिल रहे। हालांकि भाजपा व कांग्रेस से छिटके हुए नेता नए दलों की तलाश कर रहे हैं, मगर अभी तक भी बाहरी राज्यों व राष्ट्र स्तर के अन्य किसी दल के मैदान में उतरने की कोई सूचना नहीं है।