बंदरों के खौफ से बंजर होने लगे खेत

चंबा  —  चंबा सहित इसके विभिन्न क्षेत्रों में हर रोज बढ़ रहे बंदरों के आंतक ने किसानों व बागबानों का जीना हराम कर दिया है। खून पसीने की कमाई पर पड़ रही कुदरती मार के साथ मवेशियों व उत्पातियों के आतंक से किसान के खेत खलिहान बंजर होने की कगार पर पहुंच गए है। अब चंबा सहित इसके साथ लगती ग्राम पंचायत बाट, उटीप,  सरोल,  भद्रम,  कियाणी के साथ की दूरदराज के किसान भी बंदरों के उत्पात से काफी चिंता में हैं। किसानों देसराज, जग्गो राम , पवन कुमार, अनिल, चुनी लाल, मनोज, निधिया, ज्ञान चंद व हरदेव का कहना है, सुबह से शाम तक खेतों में पहरेदारी करने के बाद भी उत्पातियों से फसल सुरक्षित बचा पाना टेढ़ी खीर बन गया है। जंगलों एवं नदी -नालों के साथ लगने वाले क्षेत्रों में बंदरों का काफी आतंक फैल रहा है। जिससे पकने से पहले खेतों में ही फसल पूरी तरह से तबाह हो रही है। पहाड़ों के  वातावरण में अब 12 माह तक बर्फ में ही बंदर बिना परेशानी से रह रहे हैं।  किसानों का कहना है कि पहले सर्दी का मौसम आने से पहले की बंदर इन पहाड़ी क्षेत्रों से भाग जाते थे, लेकिन समय के बदलाव से बदलने लगे हैं। उत्पातियों के आतंक से कई किसानों ने खेतों के कार्य को छोड़ कर अन्य धंधे को अपना लिया है। जिससे सोना उगलने वाले खेत भी बंजर हो गए हैं। किसानों का कहना है कि सरकार की ओर से बंदरों को मारने व पकड़ने के लिए कई तरह के कार्यक्रम व योजनाएं चलाईं, लेकिन इनकी संख्या में किसी तरह का अंतर नहीं आया है। किसानों का कहना है  कि जो सरकार उत्पातियों से निजात दिलवाने के लिए ठोस नीति पर कार्य करेगी  उसे ही आने वाले विधानसभा चुनावों में बहुमत दिया जाएगा। ताकि आने वाले दिनों का किसान बिना चिंता के फसल को बीज सके। किसानों का कहना है कि अगर सरकार व विभाग उत्पातियों को खत्म करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाता है तो किसानों की बची हुई भूमि भी बंजर हो जाएगी। जिससे हर  कोई बाजारों पर निर्भर हो जाएगा। जो काफी चिंतनीय है। बहरहाल, किसानों का कहना है कि सरकार की ओर से बंदरों को मारने व पकड़ने के लिए कई तरह के कार्यक्रम व योजनाएं चलाई पर इनके संख्या में किसी भी तरह की कमी नहीं हो पा रही है।