मोदी कैबिनेट के फेरबदल में नया क्या है

प्रो. एनके सिंह

लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

भारत में पहली बार मंत्रियों के प्रदर्शन के आधार पर बदलाव किया गया है तथा अच्छे काम के लिए पुरस्कार देना तथा नाकामी के लिए दंडित करने के नियम को लागू किया गया है। यह कारपोरेट प्रबंधन है तथा इन नियमों को राजनीति में आम तौर पर प्रयुक्त नहीं किया जाता है। वहां तो अधिकतर चुनावी संभावनाओं व विफलताओं को ध्यान में रखकर ही बदलाव किए जाते हैं। इस तरह प्रधानमंत्री मोदी उपलब्धियों को मापने के एक अन्य सिद्धांत को पेश कर रहे हैं…

मोदी मंत्रिपरिषद में फेरबदल में नया क्या है? सरकार में बिलकुल हालिया परिवर्तन, जैसा कि मंत्रिपरिषद फेरबदल से लगता है, सरकार की कार्यशैली में कुशल प्रबंधन के सिद्धांतों को शामिल करना है। मंत्रिपरिषद को नया रूप देकर तथा उसमें कैबिनेट व राज्य स्तर के नौ मंत्रियों को शामिल करके प्रधानमंत्री ने सरकार के काम करने के तरीके में बड़ा परिवर्तन लाया है। हालांकि यह परिवर्तन अभी केवल शुरुआत है और आगे के लिए व्यापक सोच की जरूरत है। भारत में पहली बार मंत्रियों के प्रदर्शन के आधार पर बदलाव किया गया है तथा अच्छे काम के लिए पुरस्कार देना तथा नाकामी के लिए दंडित करने के नियम को लागू किया गया है। यह कारपोरेट प्रबंधन है तथा इन नियमों को राजनीति में आम तौर पर प्रयुक्त नहीं किया जाता है। वहां तो अधिकतर चुनावी संभावनाओं व विफलताओं को ध्यान में रखकर ही बदलाव किए जाते हैं। प्रधानमंत्री उपलब्धियों को मापने के एक अन्य सिद्धांत को पेश कर रहे हैं। विभिन्न मंत्रियों की उपलब्धियों की रेटिंग करके उन्होंने किसी को पुरस्कृत किया है, तो किसी को दंडित भी किया है। पदोन्नत किए गए चार मंत्रियों का ही उदाहरण लें। धर्मेंद्र प्रधान, निर्मला सीतारमण, नितिन गडकरी व पीयूष गोयल को सियासी शतरंज के बोर्ड पर रखा गया है और उन्हें अतिरिक्त शक्ति देकर ज्यादा संवेदनशील व जोखिमपूर्ण पद सौंपे गए हैं। दूसरी ओर उन्होंने चार ऐसे मंत्रियों को हटा दिया जो बेहतर प्रदर्शन नहीं कर सके।

मोदी के हालिया मंत्रिमंडलीय फेरबदल में अधिक महत्त्वपूर्ण यह है कि उन्होंने कैसे उमा भारती व विजय गोयल का प्रभाव कम कर दिया। उन्हें कम महत्व वाले पद दिए गए हैं। आम तौर पर मंत्रिपरिषद में बदलाव ऐसे होते हैं कि उनसे कोई ज्यादा अपेक्षा नहीं होती। कई बार भ्रष्टाचार के मामलों के कारण कानूनी बाध्यताओं के दृष्टिगत बदलाव होते हैं। लेकिन इस मामले में लगता है कि बदलाव उपचार की कसरत तथा शुद्धि प्रक्रिया को मजबूत करने का प्रयास है। यह चार मंत्रियों को हटाने के दृष्टिगत न केवल एक सर्जरी है, बल्कि उमा भारती व विजय गोयल जैसे विफल मंत्रियों के मामले में एक संदेश भी है। शायद सबसे ज्यादा हैरानी की बात यह है कि नागरिक सेवाओं के तीन विशेषज्ञों को मंत्रिपरिषद में शामिल कर लेना। इनमें आरके सिंह भारतीय प्रशासनिक सेवा से हैं और केंद्रीय गृह सचिव रह चुके हैं। वीपी सिंह भारतीय पुलिस सेवा से हैं, जबकि अल्फोंसे भारतीय प्रशासनिक सेवा से हैं। अपने-अपने क्षेत्रों में दक्ष रहे इन लोगों को मंत्रिपरिषद में शामिल करके मोदी ने सरकार की दक्षता बढ़ाने का प्रयास किया है। लंबे समय से शिकायत चल रही थी कि मोदी कैबिनेट में योग्य, विशेषज्ञ व अनुभवी लोगों की कमी है।

लेकिन दुख की बात है कि दक्ष लोगों के लिए उनकी नजर केवल घिसी-पिटी सेवाओं पर ही रही। उन्हें कानूनी, शैक्षणिक व वैज्ञानिक क्षेत्रों में दक्ष लोगों की खोज करनी चाहिए थी।  मुझे याद है कि कैसे इंदिरा गांधी ने इंडियन एयरलाइंस के चेयरमैन मोहन कुमारमंगलम को अपने मंत्रिमंडल में शामिल करके सरकार को दक्ष बनाने का परीक्षण किया था। उन्होंने उन्हें इस्पात मंत्री बनाया था। वह ऐसा दौर था जब रूसी मॉडल के आधार पर भारी उद्योग को आत्मनिर्भर बनाने के नेहरू के नजरिए से विकास का काम चल रहा था। इस परिवर्तन का मैं भी साक्षी व भागीदार रहा हूं। हमने व्यावसायिक प्रबंधकों की रचनात्मक आत्मा को नियंत्रित कर रही लालफीताशाही को खत्म किया था। इस तरह हिंदोस्तान स्टील को भारतीय इस्पात प्राधिकरण लिमिटिड (सेल) में बदल दिया गया था। सेल तब पूरे इस्पात खान क्षेत्र को नियंत्रित करने लगा था। अब तक इस मंत्रालय का सचिव एक व्यावसायिक प्रबंधक था, जिसने अतिरिक्त मेहनत कर उत्पादन तथा पुनर्स्थापन में प्रगतिवादी भूमिका निभाई। मोदी नागरिक सेवाओं का चेहरा नहीं बदल पाए हैं और इन सेवाओं से जुड़े लोगों को सरकार में शामिल कर उन्होंने उसी संस्कृति को बढ़ावा दिया है, जो लचर कार्य संस्कृति का प्रतीक बनी हुई है।

भारत को अपनी प्रणाली में व्यापक परिवर्तन की जरूरत है। मोदी ने नोटबंदी लागू की और जीएसटी जैसा कानून पास करवाया, लेकिन कार्यान्वयन का काम उसी घिसी-पिटी प्रणाली के हाथ में दे दिया गया है। अब यह सहने के लिए कोई तैयार नहीं है कि मौलिक दृष्टिकोण का अभाव चलता रहे तथा सिस्टम में कोई बदलाव न लाया जाए। नौकरशाही द्वारा बनाया गया लालफीताशाही का किला तोड़ने का कोई प्रयास इस फेरबदल में हुआ नहीं लगता है। मोदी ने अधिकतर घोषणाओं में आश्चर्यचकित कर देने वाली एक शैली अपनाई है। इसके दो फायदे हैं। पहला, इससे लगता है कि निर्णय लेने की प्रणाली पर कोई बाहरी दबाव नहीं है। दूसरा, जिन बदलावों की घोषणा की गई है, उनके व्यापक प्रभाव होंगे। योगी आदित्यनाथ, देवेंद्र फड़नवीस और अन्यों को मुख्यमंत्री बनाने के उदाहरण हमारे सामने हैं। इन्हें यह पद देने की किसी को भनक तक नहीं लगी थी। लेकिन इस मामले में ऐसा कुछ लग नहीं रहा है। निर्मला सीतारमण को रक्षा मंत्री बनाने की घोषणा हास्यास्पद लग रही है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि वह वाणिज्य मंत्री के रूप में अच्छा काम कर रही थीं, उन्हें पदोन्नति दी जा सकती थी, लेकिन उन्हें रक्षा मंत्री बना देना कल्पना से परे है। उन्हें ऐसे समय में इस संवेदनशील पद पर नियुक्त किया गया है, जबकि सीमा पर तनाव चल रहा है। फिर भी ऐसा जोखिम लेकर देश का एक महिला में विश्वास तो झलकता ही है। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने जो विश्वास उनमें जताया है, उसे कायम रखने के लिए उन्होंने अपने स्तर पर सक्रियता दिखानी शुरू भी कर दी है। आशा है कि वह इस कठिन चुनौती को भी पार कर लेंगी। मोदी ने एक और निर्णय लेकर राजनेताओं तथा आम लोगों को आश्चर्य में डाल दिया है। इसमें जेडीयू, शिवसेना व एआईडीएमके को स्थान नहीं मिल पाया है। मोदी मंत्रिपरिषद में अब 75 मंत्री हैं, जबकि मनमोहन सिंह की टीम में 77 मंत्री थे। छूट गए दलों को अभी भी स्थान मिल सकता है। बहरहाल मोदी की नई सोच का एक तरह से परीक्षण चल रहा है और देश उत्सुकता के साथ उनकी ओर देख रहा है।

बस स्टैंड

पहला यात्री : (लग्जरी कार में एक विधायक को देखकर) चुनाव नजदीक हैं, मुझे क्यों नहीं बताते हो कि कैसे विधायक बना जाए?

दूसरा यात्री : अगर मुझे यह पता होता तो मैं खुद बस स्टैंड पर खड़ा न होता।

ई-मेलः singhnk7@gmail.com