राजनीति में अब न तो उसूल, न ही विचारधारा

मुश्किल होती सियासत पर कुलदीप कुमार ने रखी राय

ऊना— बदलते परिवेश में राजनीति एक चुनौतीपूर्ण दायित्व बन गया है। राजनीति की डगर अब आसान नहीं रही। वोटर जहां शिक्षित व जागरूक हुआ है, वहीं अब राजनेताओं से लोगों की अपेक्षाएं भी बढ़ी हैं। बेशक इसके लिए राजनेता स्वयं ही कहीं न कहीं दोषी भी हैं। सिस्टम को सुधारने व कानून बनाने तथा इसे ईमानदारी से लागू करवाने के स्थान पर व्यक्तिगत मसलों को दलगत राजनीति के आधार पर सेटल करवाने की परिपाटी ऐसी पड़ी है कि अब यह कवायद राजनेताओं के लिए सिरदर्दी का आलम भी बन चुकी है। मेरे घर को रास्ता, मेरे बेटे-भाई को नौकरी, घर निर्माण के लिए आर्थिक मदद, सिलाई मशीन, वॉशिंग  मशीन, साइकिल, इंडक्शन कुकर तथा अनेक प्रकार की सौगातों की भेंट… यह फेहरिस्त है कि समाप्त होने का नाम ही नहीं लेती। कुल मिलाकर नेताओं ने अपने लिए ही बड़ी मुसीबत मोल ले ली है। खासकर पुरानी पीढ़ी के नेता इस दौर में असहज महसूस करते हैं। ऐसे ही कुछ सवालों पर चार बार के विधायक और वर्तमान में वित्तायोग के अध्यक्ष कुलदीप कुमार ने कहा कि पिछले एक दशक से राजनीति का स्वरूप ही बदल गया है। जनता में जागरूकता बढ़ी है, वहीं सूचना प्र्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आई क्रांति ने भी बड़ा बदलाव लाया है। छोटे से छोटा कार्यकर्ता भी त्वरित रिजल्ट चाहता है। मोबाइल पर ही काम बता दिए जाते हैं। बेशक कार्यकर्ताओं के सुख-दुख में शामिल होना परिवार की अनुभूति देता है, लेकिन नितांत व्यक्तिगत व घरेलू कार्यक्रमों में भी राजनेताओं की शिरकत अब केवल वोट बैंक की राजनीति से ही प्रेरित है। राजनीति में आ रही दिक्कतों पर वह कहते हैं कि अब मतदाता जागरूक हो चुके हैं। पार्टी वर्कर्ज की अपेक्षाएं भी बढ़ गई हैं। लोकतांत्रिक पद्धति में राजनीति में टिके रहने के लिए मतदाताओं की कसौटी पर खरा उतरना पड़ता है। मतदाताओं को संतुष्ट करवा पाना बड़ी चुनौती है। विकासात्मक राजनीति पर कुलदीप कुमार कहते हैं कि अभी भी बहुत स्कोप हैं। एक जनप्रतिनिधि को संसद, विधानसभा, पंचायती राज संस्थाओं व स्थानीय निकायों में अपने क्षेत्र के विकास के मुद्दों को प्रमुखता से उठाकर उनका निराकरण करने का प्रयास करना चाहिए। पिक एंड चूज के सिद्धांत से परहेज कर सभी के लिए समान अवसर आगे बढ़ने के सुनिश्चित करने के लिए ईमानदारी से प्रयास करना चाहिए।

लगातार बढ़ रही अवसरवादिता

कुलदीप कुमार कहते हैं कि राजनीति असूलों व विचारधारा पर आधारित होनी चाहिए, लेकिन अब न तो उसूल हैं और न ही विचारधारा। राजनीति में अवसरवादिता बढ़ी है। चाटुकारिता व षड्यंत्रों का दौर बढ़ गया है। टिके रहने के लिए नेताओं को वोटरों की सभी मांगों के आगे नतमस्तक होना पड़ता है।

वोट बैंक की कठिनाइयां

कुलदीप कुमार कहते हैं कि पार्टी कार्यकर्ता हो या मतदाता, सब अपना काम करवाना चाहते हैं। वोट बैंक को बनाए रखने के लिए नेताओं को झूठे-सच्चे आश्वासन देने पड़ते हैं। कुछ नेता तो केवल जुमलों से ही अपनी राजनीति चमकाए हुए हैं, जबकि कुछ वर्ग विशेष को खुश कर अपनी राजनीतिक जमीन बचाने के प्रयासों में लगे रहते हैं। वोट बैंक के लिए कई बार नियमों के विरुद्ध जाकर कार्य करना पड़ता है, जिससे सिस्टम को आघात पहुंचता है।

स्वच्छ राजनीति को अधिमान दें

लोकतंत्र में मतदाता व आम जनता सर्वोपरि होते है। वह मिलकर सरकार बनाते व गिराते हैं। कुलदीप कुमार का मत है कि वोटरों व जनता को साफ-सुथरी राजनीति को अधिमान देना चाहिए तथा धन-बल, लालच देकर व जुमलों के सहारे सत्ता हथियाने का प्रयास करने वालों को निरूत्साहित करना चाहिए।