शारीरिक श्रम से कतराती युवा पीढ़ी

सुरेंद्र मिन्हास

लेखक, बिलासपुर से हैं

बच्चों में जहां रोग प्रतिरोधक क्षमता कम है, वहीं इनमें शारीरिक कार्य न करने से शरीर में जान भी नहीं है। आवश्यकता इस बात की है कि लोग अपने बच्चों को कृषि, बागबानी और पशुपालन कार्यों में अपने साथ लगाएं, जिससे देश के भावी कर्णधारों का शरीर बलवान बने, उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास हो…

भारत एक कृषि प्रधान देश रहा है। यहां की आबादी का 1951 के अनुसार कृषि कार्यों को करने का प्रतिशत 80 से अधिक था और 20 प्रतिशत जनसंख्या अन्य व्यवसायों पर निर्भर थी। स्वतंत्रता के बाद ज्यों-ज्यों देश तथा प्रदेश औद्योगिक, व्यापारिक तथा अन्य व्यवसायों में तरक्की करता गया, त्यों-त्यों कृषि व पशुपालन व्यवसाय से जुड़े लोगों का प्रतिशत कम होता गया। आज हालात ऐसे हैं कि देश-प्रदेश में कोई भी माता-पिता अपने बच्चों के लिए कृषि या पशुपालन व्यवसाय नहीं चुन रहे। भारत में कृषि कार्य तथा पशुपालन को हेय दृष्टि से देखा जाने लगा है। मां-बाप भी आज अपने लाड़लों के चेहरे पर पसीने की बूंदें नहीं देख सकते और न ही उनके गोबर में सने हाथ देख सकते हैं। यह माना जा सकता है कि पढ़ाई में अव्वल रहने वाला युवा अच्छी नौकरी की आशा रखता है या मान लो कि कोई बच्चा बीटेक कर ले, तो यह नौकरी ही पाने की फिराक में रहेगा, भले ही सरकारी मिले या निजी कंपनियों में। हैरानी यह कि युवा को बेरोजगारी या पांच-सात हजार की नौकरी तो मंजूर है, लेकिन कृषि सरीखे स्वाभिमानी कार्य अब उसे पसंद नहीं। जो बच्चे पढ़ाई में औसत या निम्न दर्जे वाले होते हैं, वे भी खेतों में कार्य करने बारे कतई रुचि नहीं रखते और निजी या सरकारी नौकरी ही चाहते हैं। किसी का भी बच्चा हो, जब भी कोई उससे उसके जीवन उद्देश्य के बारे में पूछा जाए, तो बच्चा तत्काल रटा-रटाया जवाब देता है-मैं तो अंकल बड़े होकर डाक्टर ही बनूंगा या इंजीनियर बनकर मां-बाप का नाम चमकाऊंगा। सभी बालक यही कहेंगे कि वह इंजीनियर, सैनिक, अध्यापक या वकील बनेंगे, परंतु हजारों में एक भी बालक किसान नहीं बनना चाहेगा। जिसकी मेहनत से हर पेशे के लोग जिंदा हैं और अन्न खाकर अपने पेशे को चला रहे हैं, वे लोग या उनके बच्चे ही कृषि या पशुपालन का व्यवसाय नहीं अपनाना चाहते। सुबह उठते ही सभी लोगों को दूध, दही, छाछ, मक्खन, घी और दूध से निर्मित अन्य उत्पाद तो चाहिए, परंतु स्वयं वे पशुपालन व्यवसाय नहीं अपना सकते।

यहां यह भी तर्कसंगत है कि जिनके पास कृषि भूमि या बेकार भूमि है, वही इन व्यवसायों को अपनाने के बारे सोच सकते हैं। जिनके पास पर्याप्त भूमि ही न हो, वे कैसे इस व्यवसाय के बारे सोच सकते हैं। कहते हैं कि यदि मन में किसी कार्य को करने की इच्छा होती, तो कुछ भी असंभव नहीं। बड़े जमींदारों की भूमि किराए पर लेकर भी खेती की जाए तो भी घाटे का सौदा नहीं। ऐसे ही यदि पशुपालन व्यवसाय करना हो, तो यदि घास-तूड़ी मोल लेकर भी इस कार्य को करें, तो भी लाभ होना निश्चित है। कहने का उद्देश्य यह है कि जिनके पास खेती योग्य भूमि या बेकार भूमि उपलब्ध भी है, वे भी अपने बच्चों को कृषि कार्यों के प्रति प्रेरित नहीं कर रहे। किसान या पशुपालन को यदि समाज सम्मान की नजर से देखेगा, तो वे तथा अन्य लोग भी इस कार्य के प्रति प्रेरित होंगे। आज का अभिभावक अपने बच्चों को मिट्टी छूने को भी मना करता है तथा इसे बच्चे की घटिया हरकत मानता है। आज से 40 वर्ष पूर्व तो बालक मिट्टी में खेल-मरेल कर ही बड़े हुए तथा खेतों में पसीना खपा उनमें जहां रोग प्रतिरोधक क्षमता अत्यधिक थी, वहीं वे बहुत ही कम बीमार पड़ते थे। आज हालात इससे विपरीत हैं। बच्चे खेत का काम कमा कर राजी नहीं और न ही मां-बाप उन्हें कमाने के लिए कहते हैं। बच्चों का अधिकतर समय मोबाइल और इंटरनेट पर ही बीतता है। पढ़ाई के साथ-साथ मोबाइल का भी इनकी सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है। तकनीकी के इस प्रतिकूल प्रभाव व प्रसार से अनभिज्ञ मां-बाप एक तरह की आभासी दुनिया में जी रहे हैं। छोटी उम्र में ही बच्चों की बीमारियों पर अत्यधिक खर्च के बावजूद वे बच्चों के स्वस्थ भविष्य को लेकर चिंतित नहीं दिखते। यह बेहद भयावह स्थिति है और समाज इनसे हर दिन किसी नए रूप में दो-चार हो रहा है। बच्चों के तन व मस्तिष्क पर इसका असर साफ देखा जा सकता है। आज के बच्चों में जहां रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम है, वहीं इनमें शारीरिक कार्य न करने से शरीर में जान भी नहीं है। आज की आवश्यकता है कि लोग अपने बच्चों को कृषि, बागबानी और पशुपालन कार्यों में अपने साथ लगाएं, जिससे देश के भावी कर्णधारों के शरीर बलवान बनें, उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास हो और ये रोगमुक्त रहें। यह सब तभी संभव है जब हम अपने बच्चों को शुद्ध भोजन, दूध, दही, मक्खन, फल-जूस तथा शुद्ध वायु प्रदान करेंगे। यह शुद्धता तभी मिलेगी, यदि हम तथा हमारे बच्चे खेतीबाड़ी, पशुपालन तथा बागबानी का शौक रखें तथा साथ ही अपने साथ बच्चों से भी खेत-खलिहानों में कार्य में सहयोग लें, जिससे उनमें स्फूर्ति और तेज का संचार होगा।