शिक्षा के मंदिर में अपराध

(पूजा, मटौर )

मां-बाप के बाद जहां बच्चा जीवन के लिए उपयोगी ज्ञान ग्रहण करता है, तो वह विद्यालय ही है। अभिभावक जब बच्चों को विद्यालय भेज देते हैं, तो वे कभी उनकी सुरक्षा के प्रति आशंकित नहीं होते। अब अगर उस शिक्षा के मंदिर में ही अपराध होने लगे हैं, तो यह गहन चिंता व शर्म का विषय होना चाहिए। लड़कियां तो पहले ही इस समाज में असुरक्षित हैं, लेकिन अब अगर लड़के भी सुरक्षा की मांग करें तो बड़ी चिंता की बात है। क्या कसूर था उस सात वर्षीय बच्चे का, जिसने अभी शिक्षा का ककहरा भी पूरी तरह से न सीखा होगा और उसकी शिक्षा में इस तरह ग्रहण लगा दिया गया। क्यों आदमी इतना वहशी बन गया है कि एक मासूम की जिदंगी खत्म करते वक्त भी उसकी रुह न कांपी। इस तरह के अपराधियों को भी पता है कि इस दरिंदगी के बाद सिर्फ जांच होगी, न्यायालयों में केस चलेगा, तारीख-दर-तारीख में केस लंबा खिंचता जाएगा और अंततः जुर्माने या थोड़े से कारावास की सजा होगी। न्यायालय से अपेक्षा है कि हमें अब इन अपराधियों के लिए तारीख पर तारीख नहीं चाहिए। इनको जल्द से जल्द कोई इतनी वीभत्स सजा मिलनी चाहिए कि अगली बार कोई ऐसा अपराध करने से पहले सौ बार सोचे। क्या न्यायपालिका ऐसी कोई नजीर पेश कर पाएगी?