संदेह के घेरे में पुलिस की विश्वसनीयता

विजय शर्मा

लेखक, हिम्मर, हमीरपुर से हैं

इसे पुलिस की संवेदनहीनता कहें, लापरवाही कहें या आपराधिक साठगांठ कि वह अपराधियों को पकड़ने के बजाय सबूत नष्ट करने में जुट गई है। अपराध की जड़ें हिमाचल पुलिस में कितनी गहरी हो चुकी हैं कि उसमें आईजी और डीएसपी स्तर के अधिकारी भी पकड़े जा रहे हैं…

सीबीआई द्वारा आईजी और डीएसपी स्तर के अधिकारियों समेत आठ पुलिस कर्मियों की गिरफ्तारी से देवभूमि शर्मसार फिर हुई है। इस मामले में पुलिस की भूमिका शुरू से ही संदिग्ध रही है और इस मामले की कई परतें खुलनी और प्रभावशाली लोगों के चेहरों से नकाब हटना अभी बाकी है। अगर बिटिया को न्याय दिलाने के लिए लोग सड़कों पर न उतरते, तो पुलिस अपराधियों के दबाव में किसी निर्दोष को फंसाकर मामला रफा-दफा कर चुकी होती। ये कथित प्रभावशाली लोग भी जल्दी ही बेनकाब होंगे, लेकिन सीबीआई जिन लोगों को गिरफ्तार कर रही है, उन्हें उनके अंजाम तक पहुंचाना सीबीआई के लिए बड़ी चुनौती होगी। शिमला पुलिस के अधिकारियों की गिरफ्तारी से यह साबित हो गया है कि पुलिस जबरन गुनाह कबूल करवाने की कोशिश कर रही थी, जिसके कारण एक संदिग्ध की थाने में मौत हो गई और पुलिस ने हत्या का आरोप एक अन्य संदिग्ध पर मढ़ दिया था। लेकिन सीबीआई ने इन आठ पुलिसकर्मियों को उसी संदिग्ध की मौत के मामले में गिरफ्तार किया है और अब उनसे व्यापक पूछताछ की जा रही है। इस मामले के मुजरिम इतने शातिर हैं कि वे कानून और पुलिस की कार्यप्रणाली से भलीभांति परिचित हैं। अतः ऐसे अभियुक्तों से पूछताछ, उनसे गुनाह कबूलवाना, सबूत इकट्ठे करना और अन्य अभियुक्तों के बारे में जानकारी जुटाना तथा उन्हें उनके गुनाह की सजा दिलवाना सीबीआई के लिए टेढ़ी खीर साबित होगा। सवाल यह भी उठता है कि इतने उच्च स्तर के पुलिस अधिकारी किसके दबाव में काम कर रहे थे और ये आखिर बचाना किसे चाहते थे। अपराध की गंभीरता के मद्देनजर एक एसआईटी गठित की गई थी, जिसका नेतृत्व आईजी पुलिस जहूर जैदी कर रहे थे। उनकी टीम में डीएसपीए एसएचओ और अन्य पुलिसकर्मी थे।

प्रदेश का गृह विभाग स्वयं मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के पास है और वही पुलिस के मुखिया हैं। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह बार-बार इस एसआईटी की जांच को सही बता रहे थे। जब बवाल बढ़ा तो मजबूरन मामला सीबीआई को सौंपना पड़ा। थाने में हत्या और उसके बाद हुई लीपापोती यह इशारा कर रही है कि कुछ सफेदपोश लोगों को बचाने की कोशिश हो रही थी और जल्दबाजी में पुलिस टीम गलती पर गलती करती गई। पिछले कुछ समय से हिमाचल में ड्रग्स और नशे का कारोबार बढ़ा है, जिसके कारण अपराधों और विशेषकर महिला अपराधों में इजाफा हुआ है। यह सारा कारोबार भ्रष्ट पुलिसकर्मियों और सफेदपोशों के सहारे ही पनप रहा है। महानगरों में संगठित आपराधिक गिरोहों से पुलिस की मिलीभगत और सुपारी लेकर एनकाउंटर की घटनाएं तो कभी-कभार सुनी जाती थीं, लेकिन हिमाचल जैसे शांत राज्य में यदि आपराधिक घटनाओं में वृद्धि हो रही है और ड्रग्स का कारोबार चल रहा है तो यह ऐसे ही भ्रष्ट पुलिसकर्मियों के सहारे फल-फूल रहा है और अपराध और अपराधियों को संरक्षण मिल रहा है। हमारी शासन व्यवस्था इतनी निकम्मी हो चुकी है कि उसकी संवेदना ही समाप्त हो चुकी है। शासन व्यवस्था में तो कर्मचारियों का बोलबाला है कि हिमाचल राजनीतिक दखलअंदाजी के चलते पुलिस प्रशासन अपने आकाओं की चाकरी करते हुए संवेदनहीनता की पराकाष्ठा को पार कर गया है। अन्यथा एक अबोध नाबालिग छात्रा के साथ अपराधियों ने जो किया, वह निर्भया कांड से भी कहीं ज्यादा अमानवीय और दहलाने वाला अपराध था। बावजूद इसके हिमाचल पुलिस की संवेदनहीनता ने देश को झकझोर दिया है। पुलिस की कार्यप्रणाली तो संदिग्ध थी ही, लेकिन वीरभद्र सरकार के प्रति भी जनता में भारी रोष है। इस मामले में हिमाचल पुलिस और सरकार पूरी तरह नाकाम साबित हुई है। नाम, शोहरत, प्रोमोशन और रुपयों के लालच में कुछ पुलिस अधिकारी कानून को ताक पर रख खुलकर कानून से खेल रहे हैं। कुछ माह पहले शिमला में इन्हीं जहूर जैदी के भरोसे पुलिस ने शोघी बैरियर पर भारी मात्रा में नशीला पदार्थ पकड़ने का दावा किया था।

नशे की खेप किसी तस्कर के कब्जे से नहीं, बल्कि सोलन में तैनात एचआरटीसी के रीजनल मैनेजर महेंद्र राणा के वाहन से बरामद दिखाई गई थी और उन्हें गिरफ्तार किया था। पुलिस ने इसे चिट्टा बताकर गिरफ्तारी की थी, लेकिन फोरेंसिक जांच में यह बेकिंग सोडा निकला है। महेंद्र राणा को अदालत ने बरी कर दिया है। पुलिस ने इसे चिट्टा बताकर गिरफ्तारी की थी, लेकिन फोरेंसिक जांच में यह बेकिंग सोडा निकला है। महेंद्र राणा बरी तो हो गए हैं, लेकिन उसके साथ पुलिसिया कार्यप्रणाली पर एक और सवाल चस्पां हो गया। आपराधिक मामलों में पुलिस न जाने कितने निर्दोषों को फंसाती होगी और अपराधी बच निकलते होंगे। यही सब बिटिया प्रकरण में हो रहा था। अपराध की जड़ें हिमाचल पुलिस में कितनी गहरी हो चुकी हैं कि उसमें आईजी और डीएसपी स्तर के अधिकारी भी पकड़े जा रहे हैं। हिमाचल प्रदेश का हर बाशिंदा इस घटना के बाद अपनी बेटियों की सुरक्षा को लेकर चिंतित और आक्रोशित है। इसे पुलिस की संवेदनहीनता कहें, लापरवाही कहें या आपराधिक साठगांठ कि वह अपराधियों को पकड़ने के बजाय सबूत नष्ट करने में जुट गई है। इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही माना जाएगा और कहीं न कहीं पुलिस को शक की निगाह से ही देखा जाएगा। सीबीआई को अब समझ आ गया है कि राज्य सरकार द्वारा गठित एसआईटी सबूत नष्ट करने और अपराधियों को बचाने की फिराक में थी। लेकिन इस वारदात से हिमाचल पुलिस की छवि दागदार और महकमा शर्मसार हुआ है।