सच्च शिष्य

स्वामी विवेकानंद

गतांक से आगे…

केवल श्रीगुरु ही जानते हैं कि कौन सा मार्ग हमें पूर्णत्व की ओर ले जाएगा। हमें इस संबंध में कुछ भी ज्ञान नहीं, हम कुछ भी नहीं जानते, इस प्रकार का यथार्थ नम्र भाव आध्यात्मिक अनुभूतियों के लिए हमारे हृदय के द्वार खोल देगा। जब तक हम में अहंकार का लेश मात्र भी रहेगा, तब तक हमारे मन में सत्य की धारणा कदापि नहीं हो सकती। तुम सबको यह अहंकार रूपी शैतान को अपने हृदय से निकाल देना चाहिए। आध्यात्मिक अनुभूति के लिए संपूर्ण आत्म समर्पण ही एकमात्र उपाय है। मेरा विषय है शिष्यत्व। मैं नहीं जानता कि मैं जो कहूंगा, वह तुमको कैसा लगेगा। इसको स्वीकार करना तुम्हारे लिए कुछ कठिन होगा। इस देश में गुरुओं और शिष्यों के जो आदर्श हैं, वे हमारे देश के ऐसे आदर्शों से बहुत भिन्न हैं। मुझे भारत की एक पुरानी लोकोक्ति याद आ रही है, गुरु तो लाखों मिलते हैं, पर शिष्य एक भी पाना कठिन है। बात सही मालूम होती है। आध्यात्मिकता की प्राप्ति में एक महत्त्वपूर्ण वस्तु शिष्य की मनोवृत्ति है, जब अधिकारी योग्य होता है, तो दिव्य प्रकाश का अनायास आविर्भाव होता है। सत्य को प्राप्त करने के लिए शिष्य के लिए क्या आवश्यक है? महान ऋषियों ने कहा है कि सत्य प्राप्त करने में निमिष मात्र लगता है। प्रश्न केवल जान लेने भर का है। स्वप्न टूट जाता है, उसमें देर कितनी लगती है? एक सेकंड में स्वप्न का तिरोभाव हो जाता है। जब भ्रम का नाश होता है, उसमें कितना समय लगता है? पलक झपकने में जितनी देर लगती है, उतनी। जब मैं सत्य को जानता हूं, तो इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं होता कि असत्य गायब हो जाता है। मैंने रस्सी को सांप समझा था और अब मैं जानता हूं कि वह रस्सी है। प्रश्न केवल आधे सेकंड का है। और सब कुछ हो जाता है, तो वह है वास्तविकता। इसे जानने में कितना समय लगता है? यदि हम इनसान हैं और सदा से वही हैं तो इसे न जानना अत्यंत आश्चर्य की बात है। एकमात्र स्वाभाविकता यह है कि हम इसे जानें। इसका पता लगाने में युग नहीं लगने चाहिए कि हम सदा क्या रहे हैं और अब क्या है? फिर भी स्वतः प्रत्यक्ष सत्य को प्राप्त करना कठिन जान पड़ता है। इसकी एक धूमिल झांकी मिलना आरंभ होने के पूर्व युग पर युग बीत जाते हैं। ईश्वर जीवन है, ईश्वर सत्य है। हम इस विषय पर लिखते हैं, हम अपने अंतःकरण में अनुभव करते हैं कि यह सत्य है कि आज यहां, अतीत और भविष्य में ईश्वर के अतिरिक्त अन्य सभी वस्तुएं मिथ्या हैं। फिर भी हममें से अधिकांश लोग जीवन भर एक से बने रहते हैं। हम असत्य से चिपके रहते हैं और सत्य की ओर अपनी पीठ फेरते हैं। हम सत्य को प्राप्त करना नहीं चाहते। हम नहीं चाहते कि कोई हमारे स्वप्न को तोड़े। तो तुम देखते हो कि गुरुओं की आवश्यकता नहीं है। सीखना कौन चाहता है? पर यदि कोई सत्य की अनुभूति प्राप्त करना चाहता है और भ्रम को जीतना चाहता है, यदि वह सत्य को किसी गुरु से प्राप्त करना चाहता है तो उसे सच्चा शिष्य होना होगा।