सायरी देव बालक महेश्वर मेला

हिमाचल भूमि अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जानी जाती है।  यहां के अधिकांश मेले, त्योहार और उत्सव भी प्राचीन परंपराओं, धार्मिक मान्यताओं के आधार पर मनाए जाते हैं। हिमाचल में कई मेले अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और कई राष्ट्रीय स्तर पर मनाए जाते हैं। यहां के ग्रामीण मेले धार्मिक मान्यताओं,फसलों के पकने और काटने पर मनाए जाते हैं। अधिकांश ग्रामीण मेले ग्रामीण देवता के समक्ष मनाए जाते हैं। ऐसा ही एक ग्रामीण मेला मंडी के गांव सायरी में देव बालक महेश्वर के मंदिर में मनाया जाता है। यह मेला देवता से व्याधियों (बीमारियों) से रक्षा करने तथा मक्की की फसल के पक जाने पर कटाई से पहले देवता के दरबार में हाजिरी देने पर मनाया जाता है। मंडी में रबी और  खरीफ की फसल को पहाड़ी भाषा में न्याह और सायर की फसलें कहा जाता है। मंडी से 10 किमी. दूर है मझवाड़ पंचायत। इस पंचायत में एक गांव है सायरी। इस गांव में है देव बालक महेश्वर का मंदिर। देव बालक महेश्वर सायर को बड़ा देव कमरू नाग का दूसरा पुत्र माना जाता है। इस देवता को वर्षा के साथ-साथ व्याधियों का भंडारी माना जाता है। सायरी गांव एक पहाड़ी क्षेत्र है। यहां की मुख्य फसल मक्की है। बरसात के मौसम में बीमारियों का जोर रहता है। यही नहीं मक्की की फसल की बुआई के बाद लोग भरपूर फसल देने की भी देवता से प्रार्थाना करते हैं। व्याधियों से रक्षा करने के लिए लोग कई स्थानों से देवता के पास आते हैं। भादों मास समाप्त होने के बाद  बरसात खत्म हो जाती है। मक्की की फसल पक कर तैयार हो जाती है। बीमारियों से मुक्ति मिल जाती है इसीलिए तीन असौज के लोग व्याधियों से बचाव तथा कटाई से पहले मक्की चढ़ाने मंदिर में आते हैं। गांव के लोगों के अलावा अन्य गांव से भी लोग मंदिर में देवता के दर्शन के लिए आते हैं। इससे यहां मेले जैसा माहौल बन जाता है। इसलिए इस दिन यहां पर मेला लगने लगा। पहले देव बालक महेश्वर सायरी का रथ मझवाड़ गांव से आता था, अब यहां इसी मेले में अन्य देवता माता धूमावती, देव चडे़हिया, माता काश्मीरी, देहरीधार माता बसलैण भी आते हैं। लोग दूर-दूर से आकर देवता को मक्की तथा अखरोट भी चढ़ाते हैं।

– सुशील लोहिया, मंडी