जमीन चयन में ही बिता दिए नौ साल
पिछले नौ सालों में अभी तक इसके लिए भूमि का चयन भी अंतिम नहीं हो पाया है। सेना के उच्चाधिकारियों की टीमें ने इसके लिए ऊना में अलग-अलग साइट्स का सर्वे करने के बाद बरनोह की भूमि को चयनित किया था, लेकिन इसके रिजेक्ट होने के बाद अब यह मामला एक बार फिर से लटक गया है।
अढ़ाई लाख सैनिक परिवारों को मिलता लाभ
भारतीय सशस्त्र सेनाओं में हिमाचल से सेवारत और सेवानिवृत्त सैनिकों की तादाद काफी है। ऊना में सीएसडी डिपो के स्थापित होने से राज्य के अढ़ाई लाख के करीब सैनिक परिवारों को लाभ मिलना था। प्रदेश में भूतपूर्व सैनिकों, युद्ध विधवाओं या विधवाओं की संख्या 1.35 लाख से ज्यादा है, जबकि एक से सवा लाख के बीच सेवारत सैनिक हैं। सीएसडी डिपो की स्थापना से पूरे प्रदेश में सेवारत व सेवानिवृत सैनिकों को काफी सुविधा प्राप्त होनी थी। इससे प्रदेश के दूरदराज इलाकों में भी सीएसडी कैंटीन स्थापित करने में मदद मिलती।
…तो राज्य में होता करोड़ों का निवेश
सीएसडी डिपो की स्थापना से प्रदेश के दूरदराज इलाकों में भी सीएसडी कैंटीन स्थापित करने में मदद मिलती। सैनिक परिवारों को विभिन्न प्रकार के वाहन, एलईडी, एलसीडी, साउंड सिस्टम, वातानुकूलित उपकरण, कूलर, माइक्रावेव इत्यादि महंगे सामान खरीदने के लिए प्रदेश से बाहर नहीं भटकना पड़ता, वहीं ग्रोसरी आइट्मस, लिक्वर भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध रहता। इस डिपो की स्थापना से राज्य में करोड़ों का निवेश भी होना था।
धूमल सरकार में शुरू हुई थी कसरत
पूर्व भाजपा सरकार में जिला ऊना में सीएसडी डिपो स्थापित करने के लिए पहल हुई थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने ऊना में सीएसडी डिपो खोलने की घोषणा की थी। इसके तहत जिला में विभिन्न साइट्स का सर्वे भी किया गया, वहीं प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद मौजूदा कांग्रेस सरकार ने इस मसले को आगे बढ़ाया। बरनोह में 300 कनाल भूमि सेना के नाम की गई, लेकिन सेना ने इस साइट को रिजेक्ट कर दिया।