सोशल मीडिया के मकड़जाल में विद्यार्थी

आदित कंसल

लेखक, नालागढ़ से हैं

विकास और आधुनिकता के नाम पर सोशल मीडिया का जो घेरा बन गया है वह एक चक्रव्यूह जैसा है। आज का विद्यार्थी वर्ग इसमें अभिमन्यु की तरह प्रवेश तो कर गया, परंतु बाहर निकलने का रास्ता उसके पास नहीं है। आज विद्यार्थियों के पास किताबें, कापियां, स्कूल बैग चाहे न हो, पर स्मार्ट फोन, टेबलेट व लैपटॉप अवश्य मिल जाएंगे। मोबाइल फोन इस्तेमाल में हिमाचल काफी आगे है…

निःसंदेह वे देश जो विज्ञान और प्रोद्यौगिकी में उन्नति करते हैं, वे सदैव विकास की राह में अग्रसर होते हैं, परंतु विकास और आधुनिकता के नाम पर सोशल मीडिया का जो घेरा बन गया है वह एक चक्रव्यूह जैसा है। आज का विद्यार्थी वर्ग इसमें अभिमन्यु की तरह प्रवेश तो कर गया, परंतु बाहर निकलने का रास्ता उसके पास नहीं है। आज विद्यार्थियों के पास किताबें, कापियां, स्कूल बैग चाहे न हो, पर स्मार्ट फोन टेबलेट व लैपटॉप अवश्य मिल जाएंगे। मोबाइल फोन इस्तेमाल में हिमाचल प्रदेश में उपभोक्ता संख्या राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है। प्रदेश योजना विभाग की रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रीय औसत 53.2 प्रतिशत परिवारों की है, जबकि प्रदेश में यह प्रतिशत 61.5 है। एसोचैम सोशल डिवेलमेंट फाउंडेशन ने पाया कि सरकार के सख्त निर्देशों के बावजूद शहरों में 13 वर्ष के कम उम्र के करीब दो तिहाई बच्चे रोज यू-ट्यूब देखते हैं। 95 प्रतिशत विद्यार्थी (12-17 वर्ष) इंटरनेट का उपयोग करते हैं। महंगा व आकर्षक स्मार्ट फोन विद्यार्थियों के लिए स्टेटस सिंबल बनता जा रहा है। विद्यार्थी कक्षाओं में भी मोबाइल प्रयोग से परहेज नहीं करते। कई बार विद्यार्थियों को इसके लिए अध्यापकों द्वारा चेतावनी दी जाती है तथा कक्षा से बाहर का रास्ता दिखाया जाता है। अभिभावकों को भी स्कूल प्रशासन द्वारा सूचित किया जाता है। ऐसोचैम सर्वे के मुताबिक 75 प्रतिशत अभिभावक यह जानते हैं कि उनका बच्चा स्कूल में मोबाइल ले जाता है। स्मार्ट फोन और उस पर जियो का सस्ता इंटरनेट ऑफर विद्यार्थियों को तबाह करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है। विद्यार्थी अश्लील हो रहे हैं। लक्ष्मण रेखा लांघी जा रही है।

हाल ही में केंद्र सरकार ने 3522 चाइल्ड पोर्नोग्राफी वेबसाइटों को ब्लाक कर दिया है। केंद्र सरकार का यह कदम प्रशंसनीय है। सरकार ने सीबीएसई को स्कूलों में जैमर लगाने के निर्देश दिए हैं, ताकि अश्लील व फूहड़ वेबसाइटों पर अंकुश लगे। विद्यार्थियों को बस में सफर करते या पैदल चलते हुए कानों में ईयर फोन से लैस देखा जा सकता है। इससे जहां एक ओर विद्यार्थियों का स्वास्थ्य खराब हो रहा है, ड्राई आइस, बहरेपन व ऊंचा सुनने की समस्या बढ़ रही है, वहीं दूसरी ओर उनकी पढ़ाई, स्मरण-शक्ति व एकाग्रता भी बाधित हो रही है। सेल्फी का नशा सिर चढ़ कर बोल रहा है। सेल्फी के कारण हुई मौतों के मामले में भारत सबसे ऊपर है। अब तो सरकार हर राज्य में ‘सेल्फी डेंजर एरिया’ की पहचान कर रही है। विद्यार्थी एडवेंचर्स सेल्फी और उसको फेसबुक पर अपलोड करने को लालायित रहते हैं। कई विद्यार्थी खतरनाक, कठिन, दुर्गम व प्रतिबंधित स्थानों पर सेल्फी लेने की प्रबल इच्छा के चक्कर में जान से हाथ धो बैठे। विद्यार्थी सोशल मीडिया के मकड़जाल में इस प्रकार फंसते जा रहे हैं कि फेसबुक, व्हाट्सऐप, ट्वीटर व चैटिंग के बगैर अपने आप को तन्हा व डरा हुआ महसूस करते हैं तथा वर्चुअल दुनिया को सच मान रहे हैं। इसी सोशल मीडिया का एक और दुष्परिणाम अभी हाल में ही उभर कर  आया है, ब्लू व्हेल गेम। इंटरनेट पर चल रहे ब्लू व्हेल गेम के जरिए विद्यार्थी आत्महत्या कर रहे हैं। जहां एक ओर इंटरनेट पर चल रही ब्लू क्लिप्स, फिल्मों व वीडियो ने विद्यार्थियों के चरित्र व नैतिकता की हत्या की है, वहीं अब ब्लू व्हेल खेल ने आत्महत्या की ओर मोड़ दिया है। भारत में 12 से 19 वर्ष आयु वर्ग के 12 से ज्यादा विद्यार्थी इस खेल के कारण अभी तक जान गंवा चुके हैं। ब्लू व्हेल के चलते विद्यार्थी अपना शरीर अपने हाथों से गोद रहे हैं, काट रहे हैं। ब्लू व्हेल एक खूनी खेल है, जिसके कारण मध्य प्रदेश में 11वीं के छात्र ने ट्रेन से कटकर जान दे दी तथा टास्क पूरा करने के चक्कर में जयपुर में एक दसवीं  की छात्रा ने झील में छलांग लगा दी। हिमाचल भी इससे अछूता नहीं रहा है। इस सुसाइड गेम की चपेट में स्कूली बच्चे आ रहे हैं। सोलन जिले में पहला मामला उजागर हुआ  है। निजी विद्यालय के छात्र ने बाजू पर ब्लेड से कट मारकर ब्लू व्हेल की आकृति बना डाली।

इस छात्र ने चार अन्य छात्रों का जिक्र भी किया है। ब्लू व्हेल के खतरनाक खेल में फंसने वाले विद्यार्थी 12 से 19 वर्ष आयु वर्ग के हैं। प्रदेश सरकार व प्रशासन को शीघ्र ही इस सुसाइड खेल की रोकथाम की संभावनाएं तलाश करनी चाहिए। साइबर कैफों का पंजीकरण किया जाए तथा इन पर नजर रखी जाए। नाबालिग विद्यार्थियों के लिए साइबर कैफों पर काउंसलर की व्यवस्था की जाए। हिमाचल पुलिस ने पहल करते हुए एडवाइजरी जारी की है। इसमें सलाह दी गई है कि बच्चों के क्रियाकलापों व गतिविधियों पर नजर रखें। बच्चों से लगातार बातचीत करें तथा उनकी मानसिक स्थिति पर ध्यान देते रहें। विद्यार्थियों को सोशल मीडिया के दुष्प्रभावों से बचाने हेतु शिक्षकों व अभिभावकों को रचनात्मक व सशक्त भूमिका निभानी होगी। आज परिवार व समाज में संवादहीनता बढ़ रही है। विद्यार्थियों की मानसिक स्थिति नियंत्रण मे रखने हेतु उनके बात करते रहें। किशोरावस्था में हार्मोंस में परिवर्तन आते हैं। मस्तिष्क का वह भाग जो निर्णय लेने में हमारी मदद करता है, उसका विकास किशोरावस्था में हो रहा होता है, जिसके कारण इस अवस्था में लिए गए कई निर्णय जोखिम भरे होते हैं। जरूरत है मां-बाप को अपने बच्चों में हो रहे बदलाव को समझने की। विद्यार्थियों को अच्छी पुस्तकें, समाचार-पत्र व पत्रिकाएं पढ़ने की आदत डालें। योग के प्रति उनका शोक पैदा करें। बच्चों के हाथों में स्मार्ट गैजेट्स देने की बजाय उन्हें दूसरे बच्चों के साथ खेलने दें। शिक्षा विभाग को चाहिए कि आधुनिक समय की मांग को देखते हुए विद्यार्थियों को नशे, सोशल मीडिया व अपराध से बचाने हेतु विद्यालयों में नियमित काउंसलर नियुक्त किए जाएं।