हिमाचल में संगोष्ठियों तक सिमटी हिंदी

हिमाचल में हिंदी का अस्तित्व संगोष्ठियों और कवि सम्मेलनों तक ही सिमटता जा रहा है। यूं तो हिमाचल के हर सरकारी दफ्तर में हिंदी में काम करने पर जोर दिया जाता है, लेकिन हकीकत यह है कि अधिकतर निर्देश नियमों को धत्ता बताते हुए अंग्रेजी में ही निकलते हैं। इन हालात में हिंदी के उत्थान का दायित्व संगोष्ठियों, कवि सम्मेलनों, हिंदी साहित्यिक  सम्मेलनों और हिंदी पखवाड़े पर आयोजित होने वाली प्रतियोगिताओं तक ही सिमट जाता है। दुनिया की सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषाओं में हिंदी का चौथा स्थान है। यदि हिंदी बोलने के अलावा लिखने की बात की जाए तो यह संख्या और भी नीचे जाएगी। दुनिया में चीन की मंदारिन भाषा सबसे ज्यादा बोली जाती है। प्रदेशभर में हिंदी पखवाड़ा मनाया जा रहा है तो भाषा एवं संस्कृति विभाग की ओर से जिला स्तर पर निबंध लेखन व भाषण प्रतियोगिताएं करवाई जा रही हैं। अब जिला स्तर पर हिंदी में नाम चमकाने वाले छात्रों का राज्य स्तरीय स्पर्धा में हिंदी का ज्ञान परखा जाएगा, लेकिन एक सच्चाई यह भी है हिंदी पखवाड़े की प्रतियोगिता के लिए जिन भी स्कूलों से आवेदन आए, उनमें अधिकतर अंग्रेजी भाषा में लिखे गए थे। इसके अलावा हिंदी भाषा का आधिकारिक प्रहरी हिमाचल भाषा एवं संस्कृति विभाग प्रदेशभर में हिंदी पर संगोष्ठियां व कवि सम्मेलन आयोजित करता है। सांस्कृतिक राजधानी का अघोषित तमगा रखने वाली छोटी काशी मंडी में भी साल भर हिंदी पर आधारित कई कार्यक्रम होते हैं। इसमें शिवरात्रि पर राज्य स्तरीय कवि सम्मेलन प्रमुख है। हाल ही में मंडी में ही राज्य स्तरीय गुलेरी जयंती मनाई गई थी। इसके अलावा कुछ अन्य संस्थाएं भी हिंदी पर आधारित सम्मेलन करवाती हैं, लेकिन इनकी संख्या भी बहुत कम है। मात्र सरकारी दफ्तरों में हिंदी में कामकाज करने वालों को सम्मानित कर इतिश्री कर ली जाती है।

-आशीष भरमौरिया