हिमालय में बन रहीं झीलें मचा सकती हैं तबाही

चिनाब और रावी में भी कई झीलें होने की पुष्टि हुई है। गिपांग नाथ ग्लेशियर में झील का आकार बढ़ रहा है। इससे चंद्रभागा नदी जुड़ी है, जिसमें बाढ़ का खतरा बढ़ा है। हिमालय के आंचल में ये झीलें बम की तरह पल रही हैं, जो कभी परिधि लांघकर तबाही मचा सकती हैं…

सिकुड़ते हिमालयी ग्लेशियर

अगर ग्लेशियरों का पिघलना तेजी से जारी रहा, तो हिमाचल में कालांतर में भारी पेयजल संकट पैदा होगा और सिंचाई के लिए भी कई इलाकों में जल उपलब्ध नहीं हो पाएगा। इससे खेती लगभग तबाह हो जाएगी। पेयजल और सिंचाई की अधिकांश योजनाएं भी इन्हीं स्रोतों पर निर्भर हैं। नतीजतन, कई योजनाओं के बंद हो जाने का खतरा पैदा हो जाएगा। पन बिजली परियोजनाएं भी इस प्रभाव से अछूती नहीं रहेंगी। ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना एक साथ कई क्षेत्रों को प्रभावित करता है। झीलें बनती हैं, जिनका टूटना बाढ़ बनकर तबाही लाता है। पानी अपने साथ भारी मात्रा में गाद लाता है, जो नदियों को उथला बना देता है। यह गाद कृषि उत्पादकता को भी प्रभावित करती है। पर्यावरण पर तो हर सूरत में इसका प्रतिकूल असर होता है। घटते ग्लेशियर लंबी अवधि के लिए जल संकट के कारण बन सकते हैं। इसरो के सेटेलाइट अध्ययन से यह खुलासा हुआ है कि सतलुज बेसिन पर 38 झीलें बनी हैं, जिसमें से 14 हिमाचल के क्षेत्र में और 24 तिब्बत के इलाके में हैं। चिनाब और रावी में भी कई झीलें होने की पुष्टि हुई है। गिपांग नाथ ग्लेशियर में झील का आकार बढ़ रहा है। इससे चंद्रभागा नदी जुड़ी है, जिसमें बाढ़ का खतरा बढ़ा है। हिमालय के आंचल में ये झीलें बम की तरह पल रही हैं, जो कभी परिधि लांघकर तबाही मचा सकती हैं।

हिम-स्खलन से सतलुज का प्रवाह रुकने और वहां झील बनने की घटना ने 2003 में एक बार फिर किन्नौर व शिमला जिलों में बाढ़ पूर्वानुमान नेटवर्क स्थापित किए जाने की जरूरत को रेखांकित किया। हिमस्खलन होने के कारण सतलुज का प्रवाह रुकने से बनी झील से एक बार फिर किन्नौर व शिमला जिला के नदी किनारे बसी बस्तियों में बाढ़ आने की आशंकाएं पैदा हो गई थीं। सन् 2000 में सतलुज में आई बाढ़ सहित दो वर्षों में यह दूसरा मौका था, जब बाढ़ की आशंका ने इस क्षेत्र के लोगों की नींद हराम कर दी थी। विगत बाढ़ की तरह इस बार भी सततलुज के जलागम क्षेत्रों में बाढ़ पूर्वानुमान का कोई नेटवर्क न होने के कारण सतलुज के प्रवाह को लेकर अनिश्चितता व्याप्त रही। राज्य सरकार ने अपने प्रशासनिक अमले की मदद से ही इस घटना से उत्पन्न होने वाली स्थिति का आकलन किया। हिमखंड से अवरुद्ध सतलुज ने स्वाभाविक रास्ते से निकलकर राज्य सरकार को चिंतामुक्त तो कर दिया, पर बाढ़ पूर्वानुमान नेटवर्क स्थापना को रेखांकित किया।