कांग्रेस में एक परिवार-एक टिकट ‘धराशायी’

परिवारवाद से नहीं उबर सकी पार्टी, नेताओं की अंदरूनी कलह टिकट पर भारी

शिमला – कांग्रेस पार्टी में नेताओं की अंदरूनी आपसी कलह जहां टिकट आबंटन पर हावी रही है, वहीं पार्टी परिवारवाद से भी उबर नहीं सकी है। कांग्रेस के दो दिग्गज नेताओं के बच्चे इस चुनाव से सक्रिय राजनीति में पदार्पण करने की तैयारी में हैं। लंबी न नुकर के बाद कांग्रेस को नेताओं के बच्चों को टिकट देना पड़ ही गया, जिसके बाद कांग्रेस का एक परिवार से एक को टिकट का फार्मूला भी धराशायी हो गया। यहां नेताओं के दबाव में कांग्रेस हाइकमान को अपने फार्मूले को बदलना पड़ ही गया। उत्तराखंड राज्य में पार्टी ने यही फार्मूला चलाया, जिसके चलते उसे नुकसान उठाना पड़ा। अब हिमाचल में ऐसा नुकसान न हो इसलिए उसे परिवारवाद के आगे झुकना पड़ ही गया है। नेताओं की इस लड़ाई में हालांकि कांगड़ा के कदावर नेता जीएस बाली को झटका जरूर लगा है, क्योंकि वह भी अपने पुत्र रघुबीर बाली के लिए टिकट मांग रहे थे। कांग्रेस पार्टी की पहली, दूसरी और तीसरी सूची से साफ हो गया है कि कई सीटों पर दमदार प्रत्याशियों को उतारने की जगह कांग्रेस ने अपनों पर दांव खेल दिया है। यह अपने कहीं वीरभद्र सिंह के रहे हैं तो कहीं पर सुक्खू के। इतना ही नहीं, इनमें आनंद शर्मा, विप्लव ठाकुर ने भी अहम भूमिका निभाई है। कांग्रेस के नेताओं ने टिकट आबंटन से अपना खेल तो खेल दिया, लेकिन अब चुनाव नतीजे बताएंगे कि कौन नेता किस पर भारी पड़ा। नेताओं के अपनों के चक्कर में कहीं पार्टी हार न जाए इसकी भी कांग्रेस के भीतर खूब चर्चा हो रही है। कांग्रेस के छोटे नेताओं का कहना है कि कई सीटें तो विरोधियों को परोस कर दे दी गई हैं। हालांकि यह किसी एक के समर्थक भी हो सकते हैं, लेकिन इस पर खुली बहस पार्टी में शुरू हो चुकी है। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के के दो ऐसे कट्टर समर्थक टिकट हासिल करने से वंचित रह गए हैं, जिन्होंने पांच साल तक सरकार के दम पर अपने लिए फील्ड तैयार की थी।

नौबत बगावत की, इन्हें भी कहां मिला टिकट

शिमला से हरीश जनारथा और नालागढ़ से बाबा हरदीप सिंह इसके उदाहरण हैं। दोनों सरकार में मजबूत औहदों पर थे, जिनके पास ऐसे बोर्ड थे, जिनके जरिए वह सक्रिय रहे। सरकार में इनका रसूख भी प्रभावशाली था, मगर अब पार्टी से उनको टिकट नहीं मिला। बताया जाता है कि पार्टी के नेताओं, जो कि दूसरी तरफ थे, उनके साथ इनका आंकड़ा फिट नहीं बैठ सका, लिहाजा अब नौबत बगावत करने की आ चुकी है।