गौरव पर गरीबी की चोट

(शशि राणा, कलोहा )

हम इक्कीसवीं सदी में जीते हुए भारत के डिजिटल होने का सपना देख रहे हैं। यह हर भारतीय के लिए गौरव की बात है। वहीं हमारे देश का एक वर्ग ऐसा भी है, जिसे दो वक्त की रोटी के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है। उस वर्ग का नाम है-गरीब वर्ग। देश की आबादी में तेजी से वृद्धि हो रही है। जनसंख्या में वृद्धि के कारण जहां बेरोजगारी जैसी समस्याएं पैदा हो रही हैं, वहीं निर्धनता भी उनमें से एक है। ये देश के विकास की बाधक हैं। गरीबी मानव जीवन में निराशा, दुःख और दर्द ही लाती है। गांवों और शहरों में झुग्गी-झोंपडि़यों में रहने वाले लोगों का मानना है कि अधिक बच्चे पैदा करने से ही उन्हें लाभ है। कारण यह कि परिवार में बच्चे अधिक होंगे, तो वे अधिक आजीविका कमाने में मदद करेंगे, जिससे परिवार की हालत में सुधार होगा। उन्हें क्या मालूम कि इससे हालत सुधरेगी नहीं, अपितु और बिगड़ जाएगी। अकसर देखा जाता है कि जो गरीब परिवार में बच्चे पैदा होते हैं, वे थोड़े बड़े होते ही काम-धंधे में लग जाते हैं। इसके कारण वे पढ़-लिख नहीं पाते। अनपढ़ होने के कारण वे कभी ढाबों पर बरतन साफ करते हैं, तो कभी कूड़ा बीनने जैसे काम करते हैं। यहां सोचने वाली बात यह भी है कि अगर जहां परिवार में सदस्य ज्यादा होंगे, वहां स्वाभाविक रूप से उनकी जरूरतें भी ज्यादा होंगी। परिणाम स्वरूप उन्हें कोई न कोई काम-धंधा करना पड़ता है, ताकि उन्हें दो वक्त की रोटी नसीब हो सके।  गरीबी को जड़ से मिटाने के लिए जनसख्ंया वृद्धि पर रोक के साथ-साथ प्रत्येक व्यक्ति का एकजुट होना आवश्यक है। सरकार को भी चाहिए कि इस ओर विशेष कदम उठाए, तभी हम भारत को एक सुशिक्षित और विकसित देश बना पाएंगे।