चुनाव आयोग

भारत के संविधान ने संसद और प्रत्येक राज्य के विधान मंडल तथा भारत के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के पदों के निर्वाचनों के संचालन की पूरी प्रक्रिया का अधीक्षण, निदेशन तथा नियंत्रण का उत्तरदायित्व भारत निर्वाचन आयोग को सौंपा है। भारत निर्वाचन आयोग एक स्थायी संवैधानिक निकाय है। संविधान के अनुसार निर्वाचन आयोग की स्थापना 25 जनवरी, 1950 को की गई थी। आयोग ने अपनी स्वर्ण जयंती वर्ष 2001 में मनाई थी। प्रारंभ में, आयोग में केवल एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त थे। वर्तमान में इसमें एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दो निर्वाचन आयुक्त हैं। 16 अक्तूबर, 1989 को पहली बार दो अतिरिक्त आयुक्तों की नियुक्ति की गई थी, लेकिन उनका कार्यकाल बहुत कम था, जो 01 जनवरी, 1990 तक चला। तत्पश्चात 01 अक्तूबर, 1993 को दो अतिरिक्त निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति की गई थी। आयोग में निर्णय बहुमत के आधार पर लिया जाता है।

आयुक्तों की नियुक्ति एवं कार्यकाल

मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। उनका कार्यकाल 6 वर्ष तक, या 65 वर्ष की आयु तक, इनमें से जो भी पहले हो, तक का होता है। उनका वही स्तर होता है जो कि भारत के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों का होता है तथा उन्हें उनके समतुल्य ही वेतन और अनुलाभ मिलते हैं। मुख्य निर्वाचन आयुक्त को पद से, केवल संसद द्वारा महाभियोग के माध्यम से हटाया जा सकता है।

कार्य निष्पादन

आयोग अपने कार्यों का निष्पादन, नियमित बैठकों के आयोजन और दस्तावेजों के परिचालन द्वारा करता है। आयोग द्वारा निर्णय लेने की प्रक्रिया में सभी निर्वाचन आयुक्तों के पास समान अधिकार होते हैं। समय-समय पर आयोग अपने सचिवालय में अपने अधिकारियों को कुछ कार्यकारी प्रकार्यों का प्रत्यायोजन करता है। आयोग सचिवालय का अपना एक स्वतंत्र  बजट होता है, जिसे आयोग और संघ सरकार के वित्त मंत्रालय के परामर्र्श से अंतिम रूप दिया जाता है। वित्त मंत्रालय सामान्य रूप से आयोग के बजट हेतु इसकी संस्तुतियों को स्वीकार कर लेता है। तथापि, निर्वाचनों के वास्तविक संचालन पर मुख्य व्यय, संघ राज्यों तथा संघ शासित क्षेत्रों की संबंधित घटक इकाइयों के बजट में प्रतिबिंबित किया जाता है। यदि निर्वाचन केवल लोकसभा के लिए ही करवाए जाते हैं तो व्यय समग्र रूप से संघ सरकार द्वारा वहन किया जाता है, जबकि केवल राज्य विधानमंडल के लिए करवाए जाने वाले निर्वाचनों के लिए सारा व्यय संबंधित राज्य द्वारा वहन किया जाता है।