(शब्द शिल्प, मंदसौर )
आंगन-आंगन चौबारे नाच उठे,
दीपोत्सव के उल्लास में।
मन की कोयलिया कुहूक उठी,
दीप पर्व के उल्लास से।
दीपशिखा प्रज्वलित हो उठी,
प्यार की दीप-ज्योत से।
दमक उठे कण-कण रूप,
रोशनी के शृंगार से।
द्वार-द्वार जले जगमग,
दीप आस्था और विश्वास के।