निर्णायक चुनावों की दहलीज पर देश

प्रो. एनके सिंह

लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भाजपा का आधार लगातार बढ़ता गया है। इसका परिणाम यह है कि भाजपा की 13 राज्यों में सत्ता कायम हो चुकी है। इसके अलावा तमिलनाडु व अन्य कुछ राज्य ऐसे हैं, जहां उसका परोक्ष प्रभाव है। इसके विपरीत कांग्रेस के चुनावी व राजनीतिक प्रदर्शन में लगातार गिरावट ही देखने को मिली है। पार्टी कई राज्यों में सत्ता गंवा चुकी है। क्या देश सचमुच कांग्रेस मुक्त भारत की ओर बढ़ रहा है? ऐसा संभव है, अगर हिमाचल प्रदेश व गुजरात दोनों ही राज्यों में भाजपा जीत जाती है…

गुजरात विधानसभा के चुनाव आने वाले महीनों में संभवतः सबसे अधिक निर्णायक चुनाव साबित होंगे। यह केवल विधायकों का चुनाव मात्र नहीं है, बल्कि इसके निर्णायक कारक हैं, जो देश की राजनीति को प्रभावित करेंगे। सबसे पहले तो यही कि ये चुनाव नरेंद्र मोदी तथा उनकी पार्टी भाजपा के विजय अभियान को बरकरार कर सकते हैं और भारतीय जनता पार्टी भारत की सबसे बड़ी पार्टी बनी रह सकती है। भारत के अधिकतर राज्यों में भी भाजपा की सरकारें बन चुकी हैं, चाहे तीन राज्यों में उसने चालाकी से सत्ता हथिया ली हो। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भाजपा का आधार लगातार बढ़ता गया है। इसका परिणाम यह है कि भाजपा की 13 राज्यों में सत्ता कायम हो चुकी है। इसके अलावा तमिलनाडु व अन्य कुछ राज्य ऐसे हैं, जहां उसका परोक्ष प्रभाव है। इसके विपरीत कांग्रेस के चुनावी व राजनीतिक प्रदर्शन में लगातार गिरावट ही देखने को मिली है। पार्टी कई राज्यों में सत्ता गंवा चुकी है। क्या देश सचमुच कांग्रेस मुक्त भारत की ओर बढ़ रहा है? ऐसा संभव है, अगर हिमाचल प्रदेश व गुजरात दोनों ही राज्यों में भाजपा जीत जाती है। वैसे भाजपा गुजरात में पहले से ही सत्ता में है। इस वर्ष अगस्त में हुए एक ओपिनियन पोल के अनुसार भाजपा को पूर्ण बहुमत मिल जाएगा। इस सप्ताह हुए कछ ओपिनियन पोल भी ऐसे ही परिणामों के संकेत कर रहे हैं।

गुजरात की अगर बात करें, तो भाजपा को वहां 144 से 152 सीटें तथा कांग्रेस को 26 से 32 सीटें मिलने की संभावना है। वहां स्थिति तेजी से बदल रही है। अपनी ओर से कांग्रेस पार्टी भी परिवर्तन के लिए पूरा जोर लगा रही है। वर्तमान में कांग्रेस की रैलियों में भारी भीड़ उमड़ रही है। अगस्त माह के बाद स्थिति में काफी बदलाव आया है और पाटीदारों का आंदोलन भी तेज हुआ है। अब वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का प्रभाव भी सामने आने लगा है। इससे मध्य दर्जे के और छोटे व्यवसायों पर प्रतिकूल असर पड़ा है। ध्यान रहे कि गुजरात में इस वर्ग से बड़ी आबादी ताल्लुक रखती है। एक लंबी उठापटक के बाद गुजरात के चुनावी रण का ऐलान हो चुका है। चुनाव आयोग ने बुधवार को गुजरात में विधानसभा की 182 सीटों पर चुनावों के लिए तारीखों की घोषणा कर दी। गुजरात विधानसभा चुनाव दो चरणों में कराए जाएंगे। इसके साथ ही राज्य में चुनावी सरगर्मियां और भी तेज हो गई हैं। इसी बीच अहमद पटेल की राज्यसभा के लिए नियुक्ति के बाद कांग्रेस राज्य की राजनीति में पूरी तरह से सक्रिय हो गई है। हालांकि उन्हें हराने के लिए भाजपा तथा उसके अध्यक्ष अमित शाह ने पूरा जोर लगाया था। अहमद पटेल की जीत को इस रूप में देखा जाने लगा कि राज्य में परिवर्तन संभव है। एक तरह से अहमद पटेल की राज्यसभा सीट पर जीत ने कांग्रेस में एक नई ऊर्जा का संचार भर दिया है। अब यह मोदी पर निर्भर है कि वह जीएसटी को आसान बनाने के लिए इसमें नाटकीय परिवर्तन करें तथा कुछ कल्याणकारी परियोजनाएं लेकर आएं। गुजरात के लिए कुछ समय दिया गया। इस समय का उपयोग करते हुए मोदी ने रो-रो फेरी जैसी परियोजनाओं की घोषणा की है।

मोदी इस बात के लिए भरपूर प्रयास कर रहे हैं कि वह लोगों से बात करके उन्हें प्रभावित करें। इसी के साथ राहुल गांधी भी बेहतर परिणाम लाने के लिए प्रयासरत हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शिलान्यासों का कोई अवसर छोड़ नहीं रहे हैं। जिस तरह की प्रतिकूल स्थितियों में अब तक कांग्रेस रही है, उसमें सुधार आने की संभावना है, हालांकि अंतिम अनुमान तभी लगाया जा सकेगा जब मतदान हो चुका होगा। पहाड़ी राज्य हिमाचल में नौ नवंबर को चुनाव की तिथि घोषित हो चुकी है। हिमाचल में कांग्रेस सत्तारूढ़ है। हालांकि यहां पार्टी नेताओं के बीच द्वंद्व की स्थिति रही है। केंद्रीय नेतृत्व भी इस मसले को सुलझाने में अक्षम रहा है, हालांकि अंतिम चरण में वीरभद्र सिंह को पूरी कमान सौंप दी गई। कांग्रेस के लिए खतरे का संकेत यह है कि इसने टिकट आबंटन में परिवारवाद को लेकर भाजपा की नकल करने की कोशिश की। पहले उसने परिवारवाद के खिलाफ स्टैंड लिया, लेकिन बाद में उसने इससे कदम पीछे खींच लिए। उधर इस मामले में भाजपा सफल रही है, जबकि कांग्रेस ने अनावश्यक रूप से इसकी नकल मात्र की। कांग्रेस ने भाजपा की तरह रणनीति बनाने की कोशिश की, जबकि वहां ऐसी परंपरा नहीं रही है। एक अन्य मामले में भी यह पार्टी भाजपा की नकल करती प्रतीत होती है। वह भी उतने ही स्टार प्रचारक जुटाने की कोशिश कर रही है, जितने भाजपा के पास हैं। कई लोग उसे जैसे को तैसा की तरह काम करने की युक्तिरहित सलाह दे रहे हैं, जबकि उसे अपनी स्वतंत्र रणनीति बनानी चाहिए। यहां यह उल्लेख करना भी जरूरी होगा कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को प्रेम कुमार धूमल को नेता घोषित कर देना चाहिए था, जैसा कि एक सर्वे में राय उभर कर आई है।

दोनों दल तभी बेहतर कर पाएंगे, अगर पहले नेता घोषित कर दिया जाए। हालांकि इस मामले में कांग्रेस कुछ आगे रही, जिसने अंतिम समय में नेता घोषित कर दिया, चाहे यह आनाकानी के साथ हुआ। हिमाचल प्रदेश के मामले में नेतृत्व जनता पर प्रभाव डालने का एक मुख्य हथियार तथा मसला रहा है। कांग्रेस ने अंततः परिवारवाद को अपना लिया, क्योंकि उसके मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार, कई मंत्री व स्पीकर अभी भी राजनीति में हैं। उसने इस तरह के मुख्य मसले पर तमाशा करते हुए क्यों इसे अंतिम क्षणों तक लटकाए रखा? अंतिम नाटक विद्या स्टोक्स के मामले में हुआ। यह 90 वर्ष की वयोवृद्ध नेता हैं, जो राजनीतिक जीवन से संन्यास लेना चाहती थीं। इन्होंने अपने विधानसभा क्षेत्र ठियोग से एक विकल्प का सुझाव दिया था। उनकी उल्लेखनीय सेवाओं को देखते हुए पार्टी नेतृत्व को सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए बुढ़ापे की इस अवस्था में उनके सुझाए उम्मीदवार को टिकट दे देना चाहिए था, लेकिन उसने अपना एक प्रत्याशी ऊपर से थोप दिया। इसके कारण विद्या स्टोक्स दोबारा मुकाबले में उतर गईं। इस तरह के तमाशों से पार्टी की किरकिरी हुई, जिससे पार्टी तथा उसकी उपलब्धियों को क्षति पहुंच सकती है।

बस स्टॉप

पहला यात्री : एक असंतुष्ट कांग्रेसी नेता ऐसा क्यों कह रहा है कि उसने पार्टी को टिकट के लिए 25,000 रुपए की रिश्वत दी थी, लेकिन उसे फिर भी टिकट नहीं मिला।

दूसरा यात्री : वह शायद उस फार्म फीस की बात कर रहा है, जो टिकट के इच्छुक लोगों को चुकानी पड़ी थी।

ई-मेलः singhnk7@gmail.com