नैना गुज्ज्र के नाम पर पड़ा नैना देवी मंदिर का नाम

किसी नैना नामक गुज्ज्र की बिन ब्याही गाय एक चट्टान पर दूध दिया करती थी। गुज्जर को इस पर कुछ संदेह हुआ। उसने उस स्थान की खुदाई की, तो उसे एक प्रस्तर खंड मिला। इस पर देवी का रूप था। नैना गुज्जर का मिलने के कारण ही इसका नाम नैना देवी पड़ा…

धर्मशाला से 12 किलोमीटर दूर चामुंडा देवी का मंदिर है। यह धौलाधार के पाद पर बहती बनेर नदी के दाहिने किनारे पर बना इस  समय का विशेष प्रसिद्ध मंदिर है। ऐसा ही एक अन्य प्रसिद्ध मंदिर चिंतपूर्णी माता का इस क्षेत्र का अति लोकप्रिय मंदिर है। यहां श्रावण मास को विशाल मेला लगता है, जिसमें लोग दूर-दूर से आकर देवी को हर प्रकार की भेंट चढ़ाते हैं। यहां प्रस्तर की एक पिंडी पूजा की वस्तु है। यह छिन्न मस्तिका देवी प्रदर्शित करती है। देवी ने इस रूप में निशुंभ नामक राक्षस की हत्या की थी।

मंडी-बिलासपुर क्षेत्र में पाए जाने वाले अधिकतर मंदिर (शाक्त) लगभग मध्यकालीन युग के हैं। पुरानी मंडी में बनवाए गए आधुनिक शक्ति मंदिरों में प्राचीन मंदिरों की झलक देखी जा सकती है। वास्तव में मंडी के शासक व लोग शक्ति की उपासना में विश्वास रखते थे, जिन्होंने समय-समय पर इन मंदिरों का निर्माण करवाया। रिवालसर झील के पास नैना देवी का मंदिर मंडी नरेश सूरज सेन ने सत्रहवीं शताब्दी में बनवाया था, जो 1905 ई. के भूकंप में गिर गया था। इसी सदी में सिद्धपुर में जाल्पा देवी का मंदिर सिद्ध सेन ने बनवाया था। हमीरपुर और मंडी सीमा पर स्थित संगोह नामक स्थान पर नवभुजा वाली दुर्गा या नवाही देवी का मंदिर लगभग दो सौ वर्ष पुराना है। यहां पर जून माह में एक बहुत बड़ा मेला लगता है। मंडी के टारना देवी मंदिर में रखी कुछ प्राचीन मूर्तियों को देखने से यह स्थान भी प्राचीन शक्ति पीठों में गिना जाता है। इस मंदिर की स्थापना राजा श्यामसेन ने की थी। कालांतर में उसके वंशज बलवीर सेन ने इसकी सुंदरता में चार चांद लगाकर इसे विश्व प्रसिद्ध शक्तिपीठ का दर्जा दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इस मंदिर के गर्भ गृह की बाहरी दीवार पर दुर्गा के विभिन्न रूपों को रंगों से चित्रित किया गया है, जिनमें दशमुख महाकाली, तारा, षोडशी, दुर्गा, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, घूमावली, बगलामुखी, काली कमला, मातंडी आदि शक्ति रूप उल्लेशनीय हैं। बिलासपुर जिले में स्थित नयनादेवी मंदिर का जिक्र करना भी अति आवश्यक है। इसके निर्माण के बारे में दो किंबदंतियां प्रचलित हैं। पहली के अनुसार किसी नैना नामक गुज्जर की बिन ब्याही गाय एक चट्टान पर दूध दिया करती थी। गुज्जर को इस पर कुछ संदेह हुआ। उसने उस स्थान की खुदाई की, तो उसे एक प्रस्तर खंड मिला। इस पर देवी का रूप था। नैना गुज्जर का मिलने के कारण ही इसका नाम नैना देवी पड़ा। दूसरी किंबदंति के अनुसार दक्ष यज्ञ भंग करने के बाद सती की एक आंख यहां पर गिरी थी। जिससे बाद में देवी के लिए बनवाए गए मंदिर को लोगों ने नैना देवी का नाम दिया।