मंदिर के साथ-साथ मूर्ति

बेशक उत्तर प्रदेश में भाजपा को 325 सीटों का जनादेश हासिल हुआ और योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने। अभी सरकार बने मात्र छह माह ही हुए हैं, लिहाजा कोई गंभीर सवाल नहीं, कोई संदेह या आशंकाएं भी नहीं, लेकिन महत्त्वपूर्ण बदलाव के संकेत तो दिखाई देने चाहिए। सड़कों के जानलेवा गड्ढे तो भरे जाएं। शिक्षा में सुधार सामने आने चाहिएं। बेरोजगारी भत्ते के साथ-साथ लैपटॉप भी मुहैया कराए जाने चाहिएं। सबसे महत्त्वपूर्ण है कि अब उत्तर प्रदेश गुंडों, हत्यारों और मवालियों से मुक्त राज्य दिखना चाहिए। बेशक प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन तस्वीर अब भी भयावह है। इसी बीच योगी सरकार ने एक नए मुद्दे को जन्म देकर विवाद खड़ा कर दिया है। उसे भी सांप्रदायिक और तुष्टिकरण की सियासत का उदाहरण करार दिया जा रहा है। दरअसल योगी सरकार अयोध्या में ही सरयू नदी के तट पर भगवान राम की 328 फुट ऊंची भव्य मूर्ति का निर्माण कराना चाहती है। यह दिवाली भी अयोध्या में ही मनाई जाएगी। छोटी दिवाली के दिन 18 अक्तूबर को सरयू के तट पर ही ‘दीपोत्सव’ मनाया जाएगा। सरयू के नए घाट पर राज्यपाल राम नाइक और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आरती उतारेंगे। उस भव्य आयोजन में न केवल मंत्री, विधायक और दूसरे राजनेता शिरकत करेंगे, बल्कि इंडोनेशिया और थाईलैंड के कलाकार रामलीला का मंचन भी करेंगे। यानी अयोध्या एक बार फिर ‘राममय’ होगी। विपक्षी दल इसमें भी राजनीति टटोल रहे हैं और ‘राम मूर्ति’ को असंवैधानिक मान रहे हैं। असंवैधानिक कैसे, इसका कोई तार्किक जवाब नहीं दिया जा रहा है। दरअसल राम मंदिर की तर्ज पर राम मूर्ति के निर्माण में भी रोड़ा अटकाया जा रहा है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सरेआम विरोध किया है। उनका सवाल है कि राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला अब भी विचाराधीन है और सांप्रदायिक विकल्प के तौर पर राम मूर्ति का नया अध्याय छेड़ दिया गया है। योगी सरकार के इस पुनीत कार्य के लिए केंद्र की मोदी सरकार ने भी 133 करोड़ रुपए देने का फैसला किया है। हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार ने 195 करोड़ रुपए की मांग की थी। दरअसल राम मूर्ति का प्रयास कोई एकमात्र नहीं है। मुंबई में छत्रपति शिवाजी की 623 फुट ऊंची और भव्य मूर्ति सालों से बनी है। केंद्र सरकार लौह पुरुष सरदार पटेल की दुनिया में सबसे ऊंची प्रतिमा का निर्माण भी करा रही है। बौद्ध और जैन धर्म वालों के तीर्थस्थल और प्रतिमाएं भी स्थापित हैं और उनकी आस्थाएं व्यक्त की जा रही हैं। सिख धर्म के भी गुरुद्वारे हैं और ‘गुरुओं’ की मूर्तियां भी स्थापित हैं। फिर राम मूर्ति पर ही विरोध और चिल्ला-चोट क्यों? बेशक समस्याएं, चुनौतियां, आपदाएं, विद्रूपताएं अपनी जगह हैं। उन्हें प्राथमिकता के स्तर पर संबोधित किया जाना चाहिए, लेकिन कमोबेश भारत में औसत आदमी अपने धर्म से अलग होकर नहीं रह सकता। मुसलमान भी तमाम दिक्कतों के बावजूद हज करने जाते हैं, उन्हें कोई नहीं रोकता। योगी सरकार लगातार अपने एजेंडे पर काम कर रही है। यदि वह सिर्फ राम मंदिर और राम मूर्ति पर ही अड़ कर बैठी रहे, तो उसे सांप्रदायिक करार दिया जा सकता है, लेकिन अभी विरोध कैसा? उत्तर प्रदेश की ही अखिलेश यादव सरकार ने ‘रामायण थीम पार्क’ और ‘राम म्यूजियम’ बनाने की घोषणा की थी। क्या वह भी चुनावी ऐलान था? अब सपा विरोध क्यों कर रही है? कांग्रेस के एक प्रवक्ता राजीव त्यागी एक नेशनल टीवी चैनल पर राम मंदिर निर्माण के समर्थन की घोषणा करते हैं, लेकिन दूसरे प्रवक्ता मुकेश नायक ने राम की मूर्ति बनवाने का विरोध किया है। कांग्रेस के भीतर का यह कैसा विरोधाभास है? मुस्लिम राबिता फाउंडेशन के एक मौलाना ने यहां तक बकवास की है कि भगवान राम अल्लाह से पैदा हुए थे। प्रभु राम का अस्तित्व मानते हैं, लेकिन उनकी मूर्ति का विरोध करते हैं। यदि कोई गैर मुस्लिम अल्लाह के खिलाफ कोई टिप्पणी करता, तो फतवा जारी होने में देर नहीं लगती। मौलाना तो सरकार द्वारा मदरसों के आधुनिकीकरण का भी विरोध करते हैं। बेशक अयोध्या में भगवान राम से जुड़ी कोई नई शुरुआत होती है तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए, क्योंकि उससे अयोध्या के आकर्षण में बढ़ावा होता है और अंतरराष्ट्रीय पर्यटक भी बढ़ते हैं। राम का नाम अयोध्या में नहीं लिया जाएगा, तो क्या मक्का-मदीना में लिया जा सकेगा? बहरहाल ऐसी ऊल-जुलूल बहसों को ज्यादा तवज्जो नहीं देनी चाहिए।