राजनीति है बड़ी…चीज

(सुरेश कुमार, योल )

आज की राजनीति कितनी थकाऊ और उबाऊ हो गई है। नेता तो टिकट लेने के चक्कर में ही कितनी ऊर्जा गंवा चुके हैं। धड़कने टिकट मिलने या न मिलने ने ही बढ़ा दी, चुनाव जीतना तो बाद की बात है। पहला पड़ाव तो पार्टी हाइकमान को जीतना है। अब टिकट मिले तो लोगों की नब्ज टटोलने में भागदौड़। क्योंकि आज की राजनीति ऐसी है कि लोग सारे प्रचार समय में किसी और के साथ रहेंगे और वोट किसी और को दे देते हैं। आज नेता ही चलाक नहीं, जनता उनसे भी दो कदम आगे है। चलो भगवान ने चाहा अगर जीत भी गए, तो क्या भागदौड़ यहीं खत्म हो गई। नहीं, फिर मंत्रालय में कोई मंत्री पद भी चाहिए और वह भी मलाईदार। चुनाव लड़ने की तपस्या तो तभी सफल होगी, जब कुछ हाथ लगे। वरना अकेले जनसेवा में ही पांच साल निकाल दिए तो अगले चुनावों के लिए पैसा कहां से आएगा। कितनी बदल गई है राजनीति। कहने को तो मुहावरा है कि ‘पॉलिटिक्स इज ए डर्टी गेम’ पर हर कोई इस ‘डर्टी गेम’ को खेलना चाहता है। अब एक राजनीति ही तो रह गई है, जिसमें भ्रष्टाचार सबसे ज्यादा है, पर कोई कुछ कर नहीं सकता। एक राजनीति ही तो है, जिसमें चुनाव आयोग खर्च की सीमा तो तय कर देता है पर कमाने की कोई सीमा नहीं। इसलिए तो कहते हैं राजनीति बड़ी…चीज।