रोहतांग की बनेगी कैरिंग कैपेसिटी रिपोर्ट

शिमला  – रोहतांग व इसके आसपास के इलाके की कैरिंग कैपेसिटी रिपोर्ट तैयार करने के लिए टीसीपी विभाग ने फिर प्रक्रिया शुरू कर दी है। विभाग ने इसके लिए नेशनल एन्वायरनमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीच्यूट (एनईईआरआई) से संपर्क साधा है। संस्थान को इसकी रिपोर्ट तैयार करने का न्योता दिया गया है। रोहतांग क्षेत्र की कैरिंग कैपेसिटी रिपोर्ट बनाने को लेकर टीसीपी ने इस साल प्रक्रिया शुरू की थी, लेकिन कोई भी फर्म आगे नहीं आई, ऐसे में अब विभाग ने नए सिरे से प्रक्रिया शुरू कर दी है। बताया जा रहा है कि टीसीपी ने अब इस काम के लिए एनईईआरआई से संपर्क साधा है। टीसीपी विभाग की ओर से पत्र लिखकर संस्थान को रिपोर्ट तैयार करने को लेकर ऑफर दिया गया है। दोनों पक्षों की ओर से इस बारे में पत्राचार हुआ है। टीसीपी विभाग चाह रहा है कि संस्थान हिमाचल के इस अतिसंवेदनशील क्षेत्र का अध्ययन कर इसकी कैरिंग कैपेसिटी रिपोर्ट तैयार करे, ताकि इसको नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को सौंपा जा सके। एनईईआरआई केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन है। इसकी स्थापना 1958 में नागपुर में हुई थी और इसकी दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई और हैदराबाद में क्षेत्रीय लैबोरेटरी हैं। पर्यावरण इंजीनियरिंग में देश का अग्रणी संस्थान माना जाता है। यही वजह है कि टीसीपी विभाग भी संस्थान से रोहतांग की कैरिंग कैपेसिटी रिपोर्ट तैयार करने के लिए इसके संपर्क में है। हालांकि इससे पहले टीसीपी विभाग निविदाओं के माध्यम से आवेदन मांग चुका है। टीसीपी विभाग ने मार्च में प्रक्रिया शुरू की थी, लेकिन कंसल्टेंट आगे नहीं आए। कुल्लू और लाहुल-स्पीति को अलग करने वाले रोहतांग पर्यावरण के लिए लिहाज से बेहद संवेदनशील है। रोहतांग कई गलेश्यिर, जीवनदायनी नदी-नालों का उदगम स्थल है, लेकिन कुछ अरसे से यहां मानवीय हस्तक्षेप बढ़ा है, जिससे यहां पर्यावरण को खासा नुकसान पहुंचा है। इसे देखते हुए ही एनजीटी यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने जुलाई, 2015 में रोहतांग व आसपास के इलाके पर पर्यटन के कारोबार से जुड़ी गतिविधियों पर पाबंदी लगा दी थी और यहां जाने वाले वाहनों को भी नियंत्रित किया था। हालांकि बाद में कुछ ढील जरूर दी गई थी, लेकिन साथ में इसकी कैरिंग कैपेसिटी रिपोर्ट भी तैयार के आदेश सरकार को दिए थे। ऐसे में टीसीपी विभाग इस क्षेत्र का अध्ययन और सर्वे करवाकर इस पर विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने की दिशा में काम कर रहा है। इस तरह मनाली के वशिष्ठ  से लाहुल-स्पीति के कोकसर तक के करीब 67 किलोमीटर क्षेत्र का अध्ययन कर रिपोर्ट बनाई जाएगी। इससे यहां पर्यावरण संरक्षण हो सकेगा।