विजन के साथ हाजिर हों राजनीतिक दल

अनुज कुमार आचार्य

लेखक, बैजनाथ से हैं

नेताओं को अखबारी सुर्खियों द्वारा लोगों को मुंगेरीलाल के हसीन सपने दिखाने से बचने की जरूरत है। राजनीतिक दलों से अपेक्षा रहेगी कि वे अपने घोषणा पत्र में किन्हीं पांच परियोजनाओं की रूपरेखा प्रस्तुत करें, जिनके पूरा होने से न केवल राज्य की आर्थिकी को बल मिले, बल्कि रोजगार के नए अवसर भी सृजित होते हों…

हिमाचल प्रदेश में चुनावी बिगुल बज चुका है और दोनों प्रमुख दलों के प्रत्याशियों ने अपनी मुश्कें कस ली हैं। भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा विधिवत चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के साथ ही राज्य में चुनावी आचार संहिता लागू हो गई है। नामांकन पत्र दाखिल करने की तिथि बीत चुकी है। अब नौ नवंबर को मतदान होगा और 18 दिसंबर 2017 को मतगणना की जाएगी और चुनाव परिणाम घोषित होंगे। इस बार सात हजार 521 मतदान केंद्रों पर कुल 49 लाख 05 हजार 665 मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। अमूमन प्रदेश विधानसभा चुनावों में वोटिंग प्रतिशत 70 फीसदी से ऊपर ही रहता आया है। पिछले कुछ वर्षों से भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा किए गए विशेष उपायों से मतदान प्रतिशत में वृद्धि एवं सुधार हुआ है। जहां तक प्रदेश विधानसभा में महिलाओं की भागीदारी का सवाल है, तो 1972 के विधानसभा चुनावों में मात्र पांच महिलाएं निर्वाचित हुई थीं। 1977 में एक,  1982 में तीन, 1990 में चार, 1993 में चार, 1998 में सात, 2003 में चार और 2007 में कुल पांच महिलाएं ही विधानसभा की चौखट पार कर सकी थीं। लोकतंत्र एवं आधी आबादी के सशक्तिकरण के दृष्टिगत यह प्रतिशत बेहद कम है।

विकास एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। आधुनिक संचार तकनीकी के जमाने में दूसरे विकसित देशों की तुलना में मिलने वाली सुविधाओं के दृष्टिगत अब भारतीय नागरिकों की उम्मीदें और अपेक्षाएं भी परवान चढ़ रही हैं। अब सभी भारतीय नागरिकों की तरह हिमाचल के प्रबुद्ध एवं जागरूक मतदाताओं की यह स्पष्ट सोच है कि वक्त के अनुसार भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार से छुटकारा मिलना चाहिए तथा विकास कार्य धरातल पर दिखाई देने चाहिएं। इसके लिए जरूरी है कि हिमाचल प्रदेश के दोनों प्रमुख दल व्यक्तिगत छींटाकशी से परहेज करते हुए अपना दृष्टिपत्र प्रस्तुत करें तथा केवल उन मुद्दों पर अपना नजरिया स्पष्ट करें, जिन्हें सिरे चढ़ाने का माद्दा भी रखते हों। आम तौर पर देखा जाता है कि जब भी लोकसभा अथवा विधानसभाओं के चुनाव होते हैं, तो पक्ष-विपक्ष के नेतागण विकास संबंधी मुख्य मुद्दों से आम जनता का ध्यान भटकाकर व्यक्तिगत छींटाकशी पर उतर आते हैं। इस बीच असल मुद्दे गौण रह जाते हैं। अब नेताओं को अखबारी सुर्खियों द्वारा वर्ष-दर-वर्ष लोगों को मुंगेरीलाल के हसीन सपने दिखाकर मूर्ख बनाने की आदत से बचने की जरूरत है।

पिछले 70 वर्षों से प्रदेश का नेतृत्व करने वाली सभी सरकारों ने अपने सीमित आर्थिक संसाधनों के बलबूते विकास कार्यों को सिरे चढ़ाने की कोशिशें की हैं, लेकिन उसी अनुपात में राज्य पर कर्ज का बोझ भी बढ़ा है। राजनीतिक दलों से अपेक्षा रहेगी कि वे अपने घोषणा पत्र में किन्हीं पांच परियोजनाओं की रूपरेखा प्रस्तुत करें, जिनके पूरा होने से न केवल राज्य की आर्थिकी को बल मिले, बल्कि रोजगार के नए अवसर भी सृजित हों। वर्तमान में हिमाचल प्रदेश का मध्यम वर्ग शिक्षा के महत्त्व को समझते हुए अपनी संतानों के साथ शिक्षा के क्षेत्र में प्रगतिशील है। बड़ी संख्या में हमारे युवा प्रदेश में तथा बाहर दूसरे राज्यों में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। इस लिहाज से भी रोजगार के अधिकतम अवसर सृजित हों, इसका भी खाका चुनाव मैदान में उतरने वाले दलों को मतदाताओं के समक्ष खींचना होगा। इस बड़े मुद्दे पर राजनीतिक दलों को जरूर अपना नजरिया स्पष्ट करना चाहिए।

हिमाचल प्रदेश में पशुधन को कोई ठौर ठिकाना हासिल न होने और बंदरों की बढ़ती फौज के कारण खेती-किसानी तो जैसे खत्म ही हो चली है। यह भी उतना ही सत्य है कि आज भी बड़ी मात्रा में सब्जियां, अनाज, दूध-दही और फलों की आपूर्ति के लिए हम पड़ोसी राज्यों पर निर्भर हैं। सबसिडी पर मिलने वाली राशन सुविधा बंद होनी चाहिए अथवा जो नागरिक सबसिडी वाला राशन नहीं लेना चाहते, उन्हें सबसिडी की राशि उनके खातों में डाली जाए, ताकि सबसिडी वाले राशन की लूट-खसोट बंद हो। हमारे बेरोजगार युवाओं को किस प्रकार से खेतीबाड़ी एवं पशुपालन की ओर प्रवृत्त किया जाए, इसकी भी रूपरेखा तय होना जरूरी है। अच्छी तथा भरोसेमंद स्वास्थ्य सुविधाएं मिलना इस पहाड़ी राज्य के लिए अभी भी दूर की कौड़ी बनी हुई है। आज भी आपातकालीन हालात में लोगों को अपना इलाज करवाने के लिए चंडीगढ़ अथवा पंजाब के शहरों की तरफ दौड़ लगानी पड़ती है। बिलिंग-बैजनाथ की तर्ज पर नए साहसिक पर्यटन स्थलों की पहचान कर उन्हें उन्नत बनाने की जरूरत है। इससे पर्यटन को तो बढ़ावा मिलेगा ही, रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।

राष्ट्रीय राजमार्गों, फोरलेनिंग, हवाई अड्डों के विस्तारीकरण और ब्रॉडगेज रेल लाइंस की स्थापना प्राथमिकता के आधार पर किस प्रकार होगी। किस तरह से सरकारी नीतियों, कार्यक्रमों तथा योजनाओं का संपूर्ण लाभ आम लोगों को मिले और उन्हें भ्रष्टाचार से मुक्ति मिले, इसके लिए निगरानी तंत्र की स्थापना और भ्रष्टाचार का अड्डे बने सरकारी कार्यालयों को सीसीटीवी कैमरों की जद में लाया जाएगा, इसकी भी घोषणा होनी चाहिए। रिश्वतखोर अधिकारियों खासकर रेडक्रॉस टिकटों की आड़ में सरेआम लूट का कारोबार चलाने वाले कर्मचारियों को रंगे हाथों पकड़ने की व्यवस्था का ऐलान होना अति आवश्यक है। वहीं अंशदायी पेंशन योजना के अंतर्गत आने वाले कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन प्रणाली बहाल होनी चाहिए, ताकि सेवानिवृत्ति के बाद ऐसे कर्मचारी सिर उठाकर अपना सुखद जीवनयापन कर सकें। इसकी घोषणा भी राजनीतिक दल अपने दृष्टि पत्र में करें। राजनीतिक दलों के विजन को परखने के बाद ही मतदाता अपने नमाइंदों को चुनें।