सुरक्षा और मानवता के बीच रोहिंग्या

प्रभुनाथ शुक्ला

लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं

कोई भी व्यक्ति अगर किसी देश में शरण लेता है, तो उसके मानवीय अधिकारों की रक्षा होनी चाहिए। लेकिन अगर वह मानवीयता की आड़ में जीवनयापन की मांग करे और उसी देश के खिलाफ आतंकी साजिश में शामिल होकर षड्यंत्र रचे, फिर यह कहां का न्याय है।  जिस तरह रोहिंग्या मुसलमानों ने म्यांमार की सेना और बौद्धों को निशाना बनाया, उसे मानवीय कैसे ठहराया जाए? भारत में 40 हजार से अधिक रोहिंग्या मुसलमान शरण लिए हुए हैं। भारत सरकार ने साफ कर दिया है कि वह रोहिंग्या मुसलमानों को शरण नहीं देना चाहती…

सुप्रीम कोर्ट ने 13 अक्तूबर को कहा कि जब तक मामले की अगली सुनवाई नहीं हो जाती, देश से किसी भी रोहिंग्या मुसलमान को बाहर न भेजा जाए। मामले की अगली सुनवाई 21 नवंबर को होगी। हालांकि अदालत ने याचिकाकर्ताओं को यह अनुमति दी कि वे किसी भी आकस्मिक स्थिति में शीर्ष अदालत में आ सकते हैं। अदालत ने केंद्र सरकार को कहा कि अगर आपके पास कोई आकस्मिक प्लान है तो अदालत को अवश्य सूचित करें। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की है, ‘रोहिंग्या मुसलमानों का मुद्दा राष्ट्रीय महत्त्व का है और इसे पीछे नहीं रखा जा सकता है, लेकिन साथ-साथ रोहिंग्या मुसलमानों के मानवाधिकारों का भी ख्याल रखना जरूरी है।’ म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों पर आए संकट और पलायन के बाद से पूरी दुनिया में शरणार्थी समस्या बहस का मसला बना हुआ है। पलायनवाद एक समुदाय विशेष की समस्या के बजाय एक वैश्विक विभीषिका के रूप में उभरा है। संयुक्त राष्ट्र संघ भी इस पर गहरी चिंता जता चुका है, लेकिन आंतरिक गृह युद्ध, जातीय हिंसा के साथ आतंकवाद की वजह से सबसे अधिक लोगों का पलायन हुआ है। शरणार्थी समस्या मानवीयता से जुड़ा मसला है। इसे मजहब, जाति या समुदाय विशेष से जोड़ना गलत होगा। दुनिया भर के मुल्कों का जरिया शरणार्थी समस्या पर उदार रहा है। भारत का मानवीय नजरिया सबसे अलग है। संयुक्त राष्ट्र संघ भारत के प्रयासों की प्रशंसा कर चुका है, लेकिन रोहिंग्या मुसलमानों पर भारत के कदम को कुछ लोग गलत बता रहे हैं और घडि़याली विलाप का मंचन कर रहे हैं।

पाकिस्तान में बैठे आतंकी आका म्यांमार और भारत को तबाह करने की धमकी दे रहे हैं और दुनिया के मुसलमानों से एकजुट होने की अपील कर रहे हैं। ऐसी अपीलों से हल निकलने वाला नहीं है। संयुक्त राष्ट्र की तरफ से 2015 में यूएनएचसीआर द्वारा जारी एक वैश्विक रपट में बताया गया कि सिर्फ एक साल में 6.53 करोड़ लोग दुनिया भर में पलायित हुए। एक साल पूर्व 2014 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जितने लोग पलायित नहीं हुए थे, उससे कहीं अधिक शरणार्थी शिविरों में शरण को मजबूर हुए। इन आंकड़ों के मुताबिक हर मिनट 24 लोग, जबकि एक दिन में 34,000 लोगों ने पलायन किया। 12 साल पूर्व एक मिनट सिर्फ छह लोगों को पलायन का दंश झेलना पड़ा था। दुनिया में विस्थापन की समस्या सबसे अधिक सीरिया युद्ध के बाद शुरू हुई। उस दौरान पलायन में 50 फीसदी तक का इजाफा हुआ। इसमें आधे से अधिक सीरिया, अफगानिस्तान और सोमालिया के लोग हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ में 2015 में शरण लेने के लिए जिन देशों के लोगों ने आवेदन किया था, उनमें आने वाले कुल आवेदनों में 20 फीसदी सीरिया, दूसरे पायदान पर कोसोवो थे, जो सर्विया से अलग हुए थे। यहां से 66 हजार लोगों ने शरण लेने के लिए आवेदन किया।

अफगानिस्तान से 63 हजार लोगों ने यूरोप के लिए आवेदन किया। अल्बानिया से 43, इराक से 34, सर्विया से 22 पाकिस्तान से 20, सोमालिया और यूक्रेन से 13 हजार लोगों ने देश छोड़ कर दूसरी जगह पलायन के लिए आवेदन किया। जारी आंकड़ों में चार करोड़ से अधिक वे लोग थे, जो अपने ही देश में शरणार्थी बनने को मजबूर हुए। रिपोर्ट में सबसे अधिक चौंकाने वाली बात यह थी कि 2015 में विस्थापितों में आधे से अधिक मासूम बच्चे थे। यूएन में शरण लेने के लिए 98 लाख से अधिक बच्चों ने आवेदन किया था। उनके सिर से मां-बाप का साया उठ गया था और वे आंतरिक, जातीय या फिर आतंकवाद जैसी हिंसा में अनाथ हुए थे। शरणार्थी समस्या पर निश्चित तौर पर मानवीय दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने लोगों को संवैधानिक अधिकार भी दिए हैं। कोई भी व्यक्ति अगर किसी देश में शरण लेता है, तो उसके मानवीय अधिकारों की रक्षा होनी चाहिए। लेकिन अगर वह मानवीयता की आड़ में जीवनयापन की मांग करे और उसी देश के खिलाफ आतंकी साजिश में शामिल होकर षड्यंत्र रचे, फिर यह कहां का न्याय है। जिस तरह रोहिंग्या मुसलमानों ने म्यांमार की सेना और बौद्धों को निशाना बनाया, उसे मानवीय कैसे ठहराया जाए? भारत में 40 हजार से अधिक रोहिंग्या मुसलमान शरण लिए हुए हैं। भारत सरकार ने साफ कर दिया है कि वह रोहिंग्या मुसलमानों को शरण नहीं देना चाहती। देश की सर्वोच्च अदालत में इसकी सुनवाई भी चल रही है। सरकार के इस रुख पर राजनीति की जा रही है।

पाकिस्तान में बैठा आतंकी आका अजहर मसूद दुनिया के मुसलमानों से एकजुट होने की अपील कर रहा है। उसे पाकिस्तान और बांग्लादेश में रहने वाले अल्पसंख्यक हिंदू नहीं दिखाई दे रहे, जिनकी बहू-बेटियों से खुलेआम बलात्कार किए जाते हैं। जबरन धर्म परिवर्तन कर शादियां की जाती हैं। हिंदू मंदिरों को तोड़ा जाता है। पाकिस्तान में भी तीन लाख से अधिक रोहिंग्या मुसलमान शरण लिए हैं, फिर पाकिस्तान उन्हें मुसलमान और इस्लाम के नाम पर ही क्यों नहीं नागरिकता प्रदान करता? शरणार्थी शिविरों में रहने को रोहिंग्या क्यों मजबूर हैं। दुनिया भर में 56 से अधिक मुस्लिम देश हैं। क्यों नहीं रोहिंग्या को शरण के लिए आमंत्रित करते? एक भी इस्लामिक देश ने इस समस्या पर अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी है। कश्मीर से आतंकवाद की वजह से लाखों पंडित दिल्ली और दूसरे राज्यों में शरण लिए हुए हैं। अपने ही देश में वे पलायन को मजबूर हुए। रोहिंग्या की पीड़ा उन्हें चुभती है, लेकिन कश्मीरी पंडित नहीं दिखते। पाकिस्तान में बैठे आतंकी आका और अलगाववादी अलग कश्मीर की मांग कर रहे हैं। वे भारत के संविधान और कानून को मानने के लिए तैयार नहीं है। वे तिरंगा नहीं फहराना चाहते। वे धारा 35ए को जिंदा रखना चाहते हैं, फिर रोहिंग्या पर सरकार हमदर्दी दिखाकर देश के एक और विभाजन की आवाज क्यों बुलंद करवाए? आतंकी आका और पाकिस्तान रोहिंग्या की आड़ में पूर्वी पाकिस्तान के विभाजन का बदला लेना चाहते हैं। इसे भारत कभी कामयाब नहीं होने देगा। भारत से रोहिंग्या मुसलमानों को निकालना भी एक समस्या है। आखिर उन्हें कहां और किस देश में भेजा जाएगा? यह भी एक बड़ा सवाल है।

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