सोशल मीडिया में सियासी सक्रियता

कर्म सिंह ठाकुर

लेखक, सुंदरनगर, मंडी से हैं

सत्य और तथ्य के बावजूद सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार की संभावना हर कहीं बनी रहती है। लिहाजा इस चुनाव से पहले भी नेताओं द्वारा मतदाताओं को भ्रमित करने के प्रयास हो सकते हैं। ऐसे में सोशल मीडिया की शुचिता को बरकरार रखने के लिए हर पक्ष को संजीदगी दिखानी होगी…

सूचना प्रौद्योगिकी की रफ्तार व सुगमता ने मानव जीवन की हर गतिविधि को गहराई से प्रभावित किया है। स्मार्ट फोन के आविष्कार के बाद तो मानों पूरी दुनिया ही मुट्ठी में समा गई हो। सामाजिक जीवन की घटनाओं में भी सूचनाओं के आदान-प्रदान में सोशल मीडिया ने अपनी अच्छी पकड़ बना ली है। प्रदेश की हसीन वादियों में हल्की-हल्की ठंड ने दस्तक देनी शुरू कर दी है, वहीं विधानसभा चुनावों के ताप में पहाड़ और मैदान दोनों ही तप रहे हैं। हर दल और हर नेता द्वारा चुनावी मैदान में अपने तरकश के हर तीर से लक्ष्य को साधने का भरसक प्रयास किया जा रहा है। इसी बीच सोशल मीडिया अपनी पहुंच व प्रभाव के कारण इस मैदान-ए-जंग में खूब जलवे बिखेर रहा है। खैर अब तक तो टिकटों का आबंटन भी नहीं हुआ, लेकिन चुनावी विजय का हर चाहवान सोशल मीडिया के मार्फत हर दिन हिमाचली मतदाता से मुखातिब हो रहा है। टिकटों के आबंटन के लिए राजनीतिक दलों को फूंक-फूंक कर पैर रखने पड़ रहे हैं, वहीं दावेदारों की दावेदारी सिर चढ़कर बोल रही है। हर गली-मोहल्ले, कस्बे में राजनीतिक चर्चाएं गर्म हैं, वहीं सोशल मीडिया में  नेताओं की खूबियों और आलोचनाओं का सिलसिला शुरू हो चुका है। व्हाट्सऐप, फेसबुक, ट्विटर तथा इंस्टाग्राम पर पोस्टरों के माध्यम से शुभ संदेश व चुनावी रैलियों की तस्वीरें सुर्खियां बटोर रही हैं। पहाड़ी राजनीति भी अतीत के कुछ चुनावों में सोशल मीडिया के असर से भलीभांति वाकिफ है।

ऐसे में इसके दोहन के लिए कोई राजनीतिक दल पीछे नहीं रहना चाहता। विभिन्न दलों द्वारा अपनी-अपनी पार्टी के आईटी सैल स्थापित किए गए हैं। आईटी विशेषज्ञों की टीमें नियुक्त करके उन्हें सोशल मीडिया में प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में प्रचार-प्रसार में सोशल मीडिया को विशेष तरजीह दी थी। एक अध्ययन के अनुसार भारतीय जनता पार्टी का बीस फीसदी के करीब प्रचार सोशल मीडिया के माध्यम से किया गया था। कहना न होगा कि इसका परिणाम भी भाजपा के पक्ष में आया और 30 वर्ष बाद भाजपा ने भारी बहुमत से सत्ता प्राप्त करके दिल्ली का ताज प्राप्त किया था। अब हिमाचल विधानसभा चुनावों की बारी है, तो हर राजनीतिक दल और उसके नेता इस मंच का अधिकाधिक लाभ लेने की होड़ में शामिल हो चुके हैं। नए-पुराने नेताओं के फेसबुक खातों में हुई वृद्धि और उनके मार्फत सोशल मीडिया में बढ़ी सक्रियता भी इसी बात को तसदीक करती है कि सोशल मीडिया इस बार के चुनावों को किस हद तक प्रभावित कर सकता है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों के परिणामों ने सोशल मीडिया के महत्त्व को सर्वोच्च शिखर पर पहुंचा दिया। उसके उपरांत जितने भी राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए, उनमें सोशल मीडिया द्वारा चुनावी प्रचार-प्रसार की तरजीह दी गई। केंद्र सरकार डिजिटल क्षेत्र में बहुत सक्रिय भूमिका निभा रही है। सरकार की उपलब्धियों व खामियों का आकलन सोशल मीडिया के मंच पर होना प्रारंभ हो गया है। गुजरात तथा हिमाचल प्रदेश में चुनावी गतिविधियां भी सोशल मीडिया पर खूब सुर्खियां बटोर रही है। नेतागण फेसबुक लाइव से अपने फॉलोवर्ज को संबोधित कर रहे हैं, ताकि राजनीतिक सत्ता के मार्ग में अपनी जीत सुनिश्चित की जा सके।

बेशक अपनी अहमियत के कारण सोशल मीडिया की राजनीतिक उपयोगिता भी लगातार बढ़ती जा रही है, लेकिन खामियों से तो यह भी मुक्त नहीं है। ढेरों खूबियों के बावजूद सोशल मीडिया की अपनी कुछ सीमाएं हैं, जो राजनीतिक दलों और मतदाता दोनों को ही सतर्कता और संयम बरतने के लिए आगाह करती हैं। सोशल मीडिया सेंसरशिप से पूरी तरह से मुक्त है। इसमें जो भी व्यक्ति या दल अपना विचार जैसे चाहे, वैसे ही साझा कर सकता है और यहीं से असल संकट भी शुरू हो जाता है। चुनावों से पहले भी हिमाचल की राजनीतिक दुनिया सोशल मीडिया पर सक्रिय रही है। इसके कारण कई बार विवाद हुए और कई बार अफवाहों के बाजार भी गरमाए। हमारा मानना है कि सत्य और तथ्य के बावजूद सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार की संभावना हर कहीं बनी रहती है। लिहाजा इस चुनाव से पहले भी नेताओं द्वारा मतदाताओं को भ्रमित करने के प्रयास हो सकते हैं। ऐसे में सोशल मीडिया की शुचिता को बरकरार रखने के लिए हर पक्ष को संजीदगी दिखानी होगी। युवाओं का हर पल स्मार्ट फोन की धुन पर गुजरता है, वहीं कर्मचारी व गृहिणियों के हाथों में भी स्मार्ट फोन पहुंच चुका है। स्मार्ट फोन में इंटरनेट का संचार जीयो जैसी सस्ती व बेहतर सेवा ने और भी तेज कर दिया है। आगामी विधानसभा चुनावों में सोशल मीडिया किस पक्ष को ज्यादा लाभ दिला पाएगा यह तो वक्त ही बताएगा, पर जो दल तकनीकी का भरपूर इस्तेमाल सुव्यवस्थित व नियमित ढंग से करेगा उसको सोशल मीडिया से लाभ तो जरूर मिलेगा। व्हाट्सऐप तथा फेसबुक पर किसी भी सूचना को बड़ी आसानी से वायरल किया जा सकता है। कुछ ही सेकंडों में लाखों लोगों तक अपने दल की नीतियोें व कार्यक्रमों को जनता से साझा किया जा सकता है। खासकर युवाओं को रिझाने के लिए सोशल मीडिया मुख्य हथियार है। युवा व प्रदेश के कर्मचारी जिस तरफ मुड़ जाएगा, उस तरफ का पलड़ा भारी हो सकता है। राजनीतिक पंडितों को भी इसकी अच्छी समझ है। यही कारण है कि अभी से सोशल मीडिया का बाजार गर्म है। चुनावी रैलियों का आयोजन, भाषणों, वालपेपरों व स्लाइडों द्वारा प्रचार आगामी चुनावों में और भी ज्यादा देखने को मिलेगा।