अजूबे से कम नहीं है मीनाक्षी सुंदरेश्वर मंदिर

पोत्रमारै कूलम, पवित्र सरोवर है जो 165 फुट लंबा एवं 120 फुट चौड़ा है। यह मंदिर के भीतर भक्तों हेतु अति पवित्र स्थल है। भक्तगण मंदिर में प्रवेश से पूर्व इसकी परिक्रमा करते हैं। इसका शाब्दिक अर्थ है स्वर्ण कमल वाला सरोवर…

गतांक से आगे…

मंदिर का ढांचा

इस मंदिर का गर्भगृह 3500 वर्ष पुराना है। इसकी बाहरी दीवारें और अन्य बाहरी निर्माण लगभग 1500-2000 वर्ष पुराने हैं। इस पूरे मंदिर का भवन समूह लगभग 45 एकड़ भूमि में बना है, जिसमें मुख्य मंदिर में भारी-भरकम निर्माण है और उसकी लंबाई 254 मीटर एवं चौड़ाई 237 मीटर है। मंदिर बारह विशाल गोपुरमों से घिरा है, जो कि उसकी दो परिसीमा भीत (चारदीवारी) में बने हैं। इनमें दक्षिण द्वार का गोपुरम सर्वोच्च है।

द्वार दिशा           तल संख्या            ऊंचाई    शिल्प संख्या

पूर्वी        नौ          161 इंच  1011

दक्षिणी    नौ          170 इंच 1511

पश्चिमी   नौ          163 इंच 1124

उत्तरी      नौ          160 इंच सबसे कम

मंदिर

शिव मंदिर समूह के मध्य में स्थित है, जो देवी के कर्मकांड बाद में अधिक बढ़ने की ओर संकेत करता है। इस मंदिर में शिव की नटराज मुद्रा भी स्थापित है। शिव की यह मुद्रा सामान्यतः नृत्य करते हुए अपना बायां पैर उठाए हुए होती है, परंतु यहां उनका दायां पैर उठा है। एक कथा अनुसार राजा राजशेखर पांड्य की प्रार्थना पर भगवान ने अपनी मुद्रा यहां बदल ली थी। यह इसलिए था कि सदा एक ही पैर को उठाए रखने से उस पर अत्यधिक भार पडे़गा। यह निवेदन उनके व्यक्तिगत नृत्य अनुभव पर आधारित था। यह भारी नटराज की मूर्ति, एक बड़ी चांदी की वेदी में बंद है, इसलिए इसे वेल्ली अंबलम् (रजत आवासी) कहते हैं। इस गृह के बाहर बडे़ शिल्प की आकृतियां हैं, जो कि एक ही पत्थर से बनी हैं। इसके साथ ही यहां एक वृहद गणेश मंदिर भी है, जिसे मुकुरुनय विनायर्ग कहते हैं। इस मूर्ति को मंदिर के सरोवर की खुदाई के समय निकाला गया था। मीनाक्षी देवी का गर्भ गृह शिव के बाएं में स्थित है और इसका शिल्प स्तर शिव मंदिर से निम्न है।

पोत्रमारै सरोवर

पोत्रमारै कूलम, पवित्र सरोवर है जो 165 फुट लंबा एवं 120 फुट चौड़ा है। यह मंदिर के भीतर भक्तों हेतु अति पवित्र स्थल है। भक्तगण मंदिर में प्रवेश से पूर्व इसकी परिक्रमा करते हैं। इसका शाब्दिक अर्थ है स्वर्ण कमल वाला सरोवर। अक्षरशः इसमें होने वाले कमलों का वर्ण भी सुवर्ण ही है। एक पौराणिक कथानुसार, भगवान शिव ने एक सारस पक्षी को यह वरदान दिया था कि इस सरोवर में कभी भी कोई मछली या अन्य जलचर पैदा होंगे और ऐसा ही है भी। तमिल धारणा अनुसार, यह नए साहित्य को परखने का उत्तम स्थल है। अतएव लेखक यहां अपने साहित्य कार्य रखते हैं। निम्न कोटि के कार्य इसमें डूब जाते हैं एवं उच्च श्रेणी का साहित्य इसमें तैरता है, डूबता नहीं।

सहस्र स्तंभ मंडप

आयिराम काल मंडप या सहस्र स्तंभ मंडप या हजार खंभों वाला मंडप, अत्योच्च शिल्प महत्त्व का है। इसमें 985 (न कि 1000) भव्य तराशे हुए स्तंभ हैं। यह भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के अनुरक्षण में है। ऐसी धारणा है कि इसका निर्माण आर्य नाथ मुदलियार ने कराया था। मुदलियार की अश्वारोही मूर्ति मंडप को जाती सीढि़यों के बगल में स्थित है। प्रत्येक स्तंभ पर शिल्पकारी की हुई है, जो द्रविड़ शिल्पकारी का बेहतरीन नमूना है। इस मंडप में मंदिर का कला संग्रहालय भी स्थित है। इसमें मूर्तियों, चित्र एवं छायाचित्र इत्यादि के द्वारा इसका 1200 वर्ष का इतिहास देख सकते हैं। इस मंडप के बाहर ही पश्चिम की ओर संगीतमय स्तंभ स्थित हैं। इनमें प्रत्येक स्तंभ थाप देने पर भिन्न स्वर निकालता है। स्तंभ मंडप के दक्षिण में कल्याण मंडप स्थित है, जहां प्रतिवर्ष मध्य अप्रैल में चैत्र मास में चितिरइ उत्सव मनाया जाता है। इसमें शिव-पार्वती विवाह का आयोजन होता है।

उत्सव एवं त्योहार

इस मंदिर से जुड़ा सबसे महत्त्वपूर्ण उत्सव है मीनाक्षी तिरुकल्याणम, जिसका आयोजन चैत्र मास (अप्रैल के मध्य) में होता है। इस उत्सव के साथ ही तमिलनाडु के अधिकांश मंदिरों में वार्षिक उत्सवों का आयोजन भी होता है। इसमें अनेक अंक होते हैं, जैसे कि रथ-यात्रा (तेर तिरुविझाह) एवं नौका उत्सव (तेप्पा तिरुविझाह)। इसके अलावा अन्य हिंदू उत्सव जैसे नवरात्रि एवं शिवरात्रि भी यहां धूमधाम से मनाए जाते हैं।