कई चरणों में हुआ हिमालय का उत्थान

हिमालय का उत्थान कई चरणों में हुआ। मध्य कल्प के अंत में संपूर्ण विश्व में बड़े पैमाने पर भू-संचलन एवं पटल विरूपण की घटनाएं हुईं। गोंडवानालैंड का विखंडन कार्बोनिफेरस युग में ही प्रारंभ हो गया था। इसके चलते टिथिस सागर में निक्षेपित अवसाद पर तीव्र दबाव पड़ा और  वे वलित होकर हिमालय श्रेणी के रूप में उभरी…

गतांक से आगे… इस कल्प के प्रारंभ होने से पूर्व (7 करोड़ वर्ष) हिमालय के स्थान पर एक लंबा संकरा जलमग्न क्षेत्र था, जो ‘टिथिस सागर’ के नाम से विख्यात है। इस टिथिस सागर के उत्तर एवं दक्षिण की ओर क्रमशः अंगारालैंड एवं गोंडवानालैंड के दृढ़ भूखंड थे। हिमालय की प्रमुख श्रेणी में पूर्व कैम्ब्रियन की रवेदार नीस, शिष्ट क्वार्टजाइट आदि आर्कियन युगीन चट्टानों की बहुलता इसका प्रमाण है कि इस टिथिस सागर में दृढ़ भूखंडों से अपरदित होकर जाने वाला अवसाद निक्षेपित होता रहा। इस प्रकार लघु हिमालय  में विन्धय श्रेणी में मिलने वाली चट्टानों के समकालीन चूना पत्थर एवं क्वार्टजाइट की प्रचुरता मिलती है। इनकी अत्अधिक मोटाई इस बात का प्रमाण है कि इन चट्टानों के निर्माणकारी अवसाद का जमाव क्रमशः धंसती हुई सागर तली पर  दीर्घकाल तक होता रहा। उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि महान हिमालय अक्ष के दोनों ओर दो समानांतर भू- स्न्नातियां थीं। उत्तरी भूसन्न्ति में पुराजेव कल्प के प्रारंभ से तृतीयक कल्प के प्रारंभ  के अवसाद निक्षेपित हुए, जिनमें जीवावशेष युक्त चट्टानें कम पाई जाती हैं ये दोनों भूसन्नतियां कई स्थानों पर परस्पर जुड़ी हुई थीं। हिमालय का उत्थान कई चरणों में हुआ। मध्य कल्प के अंत में संपूर्ण विश्व में बड़े पैमाने पर भू-संचलन एवं पटल विरूपण की घटनाएं हुईं। गोंडवानालैंड का विखंडन कार्बोनिफेरस युग में ही प्रारंभ हो गया था। इसके चलते टिथिस सागर में निक्षेपित अवसाद पर तीव्र दबाव पड़ा और  वे वलित होकर हिमालय श्रेणी के रूप में उभरी।