गीता मंदिर

मथुरा से 6 मील उत्तर में वृंदावन है। किंतु रेल मार्ग से जाने पर उसकी दूरी 9 मील होती है। मथुरा छावनी स्टेशन से छोटी लाइन की ट्रेन मथुरा जंक्शन होकर वृंदावन जाती है। मथुरा से वृंदावन तक मोटर-बसें  चलती हैं और मथुरा के वृंदावन दरवाजा से रिक्शे, तांगे भी मिलते हैं। मथुरा-वृंदावन मार्ग पर लगभग मध्य में हिंदू धर्म के महान पोषक श्री जुगलकिशोरजी बिड़ला का बनवाया भव्य गीता मंदिर है, जिसमें गीता गायक की संगमरमर की विशाल एवं सुंदर मूर्ति स्थापित है एवं संपूर्ण गीता सुललित अक्षरों में पत्थर पर खुदी है। यहां प्रतिदिन प्रातः – सायं दोनों समय समधुर स्वरों में नियमित रूप से भगवन्नाम कीर्तन तथा पद गायन भी होता है। ठहरने के लिए सुंदर तथा सुव्यवस्थित धर्मशाला भी है। वृंदावन में ठहरने के लिए बहुत सी धर्मशालाएं हैं। श्री बिहारी जी के मंदिर के पास, भजनाश्रम के पास, श्रीरंगजी मंदिर के पास और भी कई धर्मशालाएं हैं। भक्तवर श्रीजानकी दासजी पाटोदिया द्वारा स्थापित पुराना भजनाश्रम है, जहां हजारों असहाय माताएं कीर्तन करके अन्न पाती हैं। आचार्य श्रीचक्रपाणिजी का नारायणाश्रम तथा श्रीशिव भगवानजी फोगला के अथक प्रयत्न से निर्मित वृंदावन भजन सेवाश्रम श्री उडि़या बाबाजी का आश्रम तथा कानपुर के सिंहानिया द्वारा बनवाया सुंदर मंदिर, स्वामी श्रीशरण नंद जी का मानव सेवा संघ आश्रम आदि नवीन उपयोगी स्थान हैं। वृंदावन की परिक्रमा 4 मील की है। बहुत से लोग प्रतिदिन परिक्रमा करते हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण में कथा है कि सतयुग में महाराजा केदार की पुत्री वृंदा ने यहीं श्रीकृष्ण जी को पति रूप में पाने के लिए दीर्घकाल तक तपस्या की थी। श्यामसुंदर ने प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिया। वृंदा की पावन तपोभूमि होने से यह वृंदावन कहा  जाता है। श्रीराधा-कृष्ण की निकुंज लीलाआें की प्रधान रंगस्थली वृंदावन ही है। उसकी अधिष्ठात्री श्रीवृंदा देवी हैं इसलिए इसे वृंदावन कहते हैं।