जमाखोरी पर कसें लगाम

राजेश कुमार चौहान, सुजानपुर टिहरा

बढ़ती महंगाई ने तो मध्यम और गरीब वर्ग की तो कमर ही तोड़ कर रख दी है। न बाढ़, न बारिश और न ही सूखा, फिर भी टमाटर और प्याज की कीमतें चिढ़ा रही हैं। देश में उगाई जाने वाली खाद्य वस्तुओं की बढ़ती कीमतों को देखकर तो यह लगने लगा है कि यह कहीं दूर विदेशों से आई हैं। अकसर कई बार यह भी देखा जाता है कि एक ही शहर में एक ही सब्जी के दाम में काफी फर्क होता है। कृषि प्रधान देश में महंगाई बढ़ना और दूसरे छोर पर किसानों की दयनीय दशा सचमुच शर्मनाक और निंदनीय है। देश में बढ़ती महंगाई के लिए कई कारण जिम्मेदार हैं। इनमें कालाबाजारी, मुनाफाखोरी, जमाखोरी, दिन-प्रतिदिन बिगड़ता मौसम चक्र और सरकारों की लापरवाही मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं। कुदरत के आगे इनसान अभी तक बौना है, इसलिए कुदरत के कहर से फसलों को बर्बाद होने से बचाने के लिए कुदरत को बचाने के लिए गंभीरता दिखानी होगी। सरकारें भी बढ़ती महंगाई पर लगाम कसने के लिए खोखले दावे करती हैं, लेकिन इससे जुड़ी समस्याओं की तरफ ध्यान नहीं देती। महंगाई के लिए जमाखोरी भी सबसे बड़ा कारण है, लेकिन सरकारों द्वारा इस पर नियंत्रण के लिए अब तक कोई प्रभावी नीति नहीं बन पाई है। यह लापरवाही सोचने पर मजबूर कर देती है कि दाल में कुछ काला तो जरूर है। किसानों को भी बढ़ती महंगाई का फायदा तो तभी हो सकता है, जब किसानों को बदलते मौसम के अनुसार कृषि करने के लिए जागरूकता अभियान सरकार की तरफ से चलाए जाएं और उनकी पैदावार को उचित दामों तक बाजार में पहुंचाने के लिए कुछ ठोस योजनाएं बनाई जाएं।