तोहू गांव से सीख लें प्रदेश के किसान

विजय शर्मा

लेखक, हिम्मर, हमीरपुर से हैं

हमीरपुर के तोहू गांव के किसानों ने जैविक खाद का प्रयोग कर अपनी फसल की उपज को चार गुना तक बढ़ाया है। इससे किसानों की आमदन में करीब छह हजार प्रति एकड़ की चौंकाने वाली वृद्धि दर्ज हुई है। प्रदेश के किसान चाहें, तो इस गांव से प्रेरणा लेकर जैविक खेती की ओर कदम बढ़ा सकते हैं…

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आकाशवाणी पर प्रसारित ‘मन की बात’ में हमीरपुर जिला के भोरंज ब्लॉक के तोहू गांव का जिक्र किया, तो वे लम्हे पूरे प्रदेश को गौरवान्वित कर गए। तोहू गांव के किसानों ने जैविक खाद का प्रयोग कर अपनी फसल की उपज को चार गुना तक बढ़ाया है। इससे किसानों की आमदन में करीब छह हजार प्रति एकड़ की चौंकाने वाली वृद्धि दर्ज हुई है। प्रदेश के किसान चाहें, तो इस गांव से प्रेरणा लेकर जैविक खेती की ओर कदम बढ़ा सकते हैं। यदि सिक्किम की तर्ज पर प्रदेश के किसान हिमाचल को भी कभी जैविक कृषि वाला राज्य बना पाए, तो जहां किसानों की आर्थिकी सुदृढ़ होगी, वहीं पर्यावरण संबंधी समस्याओं को भी हम निष्प्रभावी बना पाएंगे। ऐसे में हमीरपुर के तोहू गांव की कामयाबी प्रदेश में जैविक खेती को नई दिशा दे सकती है।

जैविक खेती देश भर में शिक्षित युवाओं को अपनी ओर आकर्षित कर रही है। कृषि और बागबानी के प्रति समाज, खासकर युवाओं का नजरिया काफी हद तक बदला है। बीते कुछ समय में आईआईटी और आईआईएम से पासआउट कई युवाओं ने मल्टीनेशनल कंपनियों की नौकरी छोड़कर खेती और उससे जुड़े व्यापार की ओर रुख किया है। जैविक खेती के मामले में सिक्किम और केरल के बाद अब हिमाचल प्रदेश के किसानों का रुझान बढ़ा है। जैविक खेती ने युवाओं के लिए उन्नति के नए द्वार खोल दिए हैं। इससे एक तरफ तन और मन स्वस्थ रहता है, वहीं यह लाभ का सौदा साबित हो रही है। हिमाचल में जैविक खेती हो या इससे जुड़ा कोई कारोबार, खूब फल-फूल रहा है। आज देश और प्रदेश के युवा बागबानी, डेयरी, जैविक और पोल्ट्री फार्मिंग जैसे पेशे से जुड़कर गर्व महसूस कर रहे हैं। यह ऐसी खेती है, जिसमें सिंथेटिक खाद, कीटनाशक आदि जैसी चीजों के बजाय तमाम जैविक चीजें जैसे गोबर, वर्मी कंपोस्ट, बायो फर्टिलाइजर्ज, क्रॉप रोटेशन तकनीक आदि का इस्तेमाल किया जाता है। कम जमीन और कम लागत में इस तरीके से पारंपरिक खेती के मुकाबले ज्यादा उत्पादन होता है। जैविक तरीका फसलों में जरूरी पोषक तत्त्वों को संरक्षित रखता है और नुकसानदेह रसायनों से दूर रखता है। जैविक तरीके से खेती करने से पानी की बचत होती है और यह जमीन को लंबे समय तक उपजाऊ बनाए रखता है। यह पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में मददगार है। हिमाचल में जैविक खेती पहले चरण में  हमीरपुर, कांगड़ा, ऊना, बिलासपुर तथा मंडी में जापान इंटरनेशनल को-आपरेशन एजेंसी, जायका के सहयोग से कार्यान्वित की जा रही है।

कृषि विभाग तथा कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के संयुक्त प्रयासों के परिणामस्वरूप आज प्रदेश में कृषि करने के तौर-तरीकों में भारी बदलाव देखने को मिल रहा है। लोग शौक से जैविक खेती अपना रहे हैं। कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर में अलग से जैविक खेती विभाग स्थापित किया गया है, ताकि इस अभियान को गति व दिशा प्रदान की जा सके। शिमला, सोलन तथा सिरमौर जिलों के कृषक पहले ही जैविक खेती में पंजीकृत कृषक बनने के लिए पहल कर चुके हैं तथा इन जिलों में जैविक खेती लोकप्रिय हो चुकी है। यहां कृषक सब्जियां और औषधीय पौधों से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। हिमाचल में वैसे भी रासायनिक खाद यूरिया आदि को अच्छा नहीं माना जाता है। कृषि सर्वेक्षण से भी पता चला है कि हिमाचल में कीटनाशक रसायनों की खपत मात्र 158 ग्राम प्रति हेक्टेयर है, जबकि देश में औसतन खपत 381 ग्राम प्रति हेक्टेयर है। पंजाब और हरियाणा की खपत 1164 ग्राम प्रति हेक्टेयर है। रासायनिक खाद से तैयार अन्न, सब्जियां व फल स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहद हानिकारक हैं और यही कारण है कि लोगों का रुझान आर्गेनिक अनाज, फलों और सब्जियों की तरफ बढ़ रहा है और लोग इसके लिए अधिक मूल्य चुका रहे हैं। जैविक खेती को बढ़ावा देने में कंपोस्ट खाद की मुख्य भूमिका होती है। सरकार केंचुआ खाद तैयार करने के लिए विशेष प्रोत्साहन योजना चलाती है। कृषकों को वर्मी कंपोस्ट इकाइयां स्थापित करने के लिए 50 प्रतिशत उपदान उपलब्ध करवाया जाता है। जैविक खेती के बढ़ते रुझान का ही परिणाम है कि राज्य में वर्मी कंपोस्ट  तैयार करने की 1.50 लाख से ज्यादा इकाइयां स्थापित हो चुकी हैं। साल के अंत तक वर्मी कंपोस्ट इकाइयों की संख्या दो लाख के आसपास होने का अनुमान है। हालांकि चुनावों के चलते तीन से अधिक माह की प्रशासनिक स्थिरता के कारण यह लक्ष्य अगले वर्ष पूरा हो सकेगा, लेकिन इतना तय है कि जैविक खेती रोजगार के बड़े अवसर के रूप में प्रदेश के किसानों की तरक्की के नए द्वार खोल रही है। प्रदेश में अब तक लगभग 40 हजार से ज्यादा किसानों को पंजीकृत करके लगभग 22 हजार हेक्टेयर क्षेत्र को जैविक खेती के तहत लाया जा चुका है और 31 मार्च, 2018 तक 25 हजार हेक्टेयर से ज्यादा भूमि पर जैविक खेती होने लगेगी।

राज्य सरकार ने जैविक खेती में उत्कृष्ट कार्य करने वाले कृषकों को पुरस्कार प्रदान करने की भी घोषणा की है। इसमें सर्वोत्तम जैविक कृषक को तीन लाख रुपए का प्रथम, दो लाख रुपए का द्वितीय तथा एक लाख रुपए का तृतीय पुरस्कार प्रदान किया जाएगा। इससे किसान उत्साहित होकर अधिक एवं उन्नत किस्मों के बीज अपनाकर अच्छी पैदावार को बढ़ाना दे रहे हैं, जिससे उनकी आय अपेक्षाकृत पहले से दोगुनी तक हो गई है। नई सरकार प्रोत्साहन योजना को और कारगर बनाकर किसानों को स्वावलंबी बनाए और इसके लिए इच्छुक किसानों को कृषि यंत्र और उन्नत किस्म के बीज हासिल करने के लिए कम ब्याज पर कर्ज की व्यवस्था करनी चाहिए।