परमानंद वैरागी जी की कथा

धन-धन सतगुरु रविदास महाराज जी ने पांच वर्ष की आयु में अघंमी बाणी का उच्चारण करना आरंभ कर दिया था। उन्होंने अपनी बाणी का पहला शबद राग सोरठ में ‘जऊ तुम गिरबर तऊ हम मोरा’ उच्चारण किया। गुरु जी की अघंमी बाणी सुनकर बहुत लोग गुरु जी से जुड़ने लगे। गुरु जी के चमत्कारों व गुरु जी का यश सुनकर लोग दूर- दूर से उनके दर्शनों के लिए आने लगे व गुरु जी की अघंमी बाणी से प्रभावित होकर गुरु जी से गुरमंत्र लेने लगे। गुरु जी का यश सुनकर परमानंद जी भी गुरु जी से मिलने आए। परमानंद जी का जन्म संवत् विक्रमी तेरह सौ अठानवे में हुआ था। परमानंद जी गुरु जी से लगभग 50 वर्ष बड़े थे व जात ब्राह्मण, मत बैरागी महंत जमात के थे। परमानंद जी रिद्धि-सिद्धि में बहुत माहिर थे। परमानंद जी ने जब गुरु जी का यश सुना कि कांशी शहर के एक छोटे से गांव में एक बालक बहुत चमत्कार कर रहा है और बहुत लोग उसका यश गान कर रहे है, तो परमानंद जी ने सोचा कि क्यूं न मैं भी चलकर उस बालक के चमत्कार देखूं और परमानंद जी गुरु जी को देखने चल पड़े। जब गुरु जी के घर पहुंचे तो वहां संगत सत्संग कर रही थी, तो परमानंद जी सबको ‘जय सीता राम’ कह कर बैठ गए और कहने लगे कि बताओ वो चमत्कारी बालक कौन है? तो गुरु जी परमानंद जी के पास आए और आदर सहित परमानंद जी को प्रणाम किया और कहा श्रीमान जी आप कौन हैं? उस समय गुरु जी की उम्र सात वर्ष की थी। तो परमानंद जी ने अपने बारे में बताया और कहा कि बालक मैंने तुम्हारे बारे में बहुत सुना है कि तुझमें बहुत शक्ति है। मुझे अपनी शक्ति दिखाओ। तो गुरु जी ने बड़ी विनम्रता से कहा कि मैं तो साध संगत का दास हूं। आदि पुरख परमात्मा के बिना और कोई बड़ी शक्ति नहीं है। परमात्मा सर्व शक्तिमान है। हम तो संगत को परमात्मा के नाम की शक्ति के बारे में बताते हैं, तो परमानंद जी यह सब सुनकर हंसने लगे और कहने लगे कि लोगों ने ऐसे ही शोर मचाया हुआ है इस बालक के पास कोई शक्ति नहीं है। इसे तो शक्तियों के बारे में पता ही नहीं है। परमानंद जी अपने मन में सोचते हैं कि इस बालक का रंग रूप भी अच्छा है, इसका यश भी बहुत फैला हुआ है और इसकी संगत भी बहुत है, अगर यह मेरा सेवक बन जाए तो मेरा यश बहुत फैल जाएगा। तो परमानंद जी अपनी तूंबी में हीरे-लाल बनाकर गुरु जी को लालच देते हुए कहते हैं कि बालक यह हीरे लेकर तुम अपनी गरीबी खत्म कर लो और मेरे शिष्य बन जाओ। तो गुरु जी मुस्कराते हैं और परमानंद जी को जीवन दास जी की कुंडी में देखने को कहते है, तो परमानंद जी जब कुंडी में देखते हैं तो उन्हें कुंडी में खंड-ब्रह्मंड, तेती कोट देवी-देवता पूरी सृष्टि दिखाई पड़ती है, तो यह सब देखकर हैरान रह जाते हैं और गुरु जी के चरणों में गिर कर माफी मांगते है कि गुरु रविदास जी मेरा सारा अहंकार टूट गया है। आप परिपूर्ण परमात्मा हो, गुरु जी परमानंद जी की निम्रता को देखकर उपदेश देते हैं कि परमानंद जी दुनियावी हीरे को छोड़कर परमात्मा के नाम रूपी हीरे की परख करो। परमानंद जी अपने हजारों, लाखों सेवकों सहित गुरु जी के शिष्य बने। गुरु जी ने उस समय यह श्लोक उच्चारण किया। हरि सो हीरा छोड़ के, करे आन की आस, ते नर दोजक जाएंगे, सति भाखे रविदास। इस साखी का उल्लेख सतिगुरु स्वामी ईशर दास जी ने श्री गुरु आदि प्रगाश ग्रंथ में किया है।

सोंह जै गुरुदेव जी।           —दास-दीप बिंजी