फैसला सही नहीं…हमारी जिंदगी हैं पहाड़ और जंगल

जंगल और पहाड़ ही अब हिमाचल के लिए परेशानी बन रहे हैं। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भी हिमाचल को भटका दिया है। पेड़ काटने पर सीधा जुर्माना, अढ़ाई मंजिला से ज्यादा मकान बनाने पर रोक, एनएच के किनारे भवन बनाने पर रोक, ये ऐसे निर्देश हैं, जो की पेशानी पर पसीना ला रहे हैं, यह समझ से परे है, जबकि यहां पर न तो जंगलों की कमी है और न ही दिल्ली की तरह आवोहवा जहरीली है। उल्टा यहां पर जंगलों का लगातार विस्तार हो रहा है, जिसकी वजह से विकास नहीं हो रहा है। अब नए आदेशों से आम आदमी भी परेशान हो गया है। प्रदेश के अग्रणी मीडिया ग्रुप ‘दिव्य हिमाचल’ ने लोगों की राय जानी तो कुछ यूं आया सामने…

एनजीटी का आदेश तर्कसंगत नहीं

आशीष शर्मा का कहना है एनजीटी का यह आदेश तर्कसंगत नहीं है। पेड़ों की संभाल हिमाचली कितनी करते हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। एनजीटी को अपने फैसले में पहाड़ी लोगों की समस्याओं और सुविधाओं को ध्यान में रखना चाहिए।

लोगों की समस्या को समझना होगा

अनीश का कहना है कि एनजीटी के ऐसे आदेश पिछले कुछ समय में ज्यादा आ रहे है। हिमाचल में लोग जंगलों पर निर्भर रहे बिना नहीं रह सकते है। अगर लोगों को उनके अधिकार नहीं मिलेंगे, तो जंगलों का संरक्षण कैसे होगा। एनजीटी को लोगों की समस्या को समझना होगा।

सख्ती से लागू किया जाना जरूरी

संटू का कहना है कि हिमाचल में दूसरे राज्यों की अपेक्षा कम काटा जाता है। एनजीटी को फैसला सही है, लेकिन जो भारी भरकम जुर्माने का निर्णय सही नहीं है। यदि नियम बनाए जाए तो उन्हें सख्ती से लागू भी किया जाना जरूरी है।

एनजीटी को पुनर्विचार करना चाहिए

बंटू का कहना है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए यह फैसला सही है, लेकिन इससे लोगों को भारी समस्या का सामना करना पड़ेगा। हिमाचल एक पहाड़ी राज्य है और यहां की भौगोलिक परिस्थियां अन्य राज्यों के मुकाबले भिन्न है। एनजीटी को इस बारे पुनर्विचार करना चाहिए।

लकड़ी की रहती ज्यादा जरूरत

विपन कपूर का कहना है कि पहाड़ी प्रदेश होने के चलते पेड़ लोगों की जरूरत है। ग्रामीण इलाकों में लकड़ी की ज्यादा जरूरत रहती है। ऐसे में जंगलों से सटे लोगों के समक्ष बड़ा संकट खड़ा होने वाला है। एनजीटी को लोगों की समस्या को समझते हुए ढील देनी चाहिए।