लवी मेले में ढोल-नगाड़े, धुड़च ने खींचे ग्राहक

आधुनिकता के दौर में पारंपरिक वस्तुओं का बाजार आज भी आकर्षण का केंद्र

रामपुर बुशहर— अंतरराष्ट्रीय लवी मेले में भले ही आधुनिकता हावी हो गई है, लेकिन एक मार्केट ऐसी भी है, जहां पर अभी भी पारंपरिक वाद्य यंत्र बेचने के लिए यहां पर लाए जाते हैं। लवी मेले में पारंपरिक वस्तुओं से सजा बाजार आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। इन वाद्य यंत्रों को खरीदने वालों की भी कमी नहीं है। लोग दूर-दूर से यहां पर इन वाद्य यंत्रों को खरीदने के लिए पहुंचते हैं। इसकी मुख्य वजह यह है कि यहां पर ये वाद्य यंत्र बने बनाए मिल जाते हैं, जबकि इन वाद्य यंत्रों को बनाने के लिए लोगों को कारीगर ढूंढने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है। इन वाद्य यंत्रों में विशेष कर ढोल-नगाडे़, करनाले, धुड़च व हरनशिंगे आदि आसानी से मिल जाते हैं। इन सामान को बेचने वाले व्यापारी मुख्यतः कुल्लू व आसपास के क्षेत्रों से आए हुए हैं। ये व्यापारी हर वर्ष यहां पर इन विभिन्न वाद्य यंत्रों को बेचने के लिए आते हैं। यहां पर इस तरह का पारंपरिक सामान बेचने के लिए आए विके्रताओं का कहना है कि यह जरूर है कि उनके सामान की डिमांड कम हो गई है, लेकिन आज भी दूर-दूर से लोग यहां पर सामान खरीदने के लिए पहुंचते हैं। खासकर मंदिर कमेटी के लोग ढोल-नगाड़े व करनाले यहां से खरीद कर ले जाते हैं। इसी मार्केट के साथ एक अन्य मार्केट पारंपरिक सामान को बेचने के लिए हर वर्ष लगाई जाती है। इसमें दराट, कसी, चूल्हा व खेत में इस्तेमाल होने वाले अन्य औजार बने बनाए मिल जाते हैं। इन सामान को खरीदने के लिए भी ग्रामीण काफी संख्या में यहां पर पहुंचते हैं। लवी मेले में हर प्रकार का व्यापारी आया हुआ है। यह मार्केट खुनुखांपा समुदाय द्वारा चलाई जा रही है। रामपुर में जब से यह मेला चल रहा है, तब से इन पारंपरिक वस्तुओं के क्रय-विक्रय का यह बाजार अपनी अलग पहचान बनाए हुए है, लेकिन आज इन मार्केट को सरकारी सहायता व मेले में उचित स्थान मिलने की दरकार है। इन मार्केट के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए मेला कमेटी को विशेष योजना सुनिश्चित करनी चाहिए।