विडंबना बनी जांच

(रूप सिंह नेगी, सोलन )

इसे विडंबना क्यों न माना जाए कि कोटखाई  इलाके की बिटिया को न तो पुलिस, न  सीबीआई, न  आक्रोश रैलियां, न कथित थाना जलाने वाली भीड़ और न ही राजनीतिक रोटियां सेंकने वालों को अभी तक न्याय दिलाने में कामयाबी मिली है। इस पूरे मामले का एक पहेली बनते जाना दुर्भाग्यपूर्ण ही माना जाएगा। ऐसा लगता है कि मामला सुलझने के बजाय कहीं न कहीं उलझता जा रहा है। बिटिया प्रकरण के खिलाफ शुरुआत में जनता में जो आक्रोश देखने को मिला था, उससे लगने लगा था कि दोषी जल्द ही सलाखों के पीछे होंगे। आज मामले की जांच जिस मोड़ पर है, वहां न्याय की फिलहाल कोई उम्मीद नजर नहीं आती। लोगों के जहन में क्या आ रहा होगा, यह तो कहा नहीं जा सकता, लेकिन ऐसा लगना स्वाभाविक ही है कि अब मामले की छानबीन का जिम्मा एनआईए को सौंपा जाना चाहिए, ताकि बिटिया को न्याय मिल सके। बहरहाल जिन लोगो ने थाने में आग लगाई थी, उस मामले में सुना जाता था कि एफआईआर दर्ज होगी या हो गई है, लेकिन आगे मामला कहां पहुंचा, इसके बारे में कहीं कोई खबर नहीं है। आखिर कहां गए वे लोग जो बिटिया को न्याय दिलाने के नाम पर रैलियां, चक्का जाम, धरना प्रदर्शन कर राजनीतिक रोटियां सेंकते दिखाई देते थे?