श्री विश्वकर्मा पुराण

हे शौनक! तुम्हारे सबके मन की जो इच्छा थी, वह मैंने तुमको विस्तार से बताई है। परम कृपालु विश्वकर्मा की आज्ञा से उत्पन्न हुए वह सब मैंने बताए। ये प्रभु अपनी इच्छा शक्ति से समस्त विश्व की इस प्रकार उत्पत्ति करते हैं। यथायोग्य समय तक उसको स्थिर रखकर आखिर में उसको अपने में ही विलय करते हैं…

जिस पृथ्वी का वर्णन भी मैंने तुमको पहले बताया है। हे ऋषियो! अब तुमने सारी पृथ्वी के नीचे आए हुए सब लोकों का वर्णन सुना, इस पृथ्वी के नीचे अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल तथा आखिरी पाताल आया हुआ है। इस प्रकार सात पाताल आए हुए हैं। इन पातालों में निवास करने वाले ऐसे दैत्य दानव तथा नाग स्वर्ग के देवताओं के बजाय भी अनेक गुना उत्तम सुख वैभव का उपयोग करने वाले होते हैं। ये लोग अनेक प्रकार की मायाओं के जानने वाले हैं तथा हमेशा आनंदमग्न रहने वाले होते हैं। मय दानव तथा पुत्रवल नाम के दानव की अनेक मायाओं के कारण इन लोगों की अनेक प्रकार की अनबनी रचनाएं की गई हैं तथा वहां अनेक मायाओं से वह लोग हर प्रकार के उत्तम सुख भोगते हैं, इन पाताल के अंदर सबसे पहले अतल नाम से पाताल में मय दानव का पुत्र असंख्य दानवों के साथ निवास करता है, उनके नीचे वितल नाम का पाताल है तथा वहां भगवान हाटकेश्वर की मूर्ति है तथा ये भगवान वहां रहकर अपने भक्तों को अनेक उत्तम सुख देते हैं, वितल के नीचे सुतल है, यहां अनेक प्रकार की समृद्धियों के अधिपति ऐसे बलि राजा निवास करते हैं तथा भगवान चोमासे के चार महीना बलि राजा के घर रहते हैं, इस सुतल के नीचे तलातल नाम के पाताल में त्रिपुर का अधिपति मयदानव निवास करता है, महातल नाम के पाताल में अनेक प्रकार के छोटे-बड़े तथा एक मुंह तथा अनेक मुख वाले सर्प तथा नाग निवास करते हैं। इनके नीचे समतल नाम का पाताल है, इसमें देवताओं के साथ जिनकी वैर वृत्ति है, ऐसे दैत्य तथा दानव वहां निवास करते हैं तथा इन छह पातालों के नीचे पाताल है, वहां उत्तम प्रकार के श्रेष्ठ नाग राजाओं का कुल रहता है, इस नागलोक की बस्ती के समान आखिरी पाताल के नीचे एक सौ बीस हजार कोस दूर प्रलय काल की मूर्ति के समान तथा भगवान की तोगुणरूपी भगवान शेषनारायण निवास करते हैं। हे शौनक! तुम्हारे सबके मन की जो इच्छा थी, वह मैंने तुमको विस्तार से बताई है। परम कृपालु विश्वकर्मा की आज्ञा से उत्पन्न हुए वह सब मैंने बताया। ये प्रभु अपनी इच्छा शक्ति से समस्त विश्व की इस प्रकार उत्पत्ति करते हैं। यथायोग्य समय तक उसको स्थिर रखकर आखिर में उसको अपने में ही विलय करते हैं। परमात्मा की ये अचूक लीलाओं का पार कोई नहीं पा सकता, ऊपर बताए प्रमाण के पाताल, पृथ्वी तथा ऊपर के लोक हैं, उन सब में श्री विराट अलग-अलग स्वरूप से विराजमान रहते हैं तथा उसी स्वरूप को योग्य रीति से भजते ऐसे उस स्थान के जीवात्माओं को उनके अंत के बाद योग्य लोक के विषय फिर जन्म देते हैं तथा निष्काम भक्ति के कारण प्रभु उनको अपना परम पद देते हैं इस प्रमाण की यह घटना मान निरंतर चला करती है।