साढ़ेसाती को शमित करती है शनि अमावस्या

किसी माह के जिस शनिवार को अमावस्या पड़ती है, उसी दिन शनि अमावस्या मनाई जाती है। यह पितृकार्येषु अमावस्या और शनिचरी अमावस्या के रूप में भी जानी जाती है। कालसर्प योग, ढैया तथा साढ़ेसाती सहित शनि संबंधी अनेक बाधाओं से मुक्ति पाने के लिए शनि अमावस्या एक दुर्लभ दिन व महत्त्वपूर्ण समय होता है…

इसे समय का चक्र कहें या जीवन में बढ़ती दुश्वारियों की संख्या, पिछले दो दशकों में शनिदेव की उपासना यकायक बढ़ गई है। शनि के कठोर दंड-विधान से सामान्य व्यक्ति आतंकित सा रहता है। उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए विविध तरह के प्रयोगों का सहारा लिया जाता है। ऐसे में शनिदेव की सम्यक उपासना कैसे की जाए, यह प्रश्न महत्त्वपूर्ण हो उठता है। शास्त्र कहते हैं कि शनि अमावस्या के दिन भगवान सूर्य देव के पुत्र शनि देव की आराधना करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। किसी माह के जिस शनिवार को अमावस्या पड़ती है, उसी दिन शनि अमावस्या मनाई जाती है। यह पितृकार्येषु अमावस्या और शनिचरी अमावस्या के रूप में भी जानी जाती है। कालसर्प योग, ढैया तथा साढ़ेसाती सहित शनि संबंधी अनेक बाधाओं से मुक्ति पाने के लिए शनि अमावस्या एक दुर्लभ दिन व महत्त्वपूर्ण समय होता है। इस दिन व्रत, उपवास और दान आदि करने का बड़ा पुण्य मिलता है।

भाग्य विधाता शनि देव

शनि देव का नाम सुनकर लोग सहम से जाते हैं, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है। यह सही है कि शनि देव की गिनती अशुभ ग्रहों में होती है, लेकिन शनि देव मनुष्यों के कर्मों के अनुसार ही फल देते हैं। भगवान शनि देव भाग्य विधाता हैं। यदि निश्छल भाव से शनि देव का नाम लिया जाए तो व्यक्ति के सभी कष्ट और दुख दूर हो जाते हैं। शनि देव तो इस चराचर जगत में कर्मफल दाता हैं, जो व्यक्ति के कर्म के आधार पर उसके भाग्य का फैसला करते हैं। इस दिन शनि देव का पूजन सफलता प्राप्त करने एवं दुष्परिणामों से छुटकारा पाने हेतु बहुत उत्तम होता है। इस दिन शनि देव का पूजन सभी मनोकामनाएं पूरी करता है। शनिचरी अमावस्या पर शनि देव का विधिवत पूजन कर सभी लोग पर्याप्त लाभ उठा सकते हैं। शनि देव क्रूर नहीं, अपितु कल्याणकारी हैं। इस दिन विशेष अनुष्ठान द्वारा पितृदोष और कालसर्प दोषों से मुक्ति पाई जा सकती है। इसके अतिरिक्त शनि का पूजन और तैलाभिषेक कर शनि की साढ़ेसाती, ढैया और महादशा जनित संकट और आपदाओं से भी मुक्ति पाई जा सकती है। उन्हें ग्रहों के न्यायाधीश मंडल का प्रधान न्यायाधीश कहा जाता है। शनि देव के निर्णय के अनुसार ही सभी ग्रह मनुष्य को शुभ और अशुभ फल प्रदान करते हैं। न्यायाधीश होने के नाते शनि देव किसी को भी अपनी झोली से कुछ नहीं देते। वह तो केवल शुभ-अशुभ कर्मों के आधार पर ही मनुष्य को समय-समय पर वैसा ही फल देते हैं, जैसा उन्होंने कर्म किया होता है।

पितृदोष से मुक्ति

हिंदू धर्म में अमावस्या का विशेष महत्त्व है और अमावस्या यदि शनिवार के दिन पड़े तो इसका महत्त्व और भी अधिक बढ़ जाता है। शनि देव को अमावस्या अधिक प्रिय है। शनिचरी अमावस्या के दिन पितरों का श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। जिन व्यक्तियों की कुंडली में पितृदोष है, उन्हें इस दिन दान इत्यादि विशेष कर्म करने चाहिए। यदि पितरों का प्रकोप न हो तो भी इस दिन किया गया श्राद्ध आने वाले समय में मनुष्य को हर क्षेत्र में सफलता प्रदान करता है।

पूजन विधि

शनि अमावस्या के दिन पवित्र नदी के जल से या नदी में स्नान कर शनि देव का आह्वान और दर्शन करना चाहिए। शनि देव को नीले रंग के पुष्प, बिल्व पत्र व अक्षत अर्पण करें। भगवान शनि देव को प्रसन्न करने हेतु शनि मंत्र ॐ शं शनैश्चराय नमः अथवा ॐ प्रां प्रीं प्रौं शं शनैश्चराय नमः का जाप करना चाहिए। इस दिन सरसों के तेल, उड़द की दाल, काले तिल, कुलथी, गुड़ और शनि संबंधी समस्त पूजन सामग्री को शनि देव पर अर्पित करना चाहिए तथा शनि देव का तैलाभिषेक करना चाहिए। शनि अमावस्या के दिन शनि चालीसा, हनुमान चालीसा या बजरंग बाण का पाठ अवश्य करना चाहिए।

महत्त्व

साढ़ेसाती एवं ढैया के दौरान शनि देव व्यक्ति को अपना शुभाशुभ फल प्रदान करते हैं। शनि अमावस्या के दिन महाराज दशरथ द्वारा लिखे गए शनि स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। जो लोग इस दिन यात्रा में जा रहे हैं और उनके पास समय की कमी है, वे सफर में शनि नवाक्षरी मंत्र अथवा कोणस्थः पिंगलो ब रुःकृष्णौ रौद्रोंतको यमः, सौरीः शनैश्चरो मंदपिप्पलादेन संस्तुतः का जाप करें।

कैसे करें शनिदेव को प्रसन्न

शनि देव के भक्तों को शनि अमावस्या के दिन शनि मंदिर में जाकर शनि देव को नीले लाजवंती का फूल, तिल, तेल, गुड़ अर्पण करना चाहिए। शनि देव के नाम से दीपोत्सर्ग करना चाहिए। शनि अमावस्या के दिन या रात्रि में शनि चालीसा का पाठ, शनि मंत्रों का जाप एवं हनुमान चालीसा का पाठ करें। इस दिन पीपल के पेड़ पर सात प्रकार का अनाज चढ़ाएं और सरसों के तेल का दीपक जलाएं। तिल से बने पकवान, उड़द की दाल से बने पकवान गरीबों को दान करें। उड़द दाल की खिचड़ी दरिद्र नारायण को दान करें। अमावस्या की रात्रि में आठ बादाम और आठ काजल की डिब्बी काले वस्त्र में बांधकर संदूक में रखें। शनि यंत्र, शनि लॉकेट, काले घोड़े की नाल का छल्ला धारण करें। इस दिन नीलम या कटैला रत्न धारण करें, जो फल प्रदान करता है। काले रंग का श्वान (कुत्ता) इस दिन से पालें और उसकी भली प्रकार से सेवा करना शुरू करें। शनिवार के दिन शनि देव की पूजा के पश्चात् उनसे अपने अपराधों एवं जाने-अनजाने जो भी आपसे पाप कर्म हुआ हो, उसके लिए क्षमा याचना करनी चाहिए। शनि महाराज की पूजा के पश्चात् राहू और केतु की पूजा भी करनी चाहिए। इस दिन पीपल में जल देना चाहिए और उसमें सूत्र बांधकर सात बार परिक्रमा करनी चाहिए। शनिवार के दिन भक्तों को शनि महाराज के नाम से व्रत रखना चाहिए। संध्या काल में शनि मंदिर में जाकर दीप भेंट करना चाहिए और उड़द दाल में खिचड़ी बनाकर शनि महाराज को भोग लगाना चाहिए। शनिदेव का आशीर्वाद लेने के पश्चात् स्वयं भी प्रसाद स्वरूप खिचड़ी खानी चाहिए। सूर्य देव के पुत्र शनि देव की प्रसन्नता हेतु इस दिन काली चींटियों को गुड़ एवं आटा देना चाहिए। इस दिन काले रंग का वस्त्र धारण करना चाहिए। श्रावण मास में शनिवार का व्रत प्रारंभ करना अति मंगलकारी माना जाता है। शनि अमावस्या के दिन काले घोड़े की नाल से बना छल्ला मध्यमा में धारण करें।