स्वायत्तता का राग

(डा. शिबम कृष्ण रैणा, अलवर )

चिदंबरम जब गृह मंत्री थे, तब तो ऐसा कोई बयान उन्होंने नहीं दिया कि कश्मीर की स्वायत्तता के प्रश्न पर पुनः विचार होना चाहिए। अब अचानक क्या बात हो गई? आखिर स्वायत्तता भी किस बात की? जिहादी और अलगाववादी जिस आजादी की मांग रहे हैं, क्या उनके दबाव में आकर उनकी बचकानी जिद को पूरा किया जाए? सूबे के बड़े नेता फारूक अब्दुल्ला जब सत्ता में थे, तो उनका बयान था-कश्मीर भारत का अटूट अंग है। इन अलगाववादी सिरफिरों को झेलम में डूब मरना चाहिए। अब गद्दी छिन गई तो लगे वह भी स्वायत्तता का राग अलापने! हैरानी यह कि चिदंबरम ऐसे लोगों का साथ क्यों देने लगे?