खुला चाबहार, पाक दरकिनार

भारत-ईरान-अफगानिस्तान का संयुक्त प्रयास, ईरान के राष्ट्रपति ने किया पहले फेज का उद्घाटन

तेहरान— ईरान के दक्षिण पूर्वी सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में स्थित चाबहार बंदरगाह के प्रथम चरण के उद्घाटन के साथ भारत ने पड़ोसी पाकिस्तान को दरकिनार करके ईरान, अफगानिस्तान और मध्य एशिया के लिए व्यापार के मार्ग को खोलने में कामयाबी हासिल कर ली। ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने केंद्रीय जहाजरानी राज्य मंत्री पोन राधाकृष्णन और अफगानिस्तान के वाणिज्य एवं व्यापार मंत्री हुमायूं रासव की मौजूदगी में चाबहार बंदरगाह परियोजना के पहले चरण को शाहिद बेहेश्टी का उद्घाटन किया। भारत से अफगानिस्तान के लिए 15 हजार टन गेहूं की तीसरी खेप लेकर आए भारतीय पोत ने शनिवार को ही चाबहार के पास पहुंचकर लंगर डाल दिया था, जो रविवार को बंदरगाह पहुंचा। इस मौके पर ईरान के परिवहन मंत्री अब्बास अखुंदी सहित तीनों देशों के उच्च स्तरीय प्रतिनिधियों के अलावा क्षेत्र के अन्य देशों के मंत्री, राजदूत एवं वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे। श्री राधाकृष्णन ने चाबहार बंदरगाह विकास पर दूसरी भारत, ईरान, अफगानिस्तान मंत्रिस्तरीय बैठक में भी हिस्सा लिया। पहली बैठक सितंबर 2016 में नई दिल्ली में हुई थी। इस बंदरगाह का निर्माण भारत के सहयोग से किया गया है, जिसे बाद में भारत, ईरान एवं रूस की एक महत्त्वाकांक्षी साझी परियोजना अंतरराष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारे (आईएनएसटीसी) से जोड़ा जाएगा। इसे पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में चीन के निवेश से निर्माणाधीन ग्वादर बंदरगाह एवं चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) की चुनौती से मुकाबले के लिए भी अहम् माना जा रहा है। पाकिस्तान ने ग्वादर बंदरगाह का संचालन चीन को सौंप दिया है, जबकि ईरान ने चाबहार बंदरगाह का प्रबंध संचालन भारत को सौंपने का प्रस्ताव किया है। भारत और ईरान दोनों का मानना है कि चाबहार परियोजना से न केवल दोनों देशों, बल्कि अफगानिस्तान एवं समूचे मध्य एशियाई क्षेत्र को बड़े एवं दीर्घकालिक लाभ होंगे। चाबहार ईरान का इकलौता बंदरगाह है, जो गहरे समुद्र में स्थित है और सीधे अरब सागर एवं हिंद महासागर से जुड़ा है। इस बंदरगाह को दो छोटे बंदरगाहों -शाहिद कलंतरी और शाहिद बेहेश्ती को मिलाकर विकसित किया गया है। दोनों में पांच-पांच बर्थ हैं। चाबहार बंदरगाह से अफगानिस्तान तक की दूरी कराची बंदरगाह से वहां की दूरी की तुलना में करीब 800 किलोमीटर कम है। भारत ने ईरान अफगानिस्तान सीमा पर जरांज से लेकर डेलारम तक सड़क भी तैयार कर दी है। भारत, ईरान एवं अफगानिस्तान त्रिपक्षीय करार और योजना के अनुसार चाबहार हाजीगाक कॉरीडोर में 21 अरब डालर का निवेश किया जाएगा, जिसमें भारत चाबहार बंदरगाह के विकास में 8.5 करोड़ डालर का निवेश करेगा और 15 करोड़ डालर ईरान को आसान ऋण के रूप में देगा। भारत एवं ईरान के बीच एक करार के मुताबिक चाबहार विशेष आर्थिक प्रक्षेत्र में भारतीय औद्योगिक इकाइयां आठ अरब डालर का निवेश करेंगी। मध्य अफगानिस्तान में हाजीगाक लौह एवं इस्पात खनन परियोजना में 11 अरब डालर के ठेके सात भारतीय कंपनियों को दिए जाएंगे और भारत दो अरब डालर की लागत से चाबहार से हाजीगाक तक रेलवे लाइन बिछाएगा, जो 7200 किलोमीटर लंबे आईएनएसटीसी से जुड़ी होगी और अफगानिस्तान को रूस, यूरोप एवं तुर्की से जोड़ेगी। इसी प्रकार से हेरात से मजारे शरीफ रेलवे परियोजना से तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान और किर्गीजस्तान से जुड़ी होगी। इस प्रकार से चाबहार बंदरगाह ताजिकिस्तान में भारत के फारखोर वायुसैनिक अड्डे तक भी उसकी पहुंच हो सकेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी और ईरानी राष्ट्रपति हसन रुहानी ने गत वर्ष चाबहार बंदरगाह होकर अफगानिस्तान को माल परिवहन को लेकर एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। भारत ने अफगानिस्तान को 11 लाख टन गेहूं अनुदान के रूप में देने की घोषणा की थी। उसी क्रम में यह गेहूं की तीसरी खेप है। भारत से इस खाद्यान्न की अगले कुछ माह में ऐसी छह खेपें भेजी जाएंगी। भारत से गेहूं की पहली खेप 29 अक्तूबर को रवाना की गई थी।

भारत के लिए आसान होगा कारोबार

चाबहार बंदरगाह के जरिए भारत अब बिना पाकिस्तान गए ही अफगानिस्तान और उससे आगे रूस, यूरोप से जुड़ सकेगा। अभी तक भारत को पाकिस्तान होकर अफगानिस्तान जाना पड़ता था। इस बंदरगाह के जरिए भारत, अफगानिस्तान और ईरान के बीच कारोबार में बढ़ोतरी होने की उम्मीद है।

चीन के जवाब में नॉर्थ-साउथ कोरिडोर का काम तेज

तेहरान — ईरान के चाबहार पोर्ट से भारत तक 7200 किलोमीटर लंबा इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ कोरिडोर (आईएनएसटीसी) बनाया जा रहा है। चीन की वन बेल्ट वन रोड (ओबीओआर) पालिसी के जवाब में भारत ने इसका काम तेज किया है। इससे भारत की सेंट्रल एशियाई देशों (कजाकिस्तान, किर्गीजस्तान, तुर्कमेनिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान), रूस और यूरोप तक पहुंच हो जाएगी।