चाबहार बंदरगाह का पहला चरण

समसामयिकी

ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने देश के दक्षिण पूर्वी तट पर स्थित रणनीतिक महत्त्व के चाबहार बंदरगाह पर नव निर्मित विस्तार क्षेत्र का उद्घाटन किया। ओमान की खाड़ी से लगे चाबहार बंदरगाह की मदद से भारत अब पाकिस्तान का रास्ता बचा कर ईरान और अफगानिस्तान के साथ एक आसान और नया व्यापारिक मार्ग अपना सकता है। चाबहार बंदरगाह के इस पहले चरण को शाहिद बेहेश्ती बंदरगाह के तौर पर भी जाना जाता है। ईरान के सरकारी टीवी ने कहा कि उद्घाटन समारोह में भारत, कतर, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और अन्य देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए। भारत को ईरान और अफगानिस्तान से सीधे जोड़ने वाला चाबहार बंदरगाह खुल गया। ईरान के राष्ट्र्रपति हसन रूहानी ने इस रणनीतिक ट्रांजिट रूट के पहले फेज का उद्घाटन  किया। इस ऐतिहासिक मौके पर भारत की ओर से कैबिनेट मंत्री पी राधाकृष्णन मौजूद रहे। पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट के बरक्स चाबहार पोर्ट भारत के लिए बेहद अहम है। इस पोर्ट को सामरिक नजरिये से पाकिस्तान और चीन के लिए भारत का करारा जवाब माना जा रहा है। इस अति महत्त्वपूर्ण रूट के उद्घाटन से एक दिन पहले ही विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने ईरान के विदेश मंत्री जावेद जरीफ के साथ राजधानी तेहरान में बैठक कर चाबहार प्रोजेक्ट से जुड़े कई मुद्दों पर बातचीत की थी। अफगानिस्तान की तोलो न्यूज के मुताबिक रविवार सुबह ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने बंदरगाह का उद्घाटन  किया। ईरान के राष्ट्रपति ने चाबहार पोर्ट के पहले चरण का उद्घाटन किया। इस दौरान भारतीय प्रतिनिधि भी वहां मौजूद रहे। इस बंदरगाह के जरिए भारत-ईरान-अफगानिस्तान के बीच नए रणनीतिक ट्रांजिट रूट की शुरुआत हो रही है। चाबहार बंदरगाह का सीधा फायदा भारत के कारोबारियों को होगा। भारतीय कारोबारी अपना सामान बिना किसी रोक-टोक के सीधे ईरान तक भेज पाएंगे। यहां से भारतीय सामान पहुंचने के बाद इसे अफगानिस्तान और मध्य एशिया के कई देशों में पहुंचाया जा सकेगा। अब तक इन देशों में जाने के लिए पाकिस्तान रास्ता रोक रहा था। चाबहार बंदरगाह शुरू होने से भारतीय सामानों के एक्सपोर्ट खर्च काफी कम हो जाएगा। एक अनुमान के मुताबिक एक तिहाई कम हो जाएगा। साथ ही समय भी काफी बचत होगी। चाबहार बंदरगाह ने ईरान को हिन्द महासागर के और करीब ला दिया है। यह पाकिस्तान की सीमा से मात्र 80 किमी की दूरी पर है। ग्वादर पोर्ट को भी यह चुनौती देता है, जिसे चीनी निवेश के दम पर पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में बनाया जा रहा है। आशंका जताई जा रही है कि ग्वादर पोर्ट का इस्तेमाल भविष्य में चीन अपने नौसैनिक जहाजों के लिए कर सकता है।