जरा याद करो कुर्बानी

(प्रताप सिंह पटियाल, बिलासपुर)

यदि राष्ट्रभक्ति की बात की जाए, तो पहला नाम भारतीय सैनिकों का ही आना चाहिए, जिन्होंने देश की रक्षा के लिए जान न्योछावर करके बहादुरी की मिसालें पेश की हैं। इनमें से एक वीरगाथा 16 दिसंबर, 1971 को भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना के हमले का मुंहतोड़ जवाब देकर रच डाली थी, जिसमें पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों को भारतीय सेना के सामने समर्पण करना पड़ा था। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद शायद यह सबसे बड़ा आत्मसमर्पण था। बांग्लादेश में पाक सेना की संख्या भारतीय सेना से ही अधिक थी, मगर भारतीय सेना के कड़े प्रशिक्षण और कुशल नेतृत्व के कारण बाजी पलट गई। सीमित संसाधानों के बावजूद दुश्मन पर विजय प्राप्त करने की अद्भुत क्षमता सिर्फ भारतीय सेना की ही रही है। यही कारण है कि आज भारतीय सेना की गिनती विश्व की सर्वोत्तम सेनाओं में होती है। इसलिए इस गौरवपूर्व जीत को पूरा हिंदोस्तान 16 दिसंबर के दिन विजय दिवस के रूप में मनाता है। यदि इस युद्ध में सैनिकों की शहादत की बात की जाए तो 3850 से ज्यादा भारतीय सैनिक शहीद हुए थे, जिनमें 190 से अधिक इस देवभूमि के सैनिकों ने देश की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर करके इस युद्ध की जीत में अपनी अहम भूमिका अदा की थी। यदि हम इस दिन को राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाते हैं और देश के शहीदों को याद करते हैं, तो हम उन शहीदों के परिवारों और देश की सरहदों पर सेवारत सैनिकों के साथ खड़ा होने का एहसास कर सकते हैं, ताकि उनके परिवार इस सम्मान को महसूस कर सकें।