(सुशील भारती, नित्थर, कुल्लू)
रातें तड़प-तड़प कटीं, थे दिन को बेचैन,
बोतल-बकरे खरीदे, रखी अराजी रहन।
परिंदों की तो है जाति, तीतर आध बटेर,
उसी ओर घूरते सब, हो जाता जो ढेर।
धड़के दिल चुनावों में, किसका होगा ताज,
इश्क में धड़के दिल कहां, जैसे धड़के आज।।
राजनीति दरबार में, यादा रंगे सियार,
माया के ही लोभ में, है यह भूत सवार।
सांप डसे संपोलों को, इसमें किसका दोष,
मतगणना नजदीक है, दिल को लेना थाम,
रक्त परिसंचरण खूब हो, है यह दुआ सलाम।