दांपत्य में दरार

(डा. शिल्पा जैन सुराणा, वारंगल)

विवाह भारत में सिर्फ परंपरा नहीं, बल्कि सात जन्मों का बंधन है। चिंता की बात यह कि यह ढांचा धीरे-धीरे चरमरा रहा है। यहां विवाह के पहले वर्ष के भीतर होने वाले तलाकों में वृद्धि हुई है। हालांकि इसकी दर अमरीका और यूरोप के देशों के मुकाबले कम है। तलाक के आंकड़ों से आगे जाकर यह पूछा जाए कि कितने प्रतिशत दंपति आपसी संबंध को दोनों के लिए संतोषजनक मानते हैं, तो स्थिति और भी भयावह होगी। बहुत से वैवाहिक संबंधों में चाहे तलाक को टाल दिया जाए, पर ऐसी परेशानी बनी रहती है, जो न पति-पत्नी के लिए उचित है, न बच्चों के लिए। इस समस्या के निदान के तौर पर लिंग आधारित समानता स्थापित करना जरूरी है। यह भी जरूरी है कि बदलाव प्रेम और सहृदयता के साथ आए। इसके लिए काफी प्रयास करने की जरूरत है। ये प्रयास व्यक्तिगत स्तर पर जरूरी हैं, तो व्यापक सामाजिक स्तर पर भी ऐसे परामर्श और सामुदायिक कार्य जरूरी हैं, जो इस बदलाव में मददगार हों।