नई सरकार से अपेक्षाओं का अंबार

विजय शर्मा

लेखक,दरब्यार, हमीरपुर हैं

पिछले तीन दशकों से हिमाचल में यह परंपरा सी बन गई है कि कभी एक पार्टी की सरकार रिपीट नहीं हुई है। अब देखते हैं क्या इस बार यह परंपरा टूटेगी या फिर अदला-बदली ही होगी। चाहे कुछ भी हो, सत्ता की कुर्सी पर काबिज होने वाली पार्टी के लिए चुनौतियां कम नहीं होंगी। कांटों की सेज पर नींद कम ही आती है और बेचैनी ज्यादा होती है…

हिमाचल में नई सरकार बनने वाली है, लेकिन आज प्रदेश जिस चौराहे पर खड़ा है वहां नई सरकार के लिए हजारों चुनौतियां मुंह बाय खड़ी हैं। प्रदेश के 10 लाख से ज्यादा युवा बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं। नई सरकार को अधिक से अधिक युवाओं को स्वरोजगार की ओर प्रेरित करने और सुलभ कर्ज की व्यवस्था के लिए बैंकों और सरकार को मिलकर काम करना होगा। सिर्फ रोजगार मेले आयोजित करने मात्र से बेरोजगारी का अंत नहीं होगा। बेरोजगारी के समाधान के लिए स्वरोजगार की ठोस योजनाएं बनाकर उन्हें धरातल पर उतारने के लिए विशेष प्रोत्साहन कैंप आयोजित करने की आवश्यकता है। प्रदेश में स्थापित कारखानों में हिमाचली युवकों की अनिवार्य भर्ती और युवाओं का ऑनलाइन भुगतान सुनिश्चित करने से काफी हद तक बेरोजगारी से निपटने में मदद मिलेगी। सरकारी एवं निजी स्तर पर रोजगार के अवसर पैदा करने के सघन प्रयास करने की आवश्यकता है। प्रदेश 45 हजार करोड़ से अधिक के कर्ज में दबा है और सरकार को हर तीसरे माह पिछले कर्ज का ब्याज चुकाने तथा कर्मचारियों का वेतन-भत्ते देने के नए कर्ज की दरकार हो रही है।

आज हर हिमाचली पर पैदा होते ही 60 हजार का कर्ज चढ़ जाता है। प्रदेश को कर्ज के जाल से मुक्त करने के लिए लंबी अवधि की योजना पर काम करते हुए सरकारी खर्चों में हर हाल में कटौती करने की जरूरत है और राजस्व प्राप्ति के नए रास्ते खोजने की आवश्यकता है। कैग पहले ही चेतावनी जारी कर चुका है कि यदि प्रदेश सरकार ने अपनी राजस्व प्राप्तियों में इजाफा नहीं किया और अपना खर्च नहीं घटाया, तो प्रदेश आर्थिक रूप से बीमारू प्रदेशों की श्रेणी में शामिल हो जाएगा। प्रदेश को कर्जमुक्त करने के लिए केंद्रीय सहायता की जरूरत है और नई सरकार को इसके लिए प्रयास करना होगा। इसके अलावा प्रदेश को कर्ज के दलदल से बाहर निकालने के लिए दूसरे प्रदेशों से संसाधनों के बंटवारे का निपटारा करके अपने हिस्से की राशि की वसूली सुनिश्चित करने के प्रयास तेज करने होंगे। प्रदेश में कानून व्यवस्था की खस्ता हालत किसी से छिपी नहीं है। पिछले 5 वर्षों में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 20 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई है।

नशे का कारोबार बढ़ा है और एक शांतिप्रिय छवि वाला प्रदेश अशांति के दलदल में डुबकी लगा रहा है। कृषि उत्पादन और पर्यटकों की संख्या में जरूर वृद्धि हुई है, लेकिन इन दोनों क्षेत्रों में अभी आपार संभावनाएं हैं और प्रोत्साहन योजनाओं के बल पर स्वरोजगार को बढ़ाया जा सकता है। प्रदेश में पर्यटकों की संख्या में तो वृद्धि हुई है, लेकिन ढांचागत सुविधाओं और संसाधनों की भारी कमी खलती है और पर्यटकों की भारी भीड़ मुख्यतः शिमला, कुल्लू-मनाली और धर्मशाला तक सिमटती जा रही है, जिसके कारण इन शहरों में ट्रैपिक का दबाव और पार्किंग जैसी मूलभूत सुविधाओं की कमी कचोटती है। पर्यटन की दृष्टि से नए स्थानों को चिन्हित करके उनका विकास तथा विशेष प्रोत्साहन योजनाएं चलाने से पर्यटन उद्योग के रूप में विकसित हो सकेगा। रेल और हवाई सेवाएं सीमित होने के कारण सड़कों के विकास और रखरखाव पर अधिक बल देना होगा। रेल लाइनों के विस्तार के साथ ही नए पर्यटन स्थलों को विकसित करने की आवश्यकता है। पिछली सरकार ने हिमाचल दर्शन के लिए हेलिकाप्टर सेवा शुरू करने की घोषणा की थी। कई हेलिपैडों का निर्माण भी हुआ, लेकिन योजना आगे नहीं बढ़ सकी। नई सरकार को पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के आधार पर इसे आगे बढ़ाना चाहिए। पर्यटन विकास की दृष्टि से धार्मिक पर्यटन स्थलों के विकास पर ध्यान देने की जरूरत है। अधिकतर बड़े धार्मिक स्थलों का सरकार द्वारा अधिग्रहण करने के बावजूद उनका विस्तार नहीं हो पाया है। धार्मिक स्थलों में अव्यवस्थाए, गंदगी और भिखारियों का बोलवाला है। प्रदेश में उच्च शिक्षा का बड़ा बाजार विकसित हो चुका है। 17 निजी विश्वविद्यालय अपनी जड़ें जमा चुके हैं। उन्हें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से मान्यता भी मिल चुकी है, लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता पर प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है। क्या इन विश्वविद्यालयों में ढांचागत सुविधाओं के साथ-.साथ योग्यता प्राप्त शिक्षक हैं या सिर्फ निरीक्षण के दौरान अनुबंध के आधार पर नियुक्त कर लिया जाता है और कई शिक्षक एक साथ कई विश्वविद्यालयों में अनुबंधित तो नहीं हं। इसके निरीक्षण की स्थायी व्यवस्था भी सरकार को करनी होगी। पौंग डैम विस्थापितों की समस्याओं का अब तक निदान नहीं हो पाया है। गोबिंदसागर झील पर पुल बनाकर बिलासपुर से जोड़ने की मांग और आश्वासन अब तक किसी सरकार ने पूरे नहीं किए हैं। स्वास्थ्य सेवाओं की खराब हालत किसी से छिपी नहीं है। छोटी-छोटी बीमारियों के लिए लोगों को ब्लॉक स्तरीय अस्पतालों में अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता है।

 पिछले तीन दशकों से हिमाचल में यह परंपरा सी बन गई है कि कभी एक पार्टी की सरकार रिपीट नहीं हुई है। अब देखते हैं क्या इस बार यह परंपरा टूटेगी या फिर अदला-बदली ही होगी। चाहे कुछ भी हो, सत्ता की कुर्सी पर काबिज होने वाली पार्टी के लिए चुनौतियां कम नहीं होंगी। कांटों की सेज पर नींद कम ही आती है और बेचैनी ज्यादा होती है। नई सरकार को हमारी तरफ से शुभकामनाएं।