पहाड़ों में महाभारत काल से प्रचलित है सिद्ध पूजा

पहाड़ों में सिद्ध पूजा महाभारत काल से भी पहले से प्रचलित है। पुरातन काल में तपस्या द्वारा अद्भुत शक्तियां अर्जित करके लोक कल्याण के कार्यों में उनका प्रयोग करने वाले व्यक्ति को शायद सिद्ध कह कर पुकारा जाता था…

हिमाचल में धर्म और पूजा पद्धति

शक्ति पूजा : देवी पूजा का पहाड़ों में नहीं बल्कि सारे भारतवर्ष में प्रचलन हैं। देवी या शक्ति ही सृष्टि के मूल में है। सती या पार्वती शिव की सारी शक्ति का स्रोत है। शक्ति या देवी की प्रेरणा के बिना भारतीय देव या महादेव शून्य है। देवी, काली, तारा, चिंतापूर्णी, त्रिपुरासुंदरी, त्रिपुरभैरवी, भुवनेश्वरी, कमला, बगला एवं जगदंबा आदि सैकड़ों नामों से पुकारी जाती है। वह सभी देवताओं से ऊपर हैं। विपत्ति आने पर इंद्र आदि देवता भी रक्षा हेतु जगदंबा के पास भागते हैं। सारे भारत को एक सूत्र में बांधने वाली देवी सती ही है। जब उसने अपने पिता दक्षराज के यज्ञ में अपमान के कारण अपने प्राण दे दिए तो शिवजी ने उसके मृत शरीर को उठाकर तांडव शुरू कर दिया। विष्णु ने सुदर्शन चक्र से प्रलय से बचाने के लिए उसके शरीर के टुकड़े कर दिए जो 51 स्थानों पर गिरे। उसका बामहस्त मानसरोवर में, जिह्वा ज्वालाजी में, आंखें नयनादेवी में और महामुद्रा (योनि) कामरूप (आसाम कामाख्या मंदिर) में गिरी। अन्य अंग अन्य स्थानों पर पड़े। वहीं मंदिर बनाकर उनकी तीर्थ स्थानों के रूप में पूजा की जाती है। सती के शरीर में सारा भारत समा गया है। हिमाचलीय क्षेत्रों में असंख्य ही देव मंदिर विद्यमान हैं। देवी को प्रसन्न करने के लिए मिष्ठान से लेकर पशुओं की बलि तक दी जाती है। बीसवीं शताब्दी के शुरू तक देवी को प्रसन्न करने के लिए मनुष्य तक की बलि के प्रमाण प्राप्त होते हैं। रामपुर बुशहर में भुंडा की प्रथा देवी को मनुष्य की बलि दिए जाने से संबंधित थी। बकरे की बलि चढ़ाने का रिवाज आम है। कहीं-कहीं भैंसे की बलि अब तक भी दी जाती है। भैंसे को महिषासुर का ही दूसरा रूप माना जाता है। नवरात्र के दिनों में कन्याओं को भोजन खिलाने और लाल वस्त्र दान करने से देवी प्रसन्न होती हैं। नवरात्र के दिनों में देवी स्थानों पर मेले लगते हैं, क्योंकि उन दिनों देवी के दर्शन करने को महापुण्य माना जाता है। हिमाचल प्रदेश में चिंतपूर्णी आदि के सारे देश में प्रसिद्ध मंदिर हैं। इसके अतिरिक्त सिरमौर क्षेत्र व ऊपरी तथा मध्यभाग के सिंधल देवी, बालासुंदरी, नगरकोटी देवी, भुनाई देवी, कुरिन देवी, कुआसन देवी, त्रिपुरा सुंदरी, गजाशिन देवी, हिडिंबा देवी, हाटकोटी की हाटेश्वरी देवी, जुन्गा की तारा देवी और थरेच की अष्टभुजा देवी आदि के मंदिर अति प्रसिद्ध हैं। किन्नौर में चंडिका के प्रसिद्ध मंदिर के निर्माण के पीछे कोई न कोई लोक गाथा प्रचलित होती है। जिन सबका यहां वर्णन संभव नहीं है। प्रदेश का कोई घर, गांव या कस्बा ऐसा नहीं जहां पर मंदिर या शिवालय न हों।

सिद्ध पूजा : पहाड़ों में सिद्ध पूजा महाभारत काल से भी पहले से प्रचलित है। पुरातन काल में तपस्या द्वारा अद्भुत शक्तियां अर्जित करके लोक कल्याण के कार्यों में उनका प्रयोग करने वाले व्यक्ति को शायद सिद्ध कह कर पुकारा जाता था। हिमाचल प्रदेश में सिद्ध मंदिर हमीरपुर के सुजानपुर के पास, तहसील देहरा में बालकरूपी के मंदिर और चकमोह में बाबा बालक नाथ मदिर है।               — क्रमशः