बाबर की विरासत ढो कौन रहा है

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं

कपिल सिब्बल की कलाबाजी से यह स्पष्ट हो गया है कि राम मंदिर के मसले को लटकाए रख कर इस देश में सांप्रदायिक तनाव कौन बनाए रखना चाहता है। क्या सोनिया गांधी इस पर कुछ कहेंगी? कपिल सिब्बल के बाद उनका बोलना निहायत जरूरी है, लेकिन यकीनन वह चुप ही रहेंगी। उनकी चुप्पी ही बताती है कि कांग्रेस राम मंदिर के मुद्दे को लटका कर राजनीतिक लाभ उठाना चाहती है। अब स्पष्ट होता जा रहा है कि बाबर की विरासत को कौन ढो रहा है और बाबर के नाम पर कौन वोट बटोरना चाहता है…

आखिर बिल्ली थैले से बाहर आ ही गई, लेकिन इसमें बिल्ली का दोष नहीं। यदि अब भी थैले में ही रहती तो दम घुटने से ही मर जाती। ऐसा भी नहीं कि इससे पहले थैले में दम घुटने का खतरा नहीं था, लेकिन चैनल के मालिकों ने बहुत ही एहतियात से थैले में ही उसके भोजन-पानी और आक्सीजन का बंदोबस्त किया हुआ था। अब वह बंदोबस्त चरमराने लगा था, इसलिए कपिल सिब्बल को सबके सामने खुल कर उच्चतम न्यायालय में कहना पड़ा कि मेरे आका! राम मंदिर के मामले में सुनवाई बंद कीजिए और यदि करनी ही है तो वह 2019 के आम चुनावों के बाद कीजिए। सारा हिंदोस्तान कह रहा है कि सुनवाई जल्दी से जल्दी कीजिए और इतने लंबे समय से लंबित इस मसले पर अपना निर्णय दे दीजिए, ताकि सारा विवाद समाप्त हो जाए। अब तक यह माना जा रहा था कि सोनिया कांग्रेस भी चाहती है कि इस मसले का निपटारा जल्दी से जल्दी होना चाहिए, ताकि तनाव व अश्चिय का माहौल समाप्त हो। जाहिर तौर पर तो उसका पक्ष यही था। भाजपा ने बहुत पहले कहा था कि इस मसले पर देश की सबसे बड़ी कचहरी जो फैसला दे, वह सभी को मान्य होना चाहिए। सोनिया कांग्रेस भी सार्वजनिक रूप से यही कह रही थी, लेकिन अंत में वह घड़ी आ ही गई और उच्चतम न्यायालय में इस मसले को लेकर सुनवाई शुरू भी हो गई। अब सोनिया कांग्रेस ज्यादा देर अपनी बिल्ली को थैले में नहीं रख सकती थी। इसलिए इस समय व्यावहारिक रूप से सोनिया कांग्रेस के सबसे बड़े प्रवक्ता कपिल सिब्बल को भरी कचहरी में कहना पड़ा कि राम मंदिर के मसले पर यह सुनवाई बंद कीजिए।

अब राम मंदिर के मामले को थोड़ा समझ लिया जाए। यह मामला इस देश की कचहरियों में सोलहवीं शताब्दी के मध्य से लटका हुआ है। इतने लंबे कालखंड में कचहरियों का स्वरूप भी बदलता गया और मामले की तासीर भी। अयोध्या में राम मंदिर का यह मसला सबसे पहले बाबर की कचहरी में पेश हुआ। मसला यह था कि अब हिंदोस्तान पर बाबर का राज हो गया है, इसलिए क्या अयोध्या में राम मंदिर रह सकता है या नहीं। जाहिर है कि उन दिनों कचहरी का मतलब बादशाह का फरमान ही होता था। इसलिए उस कचहरी का निर्णय यही था कि मंदिर को जमींदोज कर दिया जाए और उस पर मस्जिद बना दी जाए। ऐसा ही हुआ और जनमानस में वह मस्जिद बाबरी के नाम से ही विख्यात हुई। उसके बाद लंबे समय तक देश में बाबर के वंशजों का राज रहा। उनकी कचहरियों में दशगुरु परंपरा के श्री अर्जुनदेव, श्री तेगबहादुर को बिना किसी कारण के सजा-ए-मौत सुना कर शहीद किया जाता रहा। ऐसी कचहरियों में राम मंदिर के मसले पर क्या फैसला होता, इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है। यह जरूर हुआ कि जिस प्रकार ताकत के प्रयोग से बाबर के लोगों ने मंदिर को गिराया था, उसी तरह ताकत के जोर पर हिंदोस्तान के लोगों ने राम के मंदिर को पुनः बनाने के अनेक प्रयास किए, लेकिन मुगल सल्तनत की ताकत के सामने वे विफल हुए।

फिर एक दिन मुगल सल्तनत का भी नाश हो गया, लेकिन तब यूरोप से आए गोरों ने देश पर कब्जा कर लिया। उनकी कचहरियों में क्या फैसला हो सकता था? उनकी कचहरियां भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु को फांसी के तख्तों पर लटकाने में मशगूल थीं। उनकी प्रिवीकाउंसिल हिंदोस्तानी रियासतों को अंग्रेजी साम्राज्य में शामिल तरने के निर्णय दे रही थी। सबसे बढ़कर वह सरकार खुद ही इस देश के बाशिंदों को आपस में लटकाने में व्यस्त थी। तब एक दिन हिंदोस्तान से गोराशाही भी समाप्त हो गई। इस प्रकार सोलहवीं शताब्दी से चला विदेशी शासन बीसवीं शताब्दी में जाकर समाप्त हुआ। सोलहवीं शताब्दी के इस विदेशी शासन ने हिंदोस्तान में अपने शासन की विधिवत घोषणा राम मंदिर को तोड़ कर की थी। उन दिनों नई सरकार की घोषणा का गजट नोटिफिकेशन जारी करने का यही तरीका था। अब जब 1947 में देश में से लंबा विदेशी शासन समाप्त हुआ, तो देशवासियों को आशा थी कि अब राम मंदिर का निर्माण कर दिया जाएगा और भारत पांच सौ साल की इस लंबी लड़ाई के अंत की घोषणा कर देगा। बाबर द्वारा राम मंदिर गिराकर बनाए गए ढांचे में राम, लक्ष्मण और सीता जी की प्रतिमाएं भी स्थापित हो गईं, लेकिन नई सरकार ने इस पर चुप्पी ही नहीं साधी, बल्कि आश्चर्यजनक तरीके से लोगों को घूरना भी शुरू कर दिया। मामला फिर कचहरी में चला गया।

उसके बाद अनेक उतार-चढ़ाव आए। कचहरी ने पहले तो उस ढांचे में स्थित राम की मूर्ति को बाहर से ताला लगा देने के आदेश दे दिए, लेकिन कुछ साल के बाद ताला हटा देने के आदेश दे दिए। मामला पांच सौ साल से लटकता-भटकता देख एक दिन देश के लोगों ने बाबर का बनाया हुआ वह ढांचा हटा दिया और राम लल्ला की मूर्तियां उस स्थान पर एक छोटा मंदिर बना कर रख दीं। पूजा-पाठ फिर चालू हो गया, लेकिन मामला तो कचहरी में ही चलना था सो चलता रहा। अब वह मामला कुछ साल पहले चलता-चलता उच्चतम न्यायालय तक पहुंच गया और वहां कई साल से लंबित है। सब पक्ष चाहते हैं कि देश की सबसे बड़ी अदालत इस पर अपना निर्णय दे-दे, ताकि बाबर द्वारा शुरू किया गया विवाद समाप्त हो जाए। मुसलमानों का इस देश में एक वक्फ बोर्ड है, उसका भी कहना है कि यह मामला जल्दी निपट जाना चाहिए। आखिर उच्चतम न्यायालय ने भी इस मामले पर अपनी सुनवाई शुरू कर दी। सभी पक्षों के वकीलों ने अपने-अपने मोर्चे संभाल लिए, लेकिन तभी सोनिया कांग्रेस के कपिल सिब्बल ने धमाका कर दिया। उसने कहा सुनवाई रोक दी जाए और 2019 के चुनावों के बाद की जाए। कपिल सिब्बल द्वारा किए गए इस विस्फोट ने सभी को चौंका दिया। यहां तक कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को भी, जिसके वह वकील हैं।

बोर्ड के एक प्रतिनिधि ने तो यहां तक कह दिया कि यह हमारा मत नहीं है। कपिल सिब्बल चूंकि एक राजनीतिक दल के भी सदस्य हैं, इसलिए यह उनका अपना मत हो सकता है। शिया समाज के बोर्ड ने तो यहां तक कहा कि इस जगह पर राम मंदिर ही बनना चाहिए, मस्जिद कहीं और बन सकती है। अब ऑल इंडिया मुसलमान पर्सनल लॉ बोर्ड के नाम का एक एनजीओ, जो अपने आप को मुसलमानों का प्रतिनिधि कहता है, उसका कहना है कि कपिल सिब्बल ठीक रास्ते पर जा रहे हैं, हम उनके साथ हैं। मुसलमानों का ही एक दूसरा एनजीओ मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का कहना है कि राम मंदिर इसी स्थान पर बनना चाहिए।

फैसला क्या होता है, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन कपिल सिब्बल की कलाबाजी से यह स्पष्ट हो गया है कि राम मंदिर के मसले को लटकाए रख कर इस देश में सांप्रदायिक तनाव कौन बनाए रखना चाहता है। क्या सोनिया गांधी इस पर कुछ कहेंगी? कपिल सिब्बल के बाद उनका बोलना निहायत जरूरी है, लेकिन यकीनन वह चुप ही रहेंगी। उनकी चुप्पी ही बताती है कि कांग्रेस राम मंदिर के मुद्दे को लटका कर राजनीतिक लाभ उठाना चाहती है। अब स्पष्ट होता जा रहा है कि बाबर की विरासत को कौन ढो रहा है और बाबर के नाम पर कौन वोट बटोरना चाहता है। बाबर से शुरू हुई इस लड़ाई का लाभ सोनिया कांग्रेस 2019 में उठाना चाहती है, यह जान कर अफगानिस्तान में अपनी कब्र में पड़ा बाबर भी हंस रहा होगा।

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