मुख्यमंत्री के लिए महामंथन

अगले 10 साल को ध्यान में रखते हुए हो रही चेहरे की तलाश

शिमला— हिमाचल में बहुमत से चुनाव जीतने के बाद भाजपा की केंद्रीय कमान ने मुख्यमंत्री पद के लिए जो महामंथन शुरू किया है, उसमें अनुभवी, बेहतरीन छवियुक्त व मैरिट के आधार पर उस नेता की तलाश हो रही है, जो आगामी 10 वर्षों के लिए पार्टी को एक अच्छा नेतृत्व दे सके। इसमें केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा फिट होते हैं या फिर जयराम ठाकुर, डा. बिंदल, नरेंद्र बरागटा या फिर किशन कपूर, इसके लिए बुधवार को भी दिल्ली में केंद्रीय पार्लियामेंटरी बोर्ड की बैठक हुई। इस बारे में चर्चा के लिए गुरुवार को केंद्रीय पर्यवेक्षकों का दल भी आ रहा है। सूत्रों के मुताबिक जेपी नड्डा व जयराम के नाम की ही चर्चा है, क्योंकि इन दोनों ही नेताओं के जिलों में पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया है। इस चुनाव में भाजपा के 44 प्रत्याशी जीतकर आए हैं। जिन जिलों में प्रदर्शन सही नहीं हुआ है, उनकी समीक्षा की भी तैयारी है। इनमें हमीरपुर, शिमला, ऊना, सोलन और किन्नौर शामिल हैं। पार्टी सूत्रों के मुताबिक मंगलवार रात को भी राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने इसी मसले पर राज्य पार्टी मामलों के प्रभारी मंगल पांडे से भी काफी देर तक बैठक की। इसमें कई और नेता भी शामिल बताए जा रहे हैं। उनका कहना है कि केंद्रीय कमान वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों को भी देखकर चल रही है। इनमें कौन सा चेहरा बेहतरीन प्रदर्शन दिखा सकता है, उसे भी मद्देनजर रखा जा रहा है। अनुभव के आधार पर जेपी नड्डा सबसे ऊपर बताए जा रहे हैं। वह दो बार हिमाचल में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। उनकी पृष्ठभूमि बेहतरीन है। राष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने अपनी एक अलग छाप छोड़ी है। सबसे कम उम्र में भाजयुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे हैं। जयराम ठाकुर प्रदेशाध्यक्ष रह चुके हैं। पांचवीं बार वह विधानसभा पहुंचे हैं। नरेंद्र बरागटा पार्टी के उपाध्यक्ष होने के साथ-साथ एबीवीपी की पृष्ठभूमि रखते हैं। किसान-बागबान संगठन के प्रदेशाध्यक्ष हैं, जिसमें प्रदेश के 26 से भी ज्यादा चुनाव क्षेत्र हैं। सुरेश भारद्वाज सांसद रहने के साथ-साथ प्रदेशाध्यक्ष रह चुके हैं। अनुभव की कसौटी पर वह कहीं भी कम नहीं रहते। किशन कपूर सबसे बड़े जिला का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। अनुभव के आधार पर वह कहीं भी पीछे नहीं हैं। अब आगामी दो-तीन दिन में फाइनल रिपोर्ट पर्यवेक्षक केंद्रीय पार्लियामेंटरी बोर्ड को सौंपेंगे, जिसके आधार पर यह तय होगा कि लंबी राजनीतिक पारी खेलने के लिए किस चेहरे को हिमाचल की कमान सौंपी जाए। अब इनमें कौन भाग्यशाली होगा, यह समय बताएगा।

जिलों की परफारमेंस पर भी ध्यान

जिस नेता की दावेदारी मुख्यमंत्री पद के लिए है, उसके जिले की परफारमेंस को भी देखा जा रहा है। चुनाव में फिसड्डी रहने वाले उन जिलों को ज्यादा त्वज्जो नहीं दिए जाने की सूचना है, जहां कांग्रेस ने झंडे गाड़े हैं। इन जिलों में सोलन, हमीरपुर, ऊना और शिमला भी शामिल हैं।

सतपाल सत्ती के पक्ष में भी दलीलें

पार्टी के ऐसे भी कई नेता हैं, जो सतपाल सिंह सत्ती के लिए भी दलीले दे रहे हैं। इनका तर्क है कि प्रदेश व्यापी दौरे करने के बाद सत्ती को अपने चुनाव क्षेत्र के लिए समय नहीं मिल पाया, लिहाजा उनके नाम पर भी विचार किया जाए। भाजपा नेताओं का कहना है कि सपताल सत्ती ने पार्टी के प्रचार रथ में बतौर सारथी भूमिका निभाई है और जीत में उनकी भूमिका को कम नहीं आंकना चाहिए।