मुस्लिम औरतों का ऐतिहासिक दिन

एक मुस्लिम औरत प्रधानमंत्री मोदी की रैली में शामिल हुई, तो उसे तीन तलाक कहकर घर से बाहर निकाल दिया गया। एक मुस्लिम महिला देर से सो कर उठी…औरत ने रोटी जला दी…मर्द का फोन उठाने में देर कर दी…बेटी को जन्म दिया, तो भी 3 तलाक दिए गए। यही नहीं, अमरीका से व्हाट्सऐप करके या दुबई से फोन पर भी 3 तलाक कहे गए। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के फैसले के बावजूद 3 तलाक के करीब 100 मामले दर्ज हुए हैं। उससे पहले 2017 में ही 177 मामले सामने आए थे। अब मुस्लिम औरतों को 3 तलाक कहना समाप्त हो जाएगा या ऐसी वारदातें नहीं होंगी,हमारा यह दावा नहीं है, लेकिन 3 तलाक के खिलाफ लोकसभा में बिल पारित हो गया है, तमाम विरोधी संशोधन खारिज हुए हैं, कानून की ओर एक कदम बढ़ा है, तय है कि मुस्लिम औरतों के लिए यह ऐतिहासिक दिन है। अब मुस्लिम मर्द द्वारा लिख कर, बोल कर, एसएमएस, व्हाट्सऐप, फेसबुक आदि माध्यमों द्वारा एक ही बार में तीन तलाक देना संभव नहीं होगा। उसे दंडनीय अपराध तय किया गया है। तीन साल की सजा और जुर्माना भी! लेकिन व्यवस्था, परंपरा, मानसिकता, पूर्वाग्रह, सोच रातोंरात बदल जाएंगे, ऐसा भी संभव नहीं है, लेकिन औरतों के हाथ में हथियार आ गया है। लोकसभा में इस बिल के पारित होने के बाद मुस्लिम महिलाओं ने जश्न मनाया। उनके चेहरों पर पहली बार मुस्कान दिखाई दी। वे तालियां बजा रही थीं। उनमें एक खास तरह का जोश महसूस किया जा सकता था। ढोल-नगाड़े बजाए गए, मुंह भी मीठा कराया गया और बिल के विरोधियों के पुतले जलाए गए, लेकिन अभी यह पहला कदम है। दरअसल यह बदलाव की शुरुआत है। मुस्लिम महिलाओं को कुछ दिक्कतें झेलनी पड़ेंगी, पुलिस का रवैया भी सहयोग का न रहे, फिर भी लड़ाई तो लड़नी है, क्योंकि अब उनके हाथों में कानून का हथियार होगा। लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी बिल आसानी से पारित हो सकता है, क्योंकि कांग्रेस बुनियादी तौर पर इसके पक्ष में है। हालांकि कांग्रेस की मांग थी कि अभी बिल में कुछ खामियां हैं, लिहाजा उसे संसद की स्थायी समिति को भेज दिया जाए, लेकिन कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने साफ कहा कि कांग्रेस के जो भी संशोधन हैं, उन्हें अभी बहस में रखा जाए। उचित होंगे, तो सरकार उन संशोधनों को स्वीकार भी कर सकती है, लेकिन धर्मनिरपेक्षता और मुस्लिम वोट बैंक के नाम पर जो दल कांग्रेस के साथ चिपके रहे हैं या भाजपा का विरोध करते रहे हैं, उनमें से तृणमूल कांग्रेस, राजद, बीजद, एनसीपी, एमआईएम, आईयूएमएल और सीपीएम ने बिल का विरोध किया है। लिहाजा यह कहना कि बिल के पीछे सियासत नहीं है, गलतबयानी है। लेकिन इन दलों की औकात बेहद सीमित है। तीन तलाक बिल के कानून बनने के बाद करीब साढ़े आठ करोड़ मुस्लिम औरतें भाजपा के पक्ष में आती हैं, तो कोई हैरत नहीं होनी चाहिए। टीवी चैनलों पर मुस्लिम महिलाओं को प्रधानमंत्री मोदी जिंदाबाद…हम आपके बहुत आभारी हैं…ऐसे जुमले सुनकर भविष्य की सियासत साफ तौर पर समझ में आने लगती है। सर्वे के मुताबिक, करीब 66 फीसदी जुबानी तलाक दिए जाते हैं। करीब 92 फीसदी महिलाएं चार निकाह पर रोक और इतनी ही औरतें 3 तलाक पर पाबंदी की पक्षधर हैं। करीब 72 फीसदी औरतें 18 साल की उम्र से पहले निकाह पर रोक चाहती हैं। करीब 49 फीसदी लड़कियों की 14-29 साल की उम्र में शादी हो जाती है, जबकि करीब 14 फीसदी निकाह 15 साल की उम्र से पहले ही कर दिए जाते हैं। यह भी एक अध्ययन है कि 2001-11 के बीच मुस्लिम समाज में तलाक के मामले करीब 40 फीसदी बढ़े हैं। करीब 82 फीसदी मुस्लिम औरतों के नाम कोई भी संपत्ति नहीं है और करीब 81 फीसदी औरतों को उच्च शिक्षा हासिल नहीं है। औसत मुस्लिम महिला की स्थिति बेहद दयनीय है। तीन तलाक अधिकतर निचले तबके के मर्द ही देते हैं।  उच्च और पढ़े-लिखे मुसलमान आपसी रजामंदी से ही तलाक लेते हैं। कोई अपवाद हो, तो उसे नजरअंदाज किया जा सकता है, लेकिन मोदी सरकार ने बड़े हौसले के साथ एक ‘सामाजिक सुधार’ की पहल की है। उसने इस समस्या को मुस्लिम महिला की गरिमा, सम्मान और वैवाहिक अधिकार से जोड़ कर पेश किया है और शरिया में दखल देने की कोशिश की है। जिस तलाक-ए-बिद्दत (एक ही बार में तीन तलाक) को संविधान पीठ ने असंवैधानिक, पाप, गैर इस्लामी  करार दिया था, उसे आधार बनाकर यह बिल तैयार किया गया था। मौलवी, मुल्ला, मुफ्ती से लेकर मुस्लिम सियासत करने वाले तो चिल्ल पौं करेंगे ही। वे यहां तक कह सकते हैं कि नमाज और रोजा  पर भी पाबंदी चस्पां कर दी जाए, लेकिन फिलहाल यह मुसलमान मर्दों की जबरदस्ती रोकने की दिशा में एक कानूनी पहल है। भारत की 70 साल की आजादी में कोई भी सरकार यह ऐतिहासिक कदम नहीं उठा सकी। सिर्फ मोदी सरकार ने दुस्साहस किया है और वह सकारात्मक भी है।